हाल में भारतीय समाचार माध्यमों में इस
बात की काफी चर्चा रही थी कि चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति और
उपराष्ट्रपति के पद पर अपने किसी सदस्य को अधिकतम दो कार्यकाल देने का संवैधानिक
प्रावधान हटाने का प्रस्ताव रखा है. वर्तमान प्रावधानों के मुताबिक चीन के
राष्ट्रपति एक साथ दो कार्यकाल तक पद पर बने रह सकते हैं. चीन में यह व्यवस्था 1982 से लागू है और इसके तहत राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष
का होता है. अगर यह प्रस्ताव लागू हो जाता है तो चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी
जिनपिंग 2023 में खत्म हो रहे अपने दूसरे कार्यकाल के
बाद भी अपने पद पर बने रह सकते हैं.
राजनीति के जानकारों का खयाल है कि इस संवैधानिक
बदलाव का असल मक़सद शी जिनपिंग को उनके दूसरे कार्यकाल के बाद भी अनिश्चित
काल तक इस पद पर बनाये रखना है.
इस चर्चा से मुझे अनायास ही दुनिया के एक अन्य
देश के राष्ट्रपति पॉल बिया का ध्यान आ गया जो पिछले पैंतीस बरसों से यानि 1982 से
अपने पद पर बने हुए हैं. ये पॉल बिया 23.44 मिलियन की आबादी वाले मध्य और
पश्चिम अफ्रीका में स्थित देश कैमरून के राष्ट्रपति हैं. कैमरून की भौगोलिक, सांस्कृतिक और
प्राकृतिक विशेषताओं के कारण इसे अफ्रीका इन मिनिएचर के नाम से भी जाना जाता है. कैमरून
में दो सौ से भी अधिक जन जातियां और भाषाई समूह निवास करते हैं. भारत में हमने हाल
के दिनों में बोको हरम नामक एक बलवाई संगठन की गतिविधियों के संदर्भ में भी इस देश
का नाम पढ़ा-सुना था. कैमरून के इन 85 वर्षीय राष्ट्रपति महोदय की गणना अफ्रीका में
सर्वाधिक समय तक सत्तासीन रहे राजनेताओं में से एक के रूप में होती है. मज़े की बात
यह है कि कैमरून की साठ प्रतिशत आबादी पच्चीस साल से कम उम्र वाले युवाओं की है और
पॉल बिया उनके जन्म के पहले से इस पद पर जमे हुए हैं. लेकिन ये युवा जिस ताज़ा हवा
में सांस ले रहे हैं उसमें सैटेलाइट टीवी
और इण्टरनेट के ज़रिये आने वाली जानकारियां भी हैं जिनसे इन्हें दुनिया के अन्य
देशों में हो रहे बदलावों की जानकारियां मिलती रहती हैं. यही वजह है कि अब
आहिस्ता-आहिस्ता कैमरून में इन राष्ट्रपति महोदय के प्रति असंतोष की आवाज़ें सुनाई
देने लगी हैं. लोग इस बात को याद करने लगे हैं कि सन 2008 तक वहां राष्ट्रपति के
कार्यकाल की सीमाएं तै थीं लेकिन उन सीमाओं को हटा लेने के कारण ही पॉल बिया 2011
में पुन: अपने पद पर निर्वाचित कर लिये गए. इस बरस अक्टोबर में वहां फिर से चुनाव
होने हैं लेकिन अब तक तो पॉल बिया ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वे इस पद पर
फिर निर्वाचित नहीं होना चाहेंगे.
पॉल बिया की सबसे अधिक
आलोचना उनकी उस कार्यशैली की वजह से होती है जिसके कारण उन्हें अनुपस्थित
राष्ट्रपति नाम से पुकारा जाने लगा है. यह बात याद की जाने लगी है कि अभी हाल ही
में,
दो
बरस से भी अधिक समय के बाद उन्होंने अपनी पहली काबिना बैठक बुलाई है. इसके अलावा
उनकी विदेश यात्राएं भी वहां खासी चर्चा और आलोचना का विषय बनी हुई हैं. बल्कि इन
यात्राओं को लेकर तो वहां के सरकारी अख़बार कैमरून ट्रिब्यून और ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम
एण्ड करप्शन रिपोर्टिंग नामक एक स्वतंत्र प्रोजेक्ट के बीच अच्छी खासी बहस हो चुकी
है. इस प्रोजेक्ट ने विभिन्न समाचार पत्रों के हवाले से यह बात कही है कि
राष्ट्रपति महोदय पिछले एक बरस में अपनी निजी यात्राओं पर करीब साठ दिन देश से
बाहर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट ने यह भी बताया है कि 2006 और 2009 में राष्ट्रपति
महोदय एक तिहाई समय देश से बाहर रहे हैं. बताया गया कि विदेश में राष्ट्रपति महोदय
जेनेवा के इण्टरकॉण्टीनेण्टल होटल में समय
व्यतीत करना पसंद करते हैं. जैसा कि इस तरह के सारे मामलों में होता है, कैमरून के सरकारी
अखबार ने इन रिपोर्ट्स को चुनावी प्रोपोगैण्डा कहकर नकार दिया है.
पॉल बिया भले ही अपनी
कुर्सी पर जमे बैठे हों, उनके देश के हालात कुछ ठीक नहीं हैं. सरकार बहुत
निर्ममता से प्रतिपक्ष को कुचलने में जुटी है. विरोधियों की मीटिंग्स पर रोक लगा
दी गई है और विपक्षी दलों के नेताओं को
जेलों में डाला जा रहा है. विश्वविद्यालय परिसरों में राजनीतिक प्रतिरोध पर पाबंदियां आयद कर दी गई और सुरक्षा टुकड़ियों ने शिक्षकों
की हड़ताल को अपने पैरों तले रौंद डाला है. बोको हरम से निबटने के नाम पर नागरिक
अधिकारों का खुलकर हनन किया जा रहा है. पत्रकारों की आवाज़ को दबाने के अनगिनत
मामले भी सामने आ रहे हैं. ऐसे हालात में
सभी की दिलचस्पी इस बात में होगी कि अक्टोबर में पॉल बिया फिर से राष्ट्रपति चुने
जाते हैं या नहीं!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 27 मार्च, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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