Tuesday, June 20, 2017

हम सबकी दुआएं तुम्हारे साथ हैं, कल्याणी!

उसका नाम कल्याणी है, कल्याणी सरकार. वैसे यह उसका विवाह पूर्व का नाम है. अब वह कल्याणी  मण्डल है. पश्चिमी बंगाल के नादिया ज़िले के एक बहुत छोटे गांव की इस 32 वर्षीया युवती के जीवन में कुछ भी तो असाधारण नहीं है, फिर भी उसकी चर्चा हो रही है. बचपन में पढ़ना चाहती थी लेकिन ज़िंदगी के हालात कुछ ऐसे बने कि आठवीं कक्षा में आते-आते स्कूल को अलविदा कहना पड़ गया. सपना यह देखती थी कि पढ़-लिख कर सरकारी नौकरी करने लगेगी, लेकिन ऐसे सपनों का चकनाचूर हो जाना अपने यहां आम है. मां-बाप ने जैसे-तैसे उसकी शादी की और अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गए. हर आम हिंदुस्तानी युवती की तरह कल्याणी ने भी अपने हालात को मौन भाव से स्वीकार कर लिया. संयुक्त परिवार था. घर की बहू के लिए कामों की कोई कमी थोड़े ही होती है. दिन तो  घर के काम-काज निबटाने में ही बीत जाता. खुद के बारे में सोचने का कभी मौका  ही नहीं मिला. और इसी बीच वे दो से तीन भी हो गए. बेटा बिप्लब आहिस्ता-आहिस्ता बड़ा होने लगा तो कल्याणी के मन में दबा हुआ सपना भी जैसे अंगड़ाई  लेने लगा. उस सपने को खाद-पानी दिया उसके पति बलराम ने.

दोनों ने अपने गांव के रबींद्र मुक्त विद्यालय में नाम लिखवा लिया. बल्कि सच तो यह है कि कल्याणी का साथ देने के लिए पति बलराम ने भी स्कूल में अपना नामांकन करवाया. इसलिए कि कल्याणी को अजीब न लगे. यह बात अलग है कि बलराम अपनी रोजी-रोटी के संघर्ष के बीच पढ़ाई के लिए समुचित समय नहीं निकाल पाया. भले ही उसके पास गांव में थोड़ी-सी ज़मीन है, घर का काम चलाने के लिए तो उसे दूसरों के खेतों में मज़दूरी करनी ही पड़ती है. खुद कल्याणी भी घर  में बकरियां पालती है. इस तरह दोनों के अनथक श्रम से बमुश्क़िल सात हज़ार रुपये जुट पाते हैं. इतने में जैसे-तैसे उनके परिवार का  काम  चल जाता है.  और हां, यह बताना तो भूल ही गया कि उनकी बेटा बिप्लब भी सत्रह बरस का हो गया है और वह भी पढ़ रहा है.

लेकिन जो बात  बतानी थी वह तो छूटी  ही जा रही है. कल्याणी की चर्चा इस बात के लिए हो रही है कि इस बरस उसने अपने पति और बेटे के साथ बारहवीं की परीक्षा दी, और न केवल दी, उसमें कामयाबी भी हासिल की. यह एक अनूठी घटना थी जिसमें पति, पत्नी और बेटे तीनों ने एक साथ एक परीक्षा दी, और तीन में से दो इस परीक्षा में सफल भी हुए. बलराम की नाकामयाबी की वजह बताना अनावश्यक है. कल्याणी का  कहना है कि उसके पति को भला पढ़ाई का समय ही कहां मिल पाता था, लेकिन उसका इरादा है कि वह अपने पति को अगले बरस फिर परीक्षा देने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करेगी. खुद कल्याणी को भी परीक्षा में कोई  भारी सफलता नहीं मिली है. उसे भी  मात्र 44% अंक प्राप्त हुए हैं और वह अपनी इस सीमित कामयाबी से अनभिज्ञ भी नहीं है. एक इण्टरव्यू में उसने कहा भी है कि उसे ज़्यादा खुशी तो तब होती  जब उसने इस परीक्षा में टॉप किया होता.

कल्याणी और बलराम के बेटे बिप्लब को इस परीक्षा में 47% अंक प्राप्त हुए हैं. उसका कहना है उसे अपने मां-बाप पर गर्व है, हालांकि वह संकोच के साथ यह भी बता देता है कि शुरु-शुरु में अपने मां-बाप के साथ एक ही कक्षा में बैठते हुए उसे अटपटा भी लगता था. लेकिन उन लोगों  ने बड़ी जल्दी अपने दोस्त भी बना लिये थे. और इसके बाद, थोड़ी शरारत के साथ वह यह कहना भी नहीं भूलता है कि सबसे अच्छी बात तो यह थी उसके मां-बाप बहुत ही कम कक्षाओं में उपस्थित हो सके. वह  यह भी बताता है कि कुछ विषयों में तो उसकी मां और उसके बीच बड़ी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी रही. हंसते हुए वह बताता है कि अंग्रेज़ी में तो हम दोनों ही कमज़ोर थे.

लेकिन सबसे  ख़ास बात तो वह है जो कल्याणी ने कही है. यहां आप एक जीवट वाली भारतीय स्त्री का स्वर साफ़ सुन सकते हैं.  उसने कहा है कि शुरु-शुरु में तो लगा था कि मुझे जो कुछ करना है वह मैं कर चुकी हूं. अब भला और क्या करना है? लेकिन अब जब मेरी इतनी चर्चा हो गई है तो मुझे लग रहा है कि मुझे भी थम नहीं जाना चाहिए. अब मेरी इच्छा है कि मैं कॉलेज भी जाऊं. क्या पता किसी दिन सरकारी नौकरी पाने का मेरा सपना भी पूरा हो जाए!

कल्याणी, हम सबकी दुआएं तुम्हारे साथ है!

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 20 जून, 2017 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.