जब भी आज के बच्चों और किशोरों की चर्चा
होती है, वह घूम फिर कर उन बहुत
सारी चीज़ों के इलाके में प्रवेश कर जाती है जो इनकी मानसिकता को दूषित या विकृत कर
रहे हैं. और इस इलाके में जो नाम आते हैं
उनमें बहुत महत्वपूर्ण होता है वीडियो गेम्स का नाम. अगर आप अपने घर-परिवार या
जान-पहचान वालों के बच्चों और किशोरों से उनके प्रिय वीडियो गेम्स के नाम और उनकी
विषय वस्तु के बारे में पड़ताल करें तो पाएंगे कि उनमें से ज़्यादातर को बंदूकों और
मार-धाड़ वाले गेम्स बेहद पसंद हैं.
स्वाभविक ही है कि दुनिया भर के सोचने-समझने वाले लोग यह मानते हैं कि इस तरह के
वीडियो गेम्स बच्चों किशोरों और युवाओं की मानसिकता पर बहुत बुरा असर डाल रहे हैं.
लेकिन इन खेलों का आकर्षण इतना प्रबल है कि इन चिंतकों और इनकी बात से सहमत
अभिभावकों के सारे प्रयासों के बावज़ूद इनकी लोकप्रियता घट नहीं रही है.
लेकिन इधर एक नई बात सामने
आई हैं जो चौंकाने के साथ-साथ प्रसन्न भी करती है. वीडियो खेलों के जानकारों ने
बताया है कि सारे के सारे वीडियो गेम्स हिंसक और क्रूर नहीं हैं. उनमें से बहुत
सारे खेल सदाचरण भी सिखाते हैं और सादगी एवम पवित्रता से परिपूर्ण ग्राम्य जीवन की
तरफ भी ले जाते हैं. असल में खेलों की इस दुनिया में बहुत विविधता है और जिनके
कारण इस दुनिया को बुरी निगाहों से देखा जाता है उन खेलों के अलावा अनगिनत खेल ऐसे
भी मौज़ूद हैं जो आपको जीवन के सकारात्मक पक्षों की तरफ ले जाते हैं. और जैसे इतना
ही पर्याप्त न हो,
हिंसा प्रधान खेलों में भी ऐसे बहुत सारे खेल हैं जो हिंसा के बहाने
उसके कारणों पर सोचने को मज़बूर कर अंतत: आपको हिंसा से दूर ले जाते हैं. इस तरह के
खेलों को इनके विशेषज्ञ अध्येताओं ने ‘गम्भीर’ या ‘सहानुभूति परक’ खेलों का नाम दिया है.
इन खेलों की तरफ पूरी
दुनिया का ध्यान इस वजह से भी गया है कि हाल में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इनका
नोटिस लिया है. यूनेस्को की एक इकाई महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ एज्यूकेशन फॉर
पीस (UNESCO-MGIEP) ने हाल में टोरण्टो के एक शोधार्थी को यह दायित्व सौंपा है कि वो इस तरह
के खेलों का गम्भीर और विशद अध्ययन कर एक रिपोर्ट तैयार करे. टोरण्टो के रॉयल
सेण्ट जॉर्ज कॉलेज के इस शिक्षक पॉल
दरवासी का स्पष्ट मत है कि अगर ठीक से इनका प्रयोग किया जाए तो वीडियो गेम्स
सम्वेदनाओं के प्रेरक बनने के मामले में फिल्म और किताबों जैसे पारम्परिक माध्यमों
की तुलना में अधिक प्रभावशाली साबित हो सकते हैं. अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए
वे कहते हैं कि इन वीडियो खेलों की ख़ास बात यह है कि जब आप इन्हें खेलते हैं तो आप
खुद निर्णय भी करते और उन निर्णयों के परिणामों से भी दो-चार होते हैं. और इस सबके
कारण आप स्थितियों के यथार्थ के और अधिक
निकट जा पहुंचते हैं. पॉल दरवासी का मत है कि इन खेलों में भिन्न-भिन्न नज़रिये और जीवनानुभव वाले लोगों के बीच अधिक
गहरी समझ विकसित करने की अपार सम्भावनाएं छिपी हुई हैं. उन के मत की पुष्टि ऊपर उल्लिखित इंस्टीट्यूट के
डाइरेक्टर अनंता दुरैप्पा ने भी यह कहते हुए की है कि वीडियो खेल पारम्परिक कक्षा
अध्यापन से अधिक प्रभावी हैं.
इन गंभीर अथवा
सहानुभूतिपरक खेलों में से बहुत सारे ऐसे हैं जो हाल की त्रासदियों या चर्चित
घटनाओं जैसे ईरानी क्रांति, बोस्नियाई
युद्ध के दौरान साराजेवो के घेराव, 1994 के रवाण्डा के
नरसंहार आदि पर आधारित हैं. लेकिन इन सारे
खेलों की ख़ासियत यह है कि जब आप इन्हें खेलते हैं तो आप शक्तिशाली न होकर
अरक्षितता की अवस्था में होते हैं. आप जो भी कदम उठाते हैं वह खुद बंदूक उठाने
जितना ही रोमांचक होता है, लेकिन इन खेलों का नियोजन कुछ इस
तरह से किया गया है कि इन्हें खेलते हुए आप खबरों को नई निगाह से देखने, दूसरों के साथ बर्ताव के नए तौर–तरीकों और अपने मत का अधिक विवेक सम्मत
प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित होते हैं.
इन सब बातों के कारण सामाजिक
न्याय की शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह के खेलों की उपादेयता से यूनेस्को इतना
प्रभावित हुआ है कि खुद उसने भी अपने स्तर पर दो खेल लॉंच करने का निर्णय कर लिया
है. ऐसा एक खेल है ‘वर्ल्ड
रेस्क्यू’ जो बस
रिलीज़ होने ही वाला है और इसमें खिलाड़ियों से चाहा गया है कि वे रोग, वनोन्मूलन और सूखे जैसी वैश्विक समस्याओं के समाधान तलाश करें. दूसरा खेल
जो अब तक अनाम है, उसमें खिलाड़ियों के सामने यह चुनौती रखी जाएगी
कि वे अल्प कालीन सम्पदा सृजन और दीर्घ कालीन संवहनीयता के बीच संतुलन कैसे साधें.
उम्मीद करनी चाहिए कि
वीडियो गेम्स के इस सकारात्मक पहलू से हमारी दुनिया को बेहतर बनाने में कुछ मदद
मिलेगी.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 07 मार्च, 2017 को 'बहुत कुछ शिक्षाप्रद भी है वीडियो गेम्स में' शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.