Tuesday, February 28, 2017

जिसे आप देखते हैं वो भी आपको देख सकता है!



भारत में टेलीविज़न कार्यक्रमों के संदर्भ में प्राय: टीआरपी की चर्चा होती है. कार्यक्रम प्रसारित करने वाले चैनल और उन कार्यक्रमों के बीच अपने उत्पादों के विज्ञापन दिखाने वालों के लिए इस टीआरपी की अहमियत से हम सब भली भांति परिचित हैं. लेकिन अमरीका में बात इससे काफी आगे निकल चुकी है, और ज़ाहिर है कि आज जो वहां हो रहा है वो देर-सबेर अपने यहां भी हो ही जाएगा. वहां ऐसी बहुत सारी कम्पनियां सक्रिय हैं जो आपके टीवी देखने के तौर तरीकों का बहुत ज़्यादा बारीकी से अध्ययन करती हैं.

ऐसी ही एक कम्पनी टीविज़न है जिसने बोस्टन, शिकागो और डलास क्षेत्र में दो हज़ार घरों के करीब साढ़े सात हज़ार टीवी दर्शकों की टीवी  देखने की आदतों का सूक्ष्म अध्ययन करने के लिए इन घरों में टीवी सेट्स के ऊपर एक छोटा-सा  उपकरण रख दिया है और इस उपकरण के माध्यम से वे लोग यहां तक लक्ष्य करते हैं कि घर का कौन-सा  सदस्य किस प्रोग्राम को देखते हुए कितनी बार आपनी आंखें उस प्रोग्राम से हटाता है, कितनी बार वो अपने फोन को देखता है और कितनी बार मुस्कुराता या नाक भौं सिकोड़ता है. यह उपकरण टीवी देखने वालों की आंखों का सूक्ष्म अध्ययन  करता है. इन सारी जानकारियों के विश्लेषण से यह पता लगाया जाता है कि कौन-सा प्रोग्राम या कौन-सा कमर्शियल अधिक गहन दर्शक जुटा पा रहा है.  यानि यह जानने का प्रयास किया जाता है कि जो लोग किसी ख़ास समय में एक चैनल को ट्यून करके एक ख़ास  प्रोग्राम चला रहे हैं, वे उस प्रोग्राम  को कितनी तल्लीनता से देख रहे हैं.  कम्पनी इस प्रोग्राम में सहभागिता के लिए सहमत होने वालों को कुछ धनराशि भी प्रदान करती है. और साथ ही वह यह आश्वासन भी देती है कि भाग लेने वालों की पहचान सार्वजनिक नहीं की जाएगी. रिकॉर्ड मात्र यह होता है कि अमुक समय में टीवी देखते हुए घर क्रमांक पंद्रह के दर्शक क्रमांक एक सौ बीस  का बर्ताव यह था.

अमरीका जैसे देश में इस तरह के अध्ययनों की महत्त इसलिए और बढ़ जाती है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार वहां कम्पनियां टीवी पर विज्ञापनों पर  हर बरस सत्तर बिलियन डॉलर की बहुत बड़ी राशि  खर्च करती है और उनके लिए यह जानना बेहद ज़रूरी होता है कि लोग उनके कमर्शियल वाकई देख भी रहे हैं या नहीं. यहीं यह भी बताता चलूं कि इस नई व्यवस्था से पहले अमरीका में यह काम करने में नील्सन कम्पनी अग्रणी मानी जाती थी जो सिर्फ़ यह पता करती थी कि किसी प्रोग्राम को कितने लोग देख रहे हैं. यह कम्पनी अपने 42,500 परिवारों से प्राप्त जो आंकड़े जुटाती थी उनके आधार पर अमरीकी कम्पनियां यह तै करती रही हैं कि वे अपने विज्ञापन का बजट कहां-कहां खर्च करें. लेकिन अब क्योंकि दुनिया बहुत जटिल होती जा रही है दर्शकों की रुचियों के अध्ययन  के तौर तरीके भी बदल रहे हैं. एक तो यही बात कि आज का दर्शक एक ही समय में अनेक काम (मल्टीटास्किंग) करता रहता है.  

टीविज़न की ही तरह एक और कम्पनी है सिम्फ़नी एडवांस्ड मीडिया जिसने अमरीका के साढे- सत्रह हज़ार लोगों के एण्ड्रॉयड मोबाइल  फोनों पर एक एप स्थापित किया है, जो यह रिकॉर्ड  करेगा कि वे अपने फोन पर क्या-क्या देखते हैं. इतना ही नहीं, इस एप में यह भी अंकित किया जाएगा कि सम्बद्ध व्यक्ति जो देख रहा है वह कहां पर, मसलन घर पर, बस में या किसी बार में, देख रहा है. कम्पनी इसके लिए हर माह पांच से बारह डॉलर तक उस व्यक्ति को देगी. इसी तरह एक और कम्पनी है रियलिटी माइन जिसने पांच हज़ार लोगों लगभग नब्बे डॉलर प्रति वर्ष देकर उनके इण्टरनेट कनेक्शन की जासूसी करने की अनुमति हासिल की है.

इन सारी कोशिशों का मकसद यह जानना है कि आज का उपभोक्ता अपने मीडिया को किस तरह बरत रहा है. कहना अनावश्यक है कि इस तरह प्राप्त की गई जानकारी का प्रयोग कार्यक्रमों को बेहतर बनाने और विज्ञापनों की पहुंच तथा प्रभाव को को और प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाना है. लेकिन इस पूरे किस्से का एक और पहलू है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता और वह है उपभोक्ता की निजता के हनन का. कहा जा सकता है कि जो किया जा रहा है वह उपभोक्ता की अनुमति और  सहमति से किया जा रहा है, लेकिन ज़िंदगी के और क्षेत्रों की तरह ही यहां भी काफी  कुछ ऐसा हो रहा है जो अनुचित है. हाल में यह बात भी सामने आई है कि अमरीका की ही इंटरनेट से जुड़े टीवी प्रसारण वाली सबसे बड़ी कम्पनी ने इस आरोप से मुक्ति  पाने के लिए कि वो  लाखों स्मार्ट टीवी उपभोक्ता के टीवी देखने के  आंकड़े बग़ैर उनकी इजाज़त और जानकारी के इकट्ठा करती और बेचती रही है सवा दो मिलियन डॉलर देने की पेशकश की है.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 28 फरवरी, 2017 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ. ,