आपको अपने चण्डीगढ़ वाले नेकचंद का नाम और
काम तो ज़रूर याद होगा. हां, वही रॉक गार्डन के अनूठे सर्जक नेकचंद सैनी. हाल
में मुझे उनकी याद आई सुदूर तुर्की की एक ख़बर पढ़ते हुए. फर्क़ बस इतना है कि वहां
एक नहीं अनेक नेकचंदों ने मिलकर एक ऐसा करिश्मा कर दिखाया है कि जब आप भी उसके
बारे में पढेंगे तो उन्हें शाबासी दिये बग़ैर नहीं रहेंगे. तुर्की के शहर अंकारा के
कचरा इकट्ठा करने वाले श्रमिकों ने वहां एक शानदार पुस्तकालय बनाने का विचित्र
किंतु सत्य कारनामा कर दिखाया है. इन श्रमिकों का काम यह था कि शहर भर में कचरा
पात्रों से कचरा बीनें और उसे ले जाकर भराव क्षेत्र में डाल दें. यह करते हुए इनका
ध्यान इस बात पर गया कि बहुत सारे कचरा पात्रों में, और अन्यत्र भी लोग अपनी पढ़ी
हुई अथवा अनुपयोगी किताबें भी डाल देते हैं. इनकी ड्यूटी तो यह थी कि और तमाम कचरे-कबाड़
के साथ इन किताबों को भी इकट्ठा करें और भराव क्षेत्र में पटक आएं. लेकिन इनका मन
नहीं माना. इन्हें लगा कि भला इतनी कीमती और ज़िंदगी को बदल डालने की क्षमता रखने
वाली किताबों को ज़मींदोज़ क्यों हो जाने दें? और तब इन्होंने सोचा कि क्यों न इन किताबों को
इकट्ठा करके एक लाइब्रेरी ही बना दी जाए! बाद में एक कचरा इकट्ठा करने वाले श्रमिक
सेरहत बेटेमूर ने कहा भी कि तमन्ना तो यह थी कि घर में मेरी अपनी लाइब्रेरी हो,
लेकिन वैसा करना मुमकिन न हो सका और उसकी बजाय हमने यह सार्वजनिक
पुस्तकालय बना डाला.
इन लोगों ने सोच विचार
किया, अपनी बात को औरों के साथ भी साझा किया तो सबने इनके इरादे का समर्थन किया.
लोग आगे बढ़कर भी इन्हें किताबें सौंपने लगे और इस तरह इनका पुस्तकालय बनाने का
सपना मूर्त रूप लेने लगा. अब समस्या यह थी कि जो किताबें इकट्ठी हुई हैं उन्हें
संजोया कहां जाए? किसी ने ध्यान दिलाया कि खुद इनके सफाई
विभाग की एक इमारत बेकार पड़ी है. उसे देखा तो लगा कि अरे, यह
तो पुस्तकालय के लिए आदर्श है. उसके लम्बे गलियारे और बड़े कमरे वाकई पुस्तकालय का
आभास देते प्रतीत हुए. थोड़ी साफ़ सफाई और रंग रोगन के बाद वह इमारत काम चलाऊ बन गई
तो उसमें इन्होंने अपने कई महीनों के श्रम से एकत्रित की गई करीब छह हज़ार किताबों
को व्यवस्थित कर अपने विभाग के कर्मचारियों और उनके परिवार जन को सुलभ कराना शुरु
कर दिया. लेकिन जैसे-जैसे किताबों का संग्रह बढ़ने लगा, इस
पुस्तकालय की ख्याति भी फैलने लगी और शहर वासियों की मांग का सम्मान करते हुए इन
लोगों ने अपने पुस्तकालय की सेवाएं विद्यार्थियों
और शहर भर के पुस्तक प्रेमियों को भी सुलभ कराना शुरू कर दिया. नगर के
महापौर का भी पूरा समर्थन इन्हें मिला और
अब यह पुस्तकालय एक ऐसा स्थान बन चुका है जिस पर पूरे नगर को गर्व है.
पुस्तकालय अनेक खण्डों में
विभक्त है. इसका बच्चों वाला विभाग अपने कॉमिक्स के संग्रह के कारण सर्वाधिक
लोकप्रिय है. वैज्ञानिक शोध विषयक पुस्तकें भी यहां खूब हैं. पुस्तकालय के कुल
सत्रह खण्डों में उपन्यास,
अर्थशास्त्र की पाठ्य पुस्तकें, थ्रिलर्स और
बाल साहित्य शामिल हैं. और जैसे इतना ही पर्याप्त न हो, अंग्रेज़ी
और फ्रेंच सहित अनेक विदेशी भाषाओं की पुस्तकों के अपने संग्रह के कारण यह
पुस्तकालय शहर में आने वाले पर्यटकों तक
के आकर्षण का केंद्र बन चुका है. तुर्की के श्रेष्ठतम लेखकों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय
ख़्याति के अनेक लेखकों का साहित्य यहां सुलभ है. जैसे-जैसे पुस्तकालय की ख्याति
फैलती जा रही है, इसकी सेवाओं का भी विस्तार हो रहा है. चौबीसों
घण्टे खुला रहने वाला यह पुस्तकालय अब शहर की शिक्षण संस्थाओं तक को किताबें उधार देने की
स्थिति में आ गया है और शहर की जेलों में भी ये लोग अपनी किताबें भेजने लगे हैं.
आस-पास के गांवों के स्कूली शिक्षक भी इस पुस्तकालय से किताबें मंगवाने लगे हैं.
बहुत स्वाभाविक है कि
पुस्तकालय के अपने इस सृजन से वे तमाम लोग प्रसन्न हैं जिन्होंने इसे मूर्त रूप दिया है. खुशी की बात यह है कि उन्होंने जो
किया है वे उतने भर से संतुष्ट नहीं हैं और अब और बड़े सपने देखने लगे हैं.
पुस्तकालय के साथ वे संगीत सभा और नाट्य प्रदर्शन जैसी गतिविधियों को जोड़कर अपने
पाठकों की संख्या में वृद्धि तो कर ही रहे हैं, उनकी योजना यह भी है कि वे एक चल
पुस्तकालय भी बना लें जो आस-पास के गांवों के स्कूलों तक जाकर अपनी सेवाएं दे. इस
योजना के मूर्त्त रूप लेने में कोई संदेह नहीं है क्योंकि इस पुस्तकालय की ख्याति
अब देश की सीमाओं को लांघ कर दुनिया भर तक पहुंच चुकी है और हर तरफ से सहयोग के
प्रस्ताव आने लगे हैं.
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जयपुर से प्रकाशित कोलप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 06 फरवरी, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.