कुछ समय
पहले बॉलीवुड के स्टार सलमान खान के एक कथित बयान को लेकर काफी विवाद हुआ था.
खबरें आई थीं कि उस समय कुश्ती पर आधारित उनकी तब एक आने वाली फिल्म के सन्दर्भ
में उन्होंने कहा था कि जब वे रिंग से बाहर निकलते थे तो उन्हें रेप की शिकार हुई
महिला जैसा महसूस होता था क्योंकि वे सीधे
नहीं चल पाते थे. सलमान खान के इस बयान को कुरुचिपूर्ण, असंवेदनशील और
स्त्री विरोधी माना गया था. लेकिन अगर इस बयान से हटकर देखें और सोचें तो पाएंगे
कि दूसरों की जगह खुद को रखकर देखने की प्रवृत्ति सामान्य तथा स्वाभाविक है. हम प्राय: लोगों से यह उम्मीद करते हैं कि वे
खुद को उन स्थितियों में रखकर देखें जिनमें औरों को रहना पड़ता है. ऐसा असुविधाजनक स्थितियों के सन्दर्भ
में आम तौर पर होता है. यह सारी बात मुझे याद आई है जापान से आई एक खबर के सन्दर्भ
में.
एक
प्रतिष्ठित संगठन इण्टरनेशनल सोशल सर्वे प्रोग्राम ने अपनी एक रिपोर्ट में जब यह
बात बताई कि जापानी पति घर का कोई काम न करने और बच्चों की देखभाल के दायित्व से
दूरी बरतने के मामले में दुनिया भर के पतियों की बिरादरी में अग्रणी हैं, तो खुद
जापान के ही कुछ पतियों को अपनी यह ‘ख्याति’ नागवार गुज़री और उन्हें लगा कि इस छवि
को बदलने के लिए कुछ किया जाना चाहिए. इसी
रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि जापान के क्युशु और यामागुची क्षेत्र इस लिहाज़
से और भी अधिक गए गुज़रे हैं क्योंकि वहां के पतिगण तो शेष जापानी पतियों से भी गये
बीते हैं. आंकड़ों की मदद से यह भी बताया गया कि वहां की बीबीयों को अपने पति देवों
की तुलना में सात गुना काम करना पड़ता है. इस रिपोर्ट से लज्जित पतियों ने अब वहां
एक अभियान शुरु किया है जिसका नाम है ‘क्युशु/यामागुची जीवन-कार्य संतुलन अभियान’.
इस अभियान के माध्यम से इन क्षेत्रों के नागरिकगण को इस बात के लिए प्रोत्साहित और
प्रेरित किया जाता है कि वे अपने कामकाजी जीवन और घरेलू जीवन को एक दूसरे के ज़्यादा नज़दीक लाएं और अपनी कामकाजी दुनिया को इस
लिहाज़ से अधिक लचीली बनाएं कि वह कामगारों के लिए उनके बच्चों के पालन-पोषण के लिए
अधिक अनुकूल बन सके.
इसी
अभियान के एक और कदम के रूप में यह प्रयास भी किया जा रहा है कि पुरुष स्वयं यह
अनुभव करें कि गर्भवती महिलाओं को किन असुविधाओं से दो-चार होना पड़ता है. और इस अनुभव-अभियान में आगे आए हैं उस इलाके के तीन
वर्तमान गवर्नर्स. सागा, मियाज़ाकी और यामागुची के इन गवर्नर्स ने खुद पहल करके सात
दशलव तीन किलो वज़न वाले ऐसे जाकेट पहन लिये हैं जिनसे वे सात माह की गर्भवती
स्त्री जैसे दिखने और अनुभव करने लगे हैं. इन जाकेटों को पहन कर वे खुद यह महसूस
कर रहे हैं उतने भारी बोझ और उभार के साथ
नौकरी करना, बाज़ार में जाकर खरीददारी करना, कपड़े धोना, बर्तन माँजना वगैरह सारे काम करना कितना असुविधाजनक और कष्ट साध्य
होता है. कहना अनावश्यक है कि अब खुद उन्हें यह महसूस हुआ है कि गर्भावस्था में
स्त्रियों को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. साहित्य में जिसे परकाया प्रवेश
कहते हैं, यह वैसा ही कुछ है.
ये
गवर्नर्स जाकेट पहन कर अपने रोज़मर्रा के काम निबटा रहे हैं, उनकी एक वीडियो भी बना
ली गई और उसके माध्यम से वहां के पुरुषों को यह दिखाया और समझाया जा रहा है कि
गर्भावस्था में सीढियां चढ़ने-उतरने या
सिंक में बर्तन रखने-निकालने या किसी सुपरमार्केट की नीचे वाली शेल्फ से कोई चीज़
निकालने जैसे सामान्य काम भी कितने मुश्क़िल
हो जाते हैं. पूरी देह असह्य पीड़ा
से भर उठती है. मोजे पहनने उतारने, या कार में घुसने-निकलने जैसे बेहद ज़रूरी
रोज़मर्रा के कामों में जो असुविधा होती है उसे इस वीडियो में बखूबी प्रदर्शित किया
गया है. यामागुची के गवर्नर योशिनोरी ने ठीक ही अनुभव किया है कि हालांकि गवर्नर
बनने के बाद उन्हें बहुत सारे नए अनुभव प्राप्त
हुए हैं, एक गर्भवती स्त्री के ये अनुभव उनसे बहुत अलहदा हैं और इन अनुभवों
का उन पर बहुत गहरा असर पड़ा है.
बहुत सुखद
बात यह है कि इस ‘क्युशु/यामागुची जीवन-कार्य संतुलन अभियान’ को वहां के लोगों ने
खुले मन से अपनाया है और जिन पुरुषों ने इस अभियान से जुड़कर गर्भवती स्त्रियों की
अनुभूति को जिया उनमें से 96.7 प्रतिशत ने यह स्वीकार किया है कि पुरुषों को भी घर
के काम-काज और बच्चों की परवरिश में भागीदारी निबाहनी चाहिए. बेशक, सिर्फ भारी
जाकेट पहन लेना वो सारे अनुभव प्रदान नहीं कर सकता जो एक गर्भवती स्त्री को
वास्तविक जीवन में होते हैं, लेकिन इससे एक शुरुआत तो हुई ही है. स्त्री-पुरुष में
एक दूसरे की सुविधाओं-असुविधाओं को लेकर समझ का विस्तार हो, इससे बेहतर और क्या
बात हो सकती है!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 04 अक्टोबर, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.