पिछले कुछ बरसों से भारत
सहित दुनिया के बहुत सारे देशों में दुबलापन सौंदर्य का एक महत्वपूर्ण पैमाना रहा
है. भारत में हमने अनेक फैशनेबल अदाकाराओं की तारीफ़ के संदर्भ में साइज़ ज़ीरो की भी
खूब चर्चाएं सुनी हैं. लेकिन इधर हाल में सारी दुनिया में फैशन, सौंदर्य और सुरुचि के मामले में अव्वल माने जाने वाले
देश फ्रांस की सरकार ने एक ऐसा बिल पारित किया है जो इस प्रतिमान के खिलाफ़ जाता
है. संवाद समिति रायटर्स के अनुसार फ्रेंच संसद में लाए गए इस बिल में प्रावधान
किया गया है कि ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए
मॉडल के रूप में काम करना प्रतिबंधित होगा जिसका शरीर द्रव्यमान सूचकांक
यानि बीएमआई (बॉडी मास इण्डेक्स) स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा प्रस्तावित और
स्वास्थ्य एवम श्रम मंत्रियों द्वारा आदेशित स्तर से कम होगा. यह भी स्पष्ट कर
दिया गया है कि अगर कोई मॉडलिंग एजेंसी ऐसे किसी मॉडल की सेवाएं लेती पाई गईं
जिसका बीएमआई विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से कम है तो उसे छह माह तक का कारावास और पिचहत्तर हज़ार यूरो का आर्थिक दण्ड भुगतना होगा. हर मॉडल को डॉक्टर से इस आशय का एक प्रमाण पत्र भी
लेना होगा कि उसकी सेहत उसके काम के लिए उपयुक्त है, और वह
दो वर्ष के लिए वैध होगा. कहा गया है कि सरकार यह बिल अत्यधिक दुबलेपन के
आदर्शीकरण को रोकने और क्षुधा अभाव (एनोरेक्सिया) को नियंत्रित करने के इरादे से लाई है. यहीं यह याद कर लेना भी उचित होगा कि पूरी दुनिया में दुबले होने के इस
उन्माद ने अनेक जानें ली हैं और फ्रांस से पहले इज़राइल, स्पेन
और इटली भी इस तरह के कानूनी प्रावधान कर इस घातक प्रवृत्ति पर रोक लगाने के
प्रयास कर चुके हैं.
असल में शरीर
द्रव्यमान सूचकांक यह बताता है कि किसी के शरीर का भार उसकी
लंबाई के अनुपात में ठीक है या नहीं. भले ही असलियत में यह सूचकांक शरीर की चर्बी को नहीं मापता है इसे किसी व्यक्ति की ऊंचाई के आधार पर एक स्वस्थ
शरीर के वज़न का आकलन करने के लिए एक उपयोगी उपकरण माना जाता है. अगर किसी का बीएमआई सही नहीं है, तो उसे डायबिटीज, स्ट्रोक, हाई ब्लड प्रेशर, हाई एलडीएल कोलेस्ट्रॉल, हार्ट डिजीज़ और ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसे
स्वास्थ्य जोखिम का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन इस सूचकांक की अपनी सीमाएं
भी हैं और इसे सौ फीसदी सही नहीं माना जाता है.
और शायद ये ही कारण रहे होंगे कि फ्रांस में भी बहुत सारे लोग
वहां की सरकार के इस फैसले के विरोध में अपनी आवाज़ उठाने लगे हैं. उनके तर्क भी
आधारहीन नहीं कहे जा सकते. उनका कहना है कि दुबलापन हमेशा ही रोगी होने का परिचायक
नहीं होता है और जब आप एनोरेक्सिया की बात करते हैं तो उसका निर्धारण केवल और केवल
बॉडी मास इण्डेक्स के आधार पर करना उचित नहीं है. उसके असंतुलन के पीछे अन्य कारण, जैसे मनोवैज्ञानिक और कोई अन्य शारीरिक
विकार या व्याधि भी हो सकते हैं. मसलन किसी को दांतों की समस्या हो या कोई अपने
बाल झड़ने से व्यथित हो तो वह भी एनोरेक्सिया का शिकार हो सकता है. इन तमाम तर्कों
को अपने वक्तव्य में समेटते हुए फ्रांस की नेशनल यूनियन ऑफ मॉडलिंग एजेंसीज़ की
मुखिया इज़ाबेल सेण्ट फेलिक्स ने कहा है कि “बेशक यह बात महत्वपूर्ण है कि मॉडल्स
सेहमतमंद हों, लेकिन यह
मान बैठना कि अगर हम बहुत दुबली मॉडल्स से निज़ात पा लेंगे तो फिर कोई एनोरेक्सिया पीड़ित बचेगा ही नहीं,
अति सरलीकरण होगा.” इज़ाबेल की बात को ही आगे बढ़ाते हुए वहां की एक
जानी मानी मॉडल लिण्डसे स्कॉट ने खुद अपना उदाहरण देते हुए कहा कि जब वो कॉलेज में
पढ़ती थीं तो उनका बीएमआई अठारह से कम था, लेकिन वे स्वस्थ
थीं.
फ्रांस में एक और कानून
बनाया गया है जिसके तहत अगर किसी मॉडल की छवि को तकनीकी रूप से संवार कर प्रस्तुत
किया जाएगा तो उस फोटो पर यह बात स्पष्ट रूप से अंकित की जाएगी कि उसे रीटच किया
गया है. ज़ाहिर है कि ये दोनों कानून दुबलेपन को अतिरिक्त महत्व देकर उसे युवा पीढ़ी
के लिए अनुकरणीय आदर्श के रूप में स्थापित करने के खिलाफ़ हैं. वहां हो रहे तमाम
विरोधों के बावज़ूद फ्रांस सरकार अपने फैसले पर अटल है. वहां की स्वास्थ्य मंत्री ने भी यही कहा है कि हम तो यहां
की उन युवतियों को एक संदेश देना चाहते हैं जो इन बेहद दुबली मॉडल्स को अपने लिए
सौंदर्य की मिसाल मान बैठी हैं.
●●●
जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 09 मई, 2017 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.