Tuesday, July 12, 2016

सिटी ऑफ कल्चर का जश्न एक अनूठे अन्दाज़ में

हाल में इंग्लैण्ड के पूर्वी यॉर्कशायर के किंग्स्टन शहर  में एक अनूठा आयोजन हुआ. अमरीका के एक जाने-माने छायाकार स्पेंसर ट्यूनिक ने इस किंग्स्टन शहर की  फेरेन्स आर्ट गैलेरी के बुलावे पर करीब बत्तीस सौ लोगों का एक इंस्टॉलेशन निर्मित करवाया. फेरेन्स गैलेरी वालों ने यह आयोजन अगले बरस हल शहर को यूके सिटी ऑफ कल्चर के रूप में  नामित किये जाने के उत्सव के एक अंग के रूप में किया था. न्यूयॉर्क के मिडलटाउन के एक यहूदी परिवार में जन्मे फोटोग्राफर स्पेंसर ट्यूनिक की ख्याति ऐसे ही विशालकाय इंस्टॉलेशन को शूट करने के लिए है. वे पिछले बीस बरसों में सिडनी के ऑपेरा हाउस, मॉण्ट्रियल के प्लेस डेस आर्ट्स, मेक्सिको सिटी, विएना के एरनेस्ट हैप्पल स्टेडियम और जर्मनी के म्यूनिख शहर जैसे अनेक बड़े सांस्कृतिक केन्द्रों पर ऐसे नब्बे से ज़्यादा आर्ट इंस्टॉलेशन बनवा और उन्हें शूट कर  चुके हैं.

स्पेंसर ट्यूनिक के इस इंस्टॉलेशन  के लिए काफी पहले से तैयारियां शुरु कर दी गई थीं और नागरिकों से अनुरोध किया गया था कि वे इसके लिए पंजीकरण करा लें. इस इंस्टॉलेशन के लिए स्पेंसर को ढाई से तीन हज़ार के बीच लोगों  की ज़रूरत थी लेकिन नागरिकों का  उत्साह इतना सघन था कि बत्तीस सौ नागरिक निर्धारित स्थल पर पहुंच गए. हल के सिटी सेण्टर को जाने वाले सारे रास्ते आधी रात से अगली सुबह दस बजे तक के लिए बन्द कर दिये गए थे. नागरिक गण बताए गए स्थान पर सुबह तीन बजे से एकत्रित होने लगे थे. उनमें युवा भी थे और वृद्ध भी. सशक्त भी और अशक्त भी. तेज़-तेज़ चल कर आने वाले भी तो बैसाखियों के सहारे बमुश्क़िल आने वाले या व्हील चेयर्स पर बिठा कर लाये जाने वाले भी. और अब इस इंस्टॉलेशन की खास बात बता दूं. इस इंस्टॉलेशन में सारे नागरिकों को निर्वस्त्र होकर हिस्सा लेना था. उनकी सहायता के लिए बहुत सारे अवैतनिक स्वयंसेवक भी मौज़ूद थे जिन्होंने उन्हें निर्वस्त्र होने में और फिर उनकी देहों को रंगने में मदद की. इन स्वयंसेवकों को ‘न्यूड रेंगलर्स’  अर्थात निर्वस्त्र लड़ाकों का नाम दिया गया था. करीब तीन घण्टे चले इस फोटो शूट के लिए इन तीन हज़ार दो सौ लोगों को अपने तमाम वस्त्रादि उतार कर अपनी देह को चार अलग-अलग शेड्स वाले नीले रंग से रँगना था. इन चार शेड्स का चयन फेरेन्स की आर्ट गैलेरी के संग्रहालय की  कृतियों के आधार पर किया गया था.

जहां तक भाग लेने वालों की देह को रंगने का सवाल है, आयोजकों ने इसके पीछे दो मक़सद बताए. एक तो यह कि नीला रंग समुद्र का प्रतीक है और यह आयोजन वहां के समुद्रीय इतिहास की स्मृति में है और  इसीलिए ये  इंस्टॉलेशन किंग्स्टन शहर के समुद्रीय  इतिहास के लिहाज़ से महत्वपूर्ण एकाधिक स्थलों पर किए गए थे,  और दूसरी बात यह कि भाग लेने वालों को यह एहसास होगा कि उनके शरीर पर कोई आवरण तो है, भले ही वह रंग का ही क्यों न हो. यानि इस तरह उन्हें अपने संकोच से निज़ात मिल सकेगी. लेकिन जिन लोगों ने इस इंस्टॉलेशन में भाग लिया, उनमें से अधिकांश की प्रतिक्रियाओं से लगा कि उनके मन में संकोच जैसा कोई भाव आया ही नहीं. उदाहरण के लिए इस समूह में शामिल अस्सी वर्षीय कला संग्राहक स्टीफेन जानसेन को लीजिए जो चौंसठ बरस की उम्र से इस तरह के आयोजनों का हिस्सा बन रहे हैं और अब तक बीस बार उनमें शिरकत कर चुके हैं. उन्हें नग्नता की अपेक्षा शीत का भय था, लेकिन फिर उन्हें यह भी  याद आया कि 2008 में डब्लिन में तो मौसम बहुत ज़्यादा सर्द था.   

इतने बड़े जन समूह को देख स्पेंसर स्वाभाविक रूप से आह्लादित थे. उन्हें लगा जैसे एक विशालकाय किंतु नाज़ुक-लचीली  नीली देह और कंक्रीट की दुनिया आमने-सामने है और इसमें वे एक दिलचस्प गति देख रहे थे. इस मंज़र की एक और व्याख्या उन्होंने इस तरह की कि नीले जन समूह में उन्हें मौसम के बदलाव के कारण आया समुद्री ज्वार समुद्र दिखाई दिया. उन्हें लगा जैसे इन देहों के माध्यम से पूरी मानवता ही शहर की गलियों में प्रवाहित हो रही है.  
    
इन इस्टॉलेशंस पर आधारित स्पेंसर ट्यूनिक के छायाचित्रों की प्रदर्शनी सन 2017 में उस वक़्त आयोजित की जाएगी जब इस हल शहर को यूके सिटी ऑफ कल्चर घोषित करने के उत्सव आयोजित होंगे. यूके में हर चौथे साल किसी शहर को सिटी ऑफ कल्चर घोषित किया जाता है. आयोजकों का खयाल है कि इस इंस्टॉलेशन  के माध्यम से वे अपने शहर के हज़ारों लोगों को कलाकृति का हिस्सा बनने का भी अवसर दे रहे हैं. इंस्टॉलेशन में भाग लेने वले नागरिकों को हालांकि कोई पारिश्रमिक देय नहीं है, उनमें से जिनकी वय 18 से अधिक है उन्हें इस कृति का एक सीमित संस्करण वाला छायाचित्र प्रदान किया जाएगा.

इस इंस्टॉलेशन की जो छवियां अभी सामने आई हैं वे निस्संदेह स्पेंसर के काम के प्रति गहरी उत्कंठा जगाती हैं.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 12 जुलाई, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.