Tuesday, January 9, 2018

आत्मीय रिश्तों के बीच क्या काम कोर्ट कचहरी का?

हिंदी की अनेक कहानियों  में वृद्धजन की उपेक्षा और बदहाली बयां हुई है. उषा प्रियम्वदा की वापसीमें गजाधर बाबू लम्बी नौकरी के दौरान घर से दूर रहने के बाद यह अभिलाषा लिए घर लौटते हैं कि अब उन्हें परिवार  का संग-साथ मयस्सर होगा, लेकिन वे पाते हैं कि घर और परिवार में अब उनके लिए कोई जगह नहीं है. भीष्म साहनी की कहानी चीफ़ की दावतमें मिस्टर शामनाथ और उनकी पत्नी के लिए बूढ़ी मां एक ऐसी अनावश्यक वस्तु है जिसे मेहमानों की नज़र से बचाने के लिए कमरे में बंद करना ज़रूरी होता है. लेकिन उसी मां की फुलकारी जब अतिथि चीफ़ साहब को भा जाती है तो मां के प्रति उनका बर्ताव तुरंत बदल जाता है. गौरतलब यह बात है कि इन कहानियों में वृद्धों के प्रति उपेक्षा तो है,  अमानवीयता अधिक नहीं है और हिंसा तो कतई नहीं. लेकिन तब यानि सत्तर के दशक से  अब तक आते-आते हालात बहुत बदल चुके हैं.

हाल में भीलवाड़ा से यह खबर आई कि वहां कलक्टर  के यहां होने वाली जन-सुनवाई में छह महीनों में 29 ऐसे मामले दर्ज़ हुए हैं जिनमें बुज़ुर्ग मां-बाप ने यह शिकायत  करते हुए कि उनके बेटे-बहू उनकी समुचित देखभाल नहीं करते हैं, कलक्टर से सहायता की याचना की है. बुज़ुर्गों  की पीड़ा यह है कि उनके वारिसों ने उनसे उनकी पूरी सम्पत्ति ले ली और जब वे भरण पोषण का खर्चा मांगते हैं तो वे उनके साथ मार-पीट करते हैं. वृद्ध मां-बापों  ने ये मामले वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 के तहत दर्ज़ करवाए हैं. बात केवल भीलवाड़ा की ही नहीं है. देश के हर शहर और गांव से आए दिन इस तरह की खबरें आती ही रहती हैं. लेकिन अभी कुछ दिन पहले गुजरात के राजकोट से तो और भी बुरी खबर आई है. इस खबर के अनुसार वहां एक बेटे ने अपनी बीमार वृद्धा मां को छत से फेंककर मार ही डाला. हुआ यह कि राजकोट में रहने वाली एक सेवानिवृत्त शिक्षिका जयश्रीबेन विनोदभाई नाथवानी की मृत्यु जिस बिल्डिंग में वे रहती थीं उसकी  छत से गिरने से हो गई. तफ्तीश के बाद पुलिस ने इसे आत्महत्या मानकर केस बंद कर दिया. लेकिन घटना के दो माह बाद पुलिस को एक गुमनाम चिट्ठी मिली और तब सोसाइटी में लगे सीसीटीवी के फुटेज खंगाले गए तो मामला कुछ और ही निकला. इस फुटेज में बेटा अपनी मां को लिफ्ट से छत की तरफ ले जाता दिखाई दिया. बेटे ने पहले तो इस मृत्यु में अपनी किसी भूमिका से इंकार किया, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो उसने मां को छत से नीचे फेंकने की बात कबूल कर ली. उसने कहा कि वो मां की तीमारदारी से परेशान हो गया था. 

बूढे और असहाय मां-बाप की उपेक्षा और उनके साथ दुर्व्यवहार के मामले दुनिया के और देशों में भी सामने आ रहे हैं. हाल में ताइवान से  भी ऐसा ही एक मामला  सामने आया है. लेकिन यहां किस्सा कुछ और है. वहां की शीर्ष अदालत ने मां की इस गुहार पर कि उसने अपने बेटे को डेंटिस्ट बनाने पर भारी खर्च किया, अत: अब वो तब किये गए कॉण्ट्रेक्ट के अनुसार एक बड़ी रकम की हक़दार है, उस बेटे को आदेश दिया है कि वो अपनी मां को करीब छह करोड़ दस लाख रुपये दे. इस मां का कहना है कि उसने अपने दो बेटों को  डेंटिस्ट बनाने पर बहुत भारी रकम खर्च की, लेकिन उसे पहले ही यह आशंका हो गई इसलिए उसने तभी अपने बेटों से एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करवा लिए थे कि जब वे कमाने लगेंगे तो उन्हें अपनी कमाई का एक हिस्सा देंगे. गौरतलब है कि अपने पति से तलाकशुदा लुओ ने अकेले दम अपने बेटों को पाला-पोसा था. लुओ के बड़े बेटे ने तो कुछ धनराशि  देकर मां से समझौता कर लिया लेकिन छोटे बेटे चू ने यह कहते हुए मां की याचिका का विरोध किया कि जब उन्होंने यह कॉण्ट्रेक्ट साइन किया था तब उनकी उम्र बहुत कम थी, इस कारण अब इस कॉण्ट्रेक्ट को अवैध  मान लिया जाना चाहिए. अदालत ने बेटे की आपत्ति को अस्वीकार कर दिया है.

अब एक और मामले के बारे में जान लें. अपने ही  मुल्क के शहर इटावा का एक वीडियो इन दिनों वायरल हो रहा है जिसमें यह बताया गया है कि अपने पिता के सख़्त रवैये से परेशान हो एक बच्चा सीधे थाने पहुंच गया है और पुलिसवालों से गुज़ारिश कर रहा है कि वे उसके पिता को सबक सिखाएं. इस प्रसंग में अपने मुल्क की बात मैंने जानबूझकर की है. इसलिए कि पश्चिम में तो बच्चों द्वारा अपने मां-बाप की शिकायत बहुत आम है. लेकिन अपने यहां यह बात  नई है. विचारणीय यह है कि क्या रिश्ते अब इस मुकाम तक आ पहुंचे हैं कि उन्हें सुलझाने के लिए कोर्ट कचहरी की मदद लेनी पड़ रही है!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 09 जनवरी, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.