Tuesday, August 2, 2016

ईरानी महिलाओं ने हिजाब को बदला परचम में

हमारा समय बड़ा दिलचस्प है. बहुत सारे आन्दोलन सोशल मीडिया के मंचों पर ही चला लिए जाते हैं. इन दिनों एक रोचक मुहिम चल रही है जिसे चुनौती स्वीकार का नाम दिया गया है. चुनौती यह है कि फ़ेसबुक पर अपना डिस्प्ले पिक्चर (डीपी) श्वेत श्याम लगाएं! जहां सारी दुनिया रंगों की तरफ़ बढ़ रही हो और अपने देश में भी रंगों की ऐसी हवा चल रही हो कि पुरानी  क्लासिक श्वेत श्याम फिल्मों को रंगीन बनाया जा रहा हो वहां धार के विपरीत बहने की इस कोशिश को चैलेंज  कहा गया है.  कुछ समय पहले एक और मुहिम सोशल मीडिया के मैदान  में चलाई गई थी. उस मुहिम के तहत बहुत सारे लोगों ने अपनी डिस्प्ले पिक्चर्स को सतरंगी बना दिया था. लेकिन यहीं यह याद दिला देना भी उचित होगा कि उस मुहिम का एक ज़ाहिर मक़सद था. मक़सद था एलजीबीटी समुदाय के प्रति अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करना. यह बात अलहदा है कि अपनी तस्वीर को सतरंगी बनाने  वालों में से बहुतों को इस समुदाय के बारे में कोई  जानकारी नहीं थी, इसको समर्थन  देना तो बहुत दूर की बात है.

लेकिन ऐसा नहीं है कि सामाजिक मीडिया के मंचों पर होने वाली सारी मुहिमें तस्वीरों से रंग चुरा लेने जैसी ही होती हैं. इधर ईरान में सामाजिक मीडिया के मंचों पर बहुत ज़ोर-शोर से एक  मुहिम चल रही है.  वह इस तरह की बहुत सारी मुहिमों से अलहदा है. वहां चल रही इस मुहिम के तहत पुरुष अपना सर ढककर ली गई तस्वीरों को सामाजिक मीडिया पर साझा कर रहे हैं. इसी मुहिम के विस्तार के रूप में वहां की स्त्रियां बिना हिजाब के यानि सर ढके बिना ली गई तस्वीरें सामाजिक मीडिया पर साझा  कर रही हैं. कुछ महिलाएं मुण्डवाए हुए सरों की छवियां भी पोस्ट कर रही हैं.  असल में यह ईरान के स्त्री विरोधी कानूनों के खिलाफ़ चलाया जा रहा एक प्रतिरोधी अभियान है. 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान में एक कानून के तहत महिलाओं को अपना पूरा सर ढकना होता है. अगर उनके केश भी दिखाई दे जाएं तो इसे अवांछित हरक़त माना जाता है. सरकार के खर्चे से लगाए गए बड़े-बड़े होर्डिंग्स में यह कहा जाता है कि जो महिलाएं अपना सर नहीं ढकती हैं या जिनके केश दिखाई देते हैं वे बिगड़ैल और ग़ैर इज़्ज़तदार हैं.  वहां इस क़ानून का सख़्ती से पालन कराने के लिए ‘गश्ते इरशाद’ नामक संगठन के हज़ारों पुलिसवाले नियमित रूप से  सड़कों पर गश्त करते हैं. इस क़ानून का उल्लंघन करने पर जुर्माने  के साथ जेल भी हो सकती है. मई में ईरान की पुलिस ने बिना हिजाब पहने इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया वेबसाइटों पर तस्वीर पोस्ट करने पर आठ महिलाओं को हिरासत में ले लिया था. वहां की सरकार इस कानून  को लेकर इतनी गम्भीर है कि उसकी मंशा को समझ कर एयर फ़्रांस ने हाल ही में अपनी महिलाकर्मियों से कहा था कि ईरान की राजधानी तेहरान जानी वाली फ़्लाइटों के दौरान वे हिजाब पहनें. लेकिन एयर फ्रांस की इस सलाह ने ही इस प्रतिरोधी अभियान  को भी प्रेरित कर डाला.

प्रतिरोध स्वरूप न्यूयॉर्क में रह रहीं ईरान की जानी-मानी पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मसीह अलीनेजाद ने अपने लोकप्रिय फ़ेसबुक पृष्ठ ‘माई स्टेल्थी फ़्रीडम’ (मेरी गुप्त आज़ादी) के माध्यम से यह अभियान शुरु किया. मसीह अलीनेजाद के इस पृष्ठ  से दस लाख से भी  ज़्यादा लोग जुड़े हुए हैं. इस पृष्ठ एक पोस्ट किए गए एक वीडियो पर आई फ़ातेनाह अंसारी की एक टिप्पणी में इस मुहिम की महत्ता को इस तरह प्रकट किया गया है:  “महिलाओं को हिजाब लगाने के लिए मज़बूर किए जाने के छत्तीस बरस बाद आखिरकार पुरुष भी महिलाओं के समर्थन में आने लगे हैं.” एक अन्य व्यक्ति ने इस मुहिम को इन शब्दों में और अधिक स्पष्ट किया है: “मैं चाहता हूं कि मेरी पत्नी एक ऐसे ईरान में रह सके जहां सिर्फ़ वो तै करे कि उसे क्या पहनना है. ईरान में पड़ने वाली भीषण गर्मी के बावज़ूद महिलाओं के लिए ऐसे कपड़े पहन पाना बहुत मुश्क़िल है.”  ख़ुद मसीह अलीनेजा ने बड़े तल्ख़ शब्दों में कहा है कि “हमारे समाज में किसी स्त्री के अस्तित्व और उसकी पहचान की कसौटी  पुरुष का नज़रिया  है और बहुत सारे मामलों में किसी धार्मिक सत्ता या सरकारी अफसर के उपदेश ही पुरुष के स्त्री पर स्वामित्व के भ्रामक  सोच को निर्धारित कर डालते  हैं. इसलिए मैंने सोचा  कि क्यों न स्त्री अधिकारों का समर्थन करने के लिए पुरुषों को आमंत्रित किया जाए.”
यह माना जाता है कि इस्लाम स्त्री और पुरुषों की समानता का पक्षधर है, लेकिन ईरानी कट्टरपंथियों द्वारा सिर्फ आधी आबादी की स्वाधीनता पर लगाए प्रतिबंध के विरुद्ध यह अभियान हमें मजाज़ की इन पंक्तियों की याद दिलाता है: तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन/ तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था।           


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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अन्तर्गत मंगलवार, 02 अगस्त, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.