संयुक्त राज्य अमरीका के कैलिफोर्निया
राज्य के सान लियाण्ड्रो कस्बे में हाल ही
में एक नए तकनीकी ऑफिस कॉम्प्लेक्स में निजी ज़मीन पर स्थापित की गई एक कलाकृति को
लेकर घनघोर बहस हो रही है. तेरह हज़ार पाउण्ड वज़न वाली और पचपन फुट ऊंची यह कृति एक
निर्वसन नृत्यांगना की है. स्टील की जाली से निर्मित इस कृति में, जो कि आकार में माइकेलएन्जिलो की
विख्यात कृति डेविड से तीन गुनी है, एक स्त्री नृत्य की लालित्यपूर्ण मुद्रा में
खड़ी है और उसके हाथ ऊपर की तरफ उठे हुए हैं. जिस प्लेटफॉर्म पर यह मूर्ति स्थापित है उस पर विश्व की दस भषाओं में
एक सन्देश अंकित है जिसका भाव कुछ इस तरह है कि “जिस दुनिया में स्त्रियां सुरक्षित होंगी वो दुनिया
कैसी होगी!” इस मूर्ति का शीर्षक है: ट्रुथ इज़ ब्यूटी!
इस कृति का निर्माण सन 2013 में नेवाडा के
रेगिस्तान में आयोजित वार्षिक प्रतिसंस्कृति समारोह बर्निंग मैन के दौरान हुआ था.
जब सान लियाण्ड्रो में सार्वजनिक स्थलों पर कलाकृतियां लगाने का फैसला किया गया तो
यहां के प्रशासनिक अधिकारियों को उस परियोजना
के लिए यह मूर्ति बहुत उपयुक्त लगी और
उन्होंने इसे खरीद लिया. सान लियाण्ड्रो के मेयर अपनी इस उपलब्धि पर इतने प्रसन्न
थे कि उन्होंने कहा कि वे इसे पाकर गर्वित हैं. उन्होंने यह तो स्वीकार किया कि
प्रारम्भ में नगर प्रशासन के कुछ अधिकारी इस मूर्ति को लेकर उल्लसित नहीं थे,
लेकिन फिर उन्हें भी यह बात जंच गई कि इस मूर्ति के माध्यम से कला को लेकर एक
संवाद की शुरुआत मुमकिन है.
और संवाद ही तो शुरु हुआ है इस मूर्ति को
लेकर. संवाद भी और विवाद भी. कस्बे की एक सत्तावन वर्षीया नागरिक टॉनेट ने एक दिन
अपने काम पर जाते वक़्त इस मूर्ति को देखा और सवाल किया कि अगर यह एक बैलेरिना है
तो इसने कपड़े क्यों नहीं पहन रखे हैं? टॉनेट का कहना था कि अगर आपके भी बच्चे हों
तो आप नहीं चाहेंगे कि वे ऐसी मूर्तियां देखें. और जैसे उन्हीं के स्वर में स्वर
मिलाते हुए वहां की एक और नागरिक कीथ पहले तो बहुत ध्यान से इस मूर्ति को देखती
हैं और फिर मासूमियत से पूछती हैं, “यह इतनी विशाल क्यों है? और इसने कपड़े क्यों
नहीं पहने हैं?” दुर्भाग्य की बात यह कि जो बहस कला को लेकर होनी चाहिए वह उसकी
बजाय कृति के वस्त्रों (के अभाव) पर जाकर अटक गई है. और यहीं यह बात भी याद कर
लेना ज़रूरी लगता है कि इस मूर्ति के शिल्पकार मार्को कोचराने ने बताया था कि बचपन
में ही उनके मन पर एक पड़ोसी बालिका के साथ हुई बलात्कार की नृशंस घटना की अमिट छाप
अंकित हो गई थी और बड़े होकर अपनी कला के माध्यम से वे स्त्रियों पर होने वाले यौनिक
आक्रमणों और उनकी आशंकाओं को व्यक्त करते हुए यह बात कहना चाहते रहे हैं कि जब
स्त्रियां भयभीत नहीं होती हैं तब वे किस तरह की सशक्तता का अनुभव करती हैं. अगर
हम इस मूर्तिकार की व्याख्या के आलोक में इस शिल्प को देखें तो हमारी प्रतिक्रिया
निश्चय ही अलहदा और सकारात्मक होगी. उन्होंने कहा है कि इस शिल्प में वह स्त्री
खुद को सुरक्षित अनुभव कर रही है और खुद के प्यार में डूबी हुई है. मैं सोचता हूं
कि देखने वाले भी इसके इस प्यार को महसूस कर सकते हैं. मार्को ने यह भी कहा है है कि यह
स्त्री बहुत खूबसूरत है, और इस शिल्प का एक मकसद यह भी है कि यह पुरुषों को अपनी
तरफ खींचे. जब वे खिंच कर इसकी तरफ आएं और इसे देखें, तो उनका ध्यान इसके नीचे
अंकित संदेश पर भी जाए. मैं चाहता हूं कि बार-बार ऐसा हो.
और तमाम विवाद के बावज़ूद ऐसा हो भी रहा
है. जैसे-जैसे इस शिल्प पर सहमति-असहमति की चर्चा ज़ोर पकड़ रही है, इसके प्रति
लोगों का आकर्षण भी बढ़ता जा रहा है. यह शिल्प वहां का लोकप्रिय सेल्फी स्थल बन गया
है. हाई स्कूल की एक शिक्षिका जो सटन इससे
इतनी प्रभावित हुई है कि वह तो अपनी पूरी क्लास को इसके अवलोकन के लिए ला रही है.
तिहत्तर वर्षीय एक व्यापारी माइकल फनल ने इसकी बहुत सारी तस्वीरें ली हैं ताकि वे विदेश में रह
रहे अपने बेटे को भेज सकें. फनल ने बहुत सही कहा है कि यह एक विश्व स्तरीय मूर्ति
है. फनल ने इस मूर्ति की विलक्षण व्याख्या की है. उनका कहना है: “इस मूर्ति की स्त्री यह जानते हुए भी कि दुनिया उसके खिलाफ
है, खुद को ढक नहीं रही है. यह औरत पूरे
दम-खम से कह रही है कि मैं हूं और ऐसी ही रहूंगी!”
क्या अब समय नहीं आ गया है कि हम भी कलाकृतियों
को नए आलोक में देखना सीखें!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 25 अक्टोबर, 201 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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