पाउलिना पॉरिज़्कोवा एक
जानी-मानी सुपर मॉडल रही हैं और उनका उपन्यास ‘अ मॉडल समर’ खूब
पढ़ा गया है. भारत में उनकी अधिक चर्चा नहीं हुई है, लेकिन मुझे
हाल में उनका एक लेख पढ़ने को मिला और उसे पढ़ते हुए लगा कि इसके सार को अपने पाठकों
के साथ साझा किया ही जाना चाहिए. इस छोटे-से लेख में उन्होंने बहुत ही कुशलता से
साथ दुनिया के अनेक देशों में स्त्री की हैसियत को बयान कर दिया है.
पाउलिना मूलत:
चेकोस्लोवाकिया की रहने वाली हैं, जहां स्त्री की हैसियत एक दासी जैसी है. दिन भर
मेहनत मजदूरी, और शाम को घर लौट कर घर का सारा काम, पति की सेवा और उसके बाद भी उपेक्षा
और अपमान. लेकिन मात्र नौ बरस की उम्र में जब उन्हें स्वीडन जाना पड़ा तो वहां उन्हें एक नई ही दुनिया देखने को
मिली. स्कूल में उन्हें एक लड़के ने इस बिना पर थोड़ा सताया कि वे एक आप्रवासी हैं,
तो तुरंत ही उनकी एक दोस्त ने, जो कद-काठी में
बहुत छोटी थी, जम कर उस लड़के की कुटम्मस कर डाली. पाउलिना के
लिए यह बात कल्पनातीत थी लेकिन उन्हें इस बात से और अधिक आश्चर्य हुआ कि
उनकी कक्षा में किसी को भी यह बात असामान्य नहीं लगी. इस एक घटना से उन्हें यह बात
समझ में आ गई कि स्वीडन में उनकी हैसियत किसी लड़के से कमतर नहीं है. यह जैसे उनके
जीवन का पहला पाठ था. फिर तो उनका ध्यान इस बात पर भी गया कि स्वीडन में घर का काम
भी स्त्री-पुरुष मिल-जुल कर करते थे. खुद उनके पिता भी घर की सफाई और खाना पकाने
का काम निस्संकोच करने लगे थे. वैसे इसकी एक वजह यह भी थी कि तब तक वे अपनी
चेकोस्लोवाकियन पत्नी को तलाक देकर एक
स्वीडिश स्त्री को जीवन साथी बना चुके थे.
पाउलिना हाई स्कूल में पहुंची तो
उन्होंने नोटिस किया कि लड़के लड़कियों की तरफ आकर्षित होते हैं, उनके निकट आना चाहते हैं, लेकिन निर्णायक हैसियत लड़कियों की
है. वे चाहें तो उनके अनुरोध को स्वीकार करें, चाहे तो
अस्वीकार. और इस एहसास ने खुद उन्हें अपनी निगाहों में ताकतवर बनाया. वहां हाल यह
था कि कि अगर कोई लड़की किसी लड़के का प्रणय प्रस्ताव स्वीकार कर लेती तो वह लड़का
ईर्ष्या का पात्र बन जाता और इस बात का उत्सव मनाया जाता. लड़की को कोई बुरी निगाह
से नहीं देखता था. पाउलिना लिखती हैं कि स्कूल की नर्स बग़ैर कोई सवाल पूछे मांगने पर गर्भ निरोधक दे दिया करती थी और
स्कूल में दी जाने वाली सेक्स एजूकेशन की वजह से वे यौन रोगों और अवांछित गर्भधारण
के बारे में काफी कुछ जान गई थीं. सबसे बड़ी बात यह कि उन्हें यह समझ में आ गया था
कि स्त्रियां न केवल वह सब कुछ कर सकती हैं जो पुरुष कर सकते हैं, वे ऐसा भी कुछ
कर सकती हैं जो पुरुष कभी नहीं कर सकता. वे मां बन सकती हैं. और इस एहसास ने
उन्हें महसूस करा दिया कि स्त्रियां पुरुषों से अधिक सामर्थ्य रखती हैं.
लेकिन जब
पंद्रह की होने पर वे मॉडलिंग के लिए पेरिस गईं तो उनका ध्यान इस बात पर गया कि वहां
पुरुषों का बर्ताव स्त्रियों के प्रति
कितना भिन्न है! वे आगे बढ़कर स्त्रियों के लिए दरवाज़े खोलते हैं, उनकी डिनर का बिल चुकाने को तत्पर रहते हैं, और कुल
मिलाकर यह एहसास कराने की भरसक कोशिश करते हैं कि स्त्रियां बेहद नाज़ुक और इतनी
बेवकूफ होती हैं कि वे खुद का खयाल नहीं रख सकती हैं. यहां आकर पाउलिन को खुशी
नहीं हुई. लगा जैसे उनके पास जो ताकत थी, उसे ढक दिया गया
है! और फिर अठारह की होने पर वे अमरीका जा पहुंचती हैं, एक
अमरीकी से उन्हें प्रेम हो जाता है. वहां के बारे में अब तक की उनकी धारणाएं तेज़ी
से बदलने लगती हैं. वे एक चिकित्सिका के पास जाती हैं तो वो उनकी देह के बारे में
बड़े संकोच से बात करती है. और वहीं उन्हें यह एहसास होता है कि अमरीका में स्त्री
की देह पर खुद उसके सिवा सबका हक़ है. उसकी यौनिकता पर उसके पति का हक़ है, खुद अपने बारे में उसकी राय पर उसका नहीं उसके सोशल सर्कल का हक़ है,
और उसके गर्भाशय पर सरकार का हक़ है. सब चाहते हैं कि वो एक मां का,
एक प्रेमिका का और बहुत कम वेतन पर एक कामकाजी औरत का किरदार निभाये
और साथ ही छरहरी और युवा भी बनी रहे. पाउलिना बहुत अर्थपूर्ण टिप्पणी करते हुए
कहती है कि अमरीका में स्त्री को कहा तो यह जाता है कि तुम सब कुछ कर सकती हो, लेकिन जब वो ऐसा करने
की कोशिश करती है तो उसे धराशायी कर दिया
जाता है! और यह सब देख कर उन्हें लगता है कि जिस फेमिनिस्ट शब्द को वे भूल चुकी
थीं, उसे फिर से याद कर लेना ज़रूरी है!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 13 जून, 2017 को फेमिनिज़्म की कसौटी पर पश्चिमी देश शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.