आम तौर पर हर नौकरी करने वाले की एक ही
शिकायत होती है कि उससे बहुत ज़्यादा काम लिया जा रहा है. इसी शिकायत को हमारे ‘ये
बेचारा काम के बोझ का मारा’ जैसे विज्ञापन भी अपना अप्रत्यक्ष समर्थन देते हैं.
लेकिन हाल में सुदूर पेरिस में एक कामगार फ्रेडरिक डेस्नार्ड ने इससे भिन्न ही
शिकायत की है. बहुत महंगे परफ्यूम्स के लिए विख्यात पेरिस की एक कम्पनी में दिसम्बर
2006 से काम कर रहे और वहां 2010 से 2014 के बीच जनरल सर्विस डाइरेक्टर रहे डेस्नार्ड
का कहना है कि कम्पनी उनसे बिना कोई काम लिये चार हज़ार डॉलर प्रतिमाह का भुगतान
करती रही. पैसा तो उन्हें ठीक मिल रहा था,
लेकिन केवल इतने भर से वो संतुष्ट नहीं थे. डेस्नार्ड ने अपने वकील की मार्फत
कम्पनी पर आरोप लगाया है कि हालांकि वे एक वरिष्ठ प्रबन्धकीय पद पर नियुक्त थे,
उनके वरिष्ठ जन उन्हें बॉय कहकर बुलाते और उनसे अपने बच्चों को खेल के मैदान से लाने जैसे बहुत
छोटे-मोटे निजी काम करवाते. बाद में तो उनके
पास करने को इतना कम काम रह गया कि उनके
बॉस ने उनसे यह कह दिया कि वो घर चले जाएं, जब उन्हें ज़रूरत होगी वे वे बुला लेंगे, और फिर
उन्होंने बुलाया ही नहीं. डेस्नार्ड का आरोप है कि उनसे कम काम
लेने की यह प्रक्रिया उन्हें नरक
में धकेलने का एक छद्म थी और यह उनके लिए
दु:स्प्वन साबित हुई. इससे उन्हें कई किस्म की स्वास्थ्य समस्याएं होने लगीं
जिनमें अल्सर, नींद की समस्या और गहन अवसाद शामिल हैं. इन्हीं समस्याओं के चलते
वे मिर्गी का दौरा पड़ने से एक कार
दुर्घटना का शिकार हुए, काफी दिनों तक कोमा में रहे और फिर उन्हें छह माह से भी ज़्यादा समय सिक लीव पर
रहना पड़ा. सन 2014 में इस सिक लीव पर रहते हुए ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया.
डेस्नार्ड ने इस मानसिक और शारीरिक
स्वास्थ्य क्षति के लिए तथा उन्हें न मिल सकी पदोन्नति की वजह से हुई क्षति की एवज में कम्पनी से चार लाख डॉलर
का हर्ज़ाना मांगा है. डेस्नार्ड ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए यह भी कहा है कि हालांकि
अपनी नौकरी के काल में उन्हें बहुत कम काम देकर नैतिक और विशेष रूप से शारीरिक रूप
से भी नष्ट किया जा रहा था फिर भी वे बिना किसी शिकायत के वहां बने रहे क्योंकि
उन्हें पता था कि नौकरियों के लिहाज़ से बाज़ार बहुत बुरे दौर से गुज़र रहा था. डेस्नार्ड
ने अपनी अवस्था के लिए एक नूतन अभिव्यक्ति ‘बोर आउट’ का प्रयोग किया है. असल में
एक प्रचलित अभिव्यक्ति है ‘बर्न आउट’ जिसका आशय है किसी को बहुत ज़्यादा काम के बोझ
के नीचे कुचल डालना. डेस्नार्ड की यह अभिव्यक्ति इसी का विलोम है, जिसका अभिप्राय
यह है कि किसी को बहुत कम काम देकर नष्ट
कर डालना. डेस्नार्ड के वकील का कहना है कि ‘बोर आउट’ को काम की कमी की वजह से
होने वाले नैतिक शून्यीकरण के रूप में समझा जा सकता है जिसके मूल में यह विचार
होता है कि मुझे कुछ नहीं करने के एवज़ में इतना पैसा दिया जा रहा है.
डेस्नार्ड के वकील ने आरोप लगाया है कि
कम्पनी की तो नीयत ही यही थी कि डेस्नार्ड
को इतना बोर कर डाला जाए कि वह खुद नौकरी छोड़ दे ताकि कम्पनी उसे काम से निकालने
पर देने वाले बेरोज़गारी भत्ते या और किसी
भी तरह के मुआवज़े के भुगतान से बच जाए. इस वकील ने कहा कि शुरु-शुरु में तो
डेस्नार्ड को ऐसा आदर्श कर्मचारी माना जाता था जो अपने काम के प्रति पूर्णतया
समर्पित है. लेकिन 2009 से उसको दिए जाने वाले काम में कटौती की जाने लगी और फिर
2012 में जब कम्पनी के हाथ से एक बड़ा अनुबंध फिसल गया और कम्पनी अपने बहुत सारे
कर्मचारियों को काम से निकालने पर मज़बूर होने लगी तब से उसके पास करने को कुछ रह
ही नहीं गया. डेस्नार्ड की इस शिकायत पर स्वाभाविक ही उनकी नियोजक कम्पनी ने अपना
बचाव किया और कम्पनी के वकील ने कहा कि अगर ऐसा था तो डेस्नार्ड अपने
उच्चाधिकारियों से या किसी कर्मचारी संगठन से इस बारे में कोई शिकायत क्यों नहीं
की.
कहा जा रहा है कि डेस्नार्ड का यह केस
फ्रांस में अपनी तरह का पहला केस है, हालांकि वहां की अर्थव्य्वस्था बहुत बुरे दौर
से गुज़र रही है. एक शोधकर्ता ने बताया है कि लगभग तीस प्रतिशत फ्रेंच कर्मचारी इसी
तरह के बोर आउट अवसाद के शिकार हैं. यह भी एक तथ्य है कि अभी तक फ्रेंच कानून में
इस अभिव्यक्ति बोर आउट को कोई स्वीकृति नहीं है.
देखना है कि फैसला किसके हक़ में आता है –
डेस्नार्ड के या कम्पनी के!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अन्तर्गत मंगलवार, 14 जून, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.