Tuesday, August 23, 2016

दास्तान एक अजीब लड़ाई की

अपनी इस अजूबों भरी दुनिया में बहुत सारी लड़ाइयां ऐसी भी चलती रहती हैं जिनका असर तो हम पर होता है, लेकिन जिनकी कोई ख़बर हमें नहीं होती. ऐसी ही एक रोचक लड़ाई इन दिनों दुनिया के सबसे बड़े सोशल नेटवर्क अड्डे फेसबुक और ऑनलाइन विज्ञापन ब्लॉक करने वाले एक ऐप एडब्लॉक के निर्माताओं के बीच चल रही है. फेसबुक के साम्राज्य की विशालता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी हैसियत साढ़े तीन सौ बिलियन डॉलर (भारतीय मुद्रा में लगभग पैंतीस हज़ार करोड़)  की है. जिस अड्डे पर जाकर आप-हम जैसे साधारण जन अपने हाल-चाल, पसन्द नापसन्द साझा करते हैं उसकी इतनी बड़ी आर्थिक हैसियत के मूल में हैं वे विज्ञापन जो हमें अपने और अपने दोस्तों के हाल-चाल के बीच दिखा दिये जाते हैं. इन विज्ञापनों का दिखाया जाना आकस्मिक नहीं होता है. इनका सीधा रिश्ता हमारी दिलचस्पियों, जिज्ञासाओं, टिप्पणियों आदि और हमारी वेब ब्राउज़िंग आदतों के साथ होता है और इसी कारण ये हमारे लिए प्रासंगिक भी होते हैं. ऐसा भी नहीं है कि विज्ञापन दिखाने का यह काम केवल फेसबुक ही करती है. ऑनलाइन सेवा देने वाली अधिकांश सेवाएं, जिनमें गूगल भी शामिल है, अपने उपयोगकर्ताओं को किसम-किसम के विज्ञापन दिखाती हैं. इन तमाम कम्पनियों का सोच यही है कि उपयोग कर्ता उनकी सेवाओं का बिना कोई मोल चुकाये उपयोग करता है तो उसे  उन सेवाओं का व्यय भार वहन करने वालों  के विज्ञापन देखने पर कोई आपत्ति  नहीं होनी चाहिए. ऑनलाइन के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी ऐसा होता है. हम लगभग मुफ़्त में जो टीवी चैनल देखते हैं उनका व्यय भार विज्ञापन देने वाले ही उठाते हैं और अपनी मूल लागत से काफी कम में जो समाचार पत्र हमें मिल पाता है उसके पीछे भी विज्ञापन दाताओं का ही आर्थिक सम्बल होता है.

ऑनलाइन सामग्री में विज्ञापन प्रदर्शित करने का मामला केवल अनचाही सामग्री हम पर आरोपित करने का मामला ही न होकर हमारी निजता के हनन  का मामला ही हो जाता है और इसलिए जागरूक ऑनलाइन सामग्री उपयोगकर्ता अनेक फिल्टर्स और ऐप्स की मदद से इन विज्ञापनों से बचने के रास्ते तलाश करते रहते हैं. ऐसे मददगारों में एडब्लॉक का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. बहुत सारे लोग अपने वेब ब्राउज़र में एक्स्टेंशन के रूप में एडब्लॉकर जोड़कर अनचाहे विज्ञापनों से मुक्ति पाने का प्रयास करते रहे हैं. लेकिन ज़ाहिर है कि यह बात फेसबुक को रास नहीं आई और उसने कुछ ऐसी तकनीकी जुगत की कि एडब्लॉक को ही ब्लॉक कर दिया. यानि एडब्लॉक इस्तेमाल करने वाले उपयोगकर्ताओं को भी विज्ञापन दिखाये जाने लगे. फेसबुक की इस कार्यवाही का जवाब उसी दिन दिया एडब्लॉक ने, यह कहते हुए कि उनका एडब्लॉक प्लस ऐप फेसबुक की कार्यवाही को नाकाम साबित कर देगा. यानि जो विज्ञापन नहीं देखना चाहते उन्हें विज्ञापन नहीं दिखाये जा सकेंगे. बहुत  रोचक बात यह कि इस कार्यवाही के तुरंत बाद फेसबुक ने फिर एक जवाबी कार्यवाही करते हुए एडब्लॉक प्लस को भी अप्रभावी कर डाला. और इस बार फेसबुक की तरफ से एक बयान भी ज़ारी किया गया जिसमें एडब्लॉक वालों पर यह आरोप लगाया गया कि वे फेसबुक उपयोगकर्ताओं को उनके मित्रों की पोस्ट्स और पेज देखने से भी वंचित कर रहे हैं. फेसबुक ने एडब्लॉक और इस तरह के टूल निर्माताओं पर यह भी इलज़ाम लगाया कि वे अपने इन प्रयासों से पैसा कमा रहे हैं. यानि यह उनकी निस्वार्थ सेवा नहीं है. फेसबुक का यह आरोप खारिज़ इसलिए नहीं किया जा सकता कि एडब्लॉक को गूगल जैसी बड़ी कम्पनियों से ‘स्वीकार्य विज्ञापनों’ को दिखाये जा सकने की अनुमति देने वाली श्वेत सूची में शामिल करने की एवज़ में धन मिलता है.

यह लड़ाई अभी ज़ारी है. दोनों ही पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं. एडब्लॉक वालों का तर्क यह है कि वे सारे विज्ञापन बाधित न करके केवल उन लोगों को अपनी सुविधा प्रदान कर रहे हैं  जो विज्ञापनों से मुक्ति चाहते हैं, जबकि फेसबुक ने थोड़ी उदारता दिखाते हुए यह कहा है कि वे भी अपने उपयोगकर्ताओं को अधिक निर्णयाधिकार प्रदान कर रहे हैं ताकि वे उन विषयों के विज्ञापन न देखें जिनमें उनकी रुचि नहीं है. तकनीकी जानकारों का खयाल है कि बावज़ूद इस बात के कि दोनों ही पक्ष अपने अपने मोर्चों पर डटे हुए हैं, इस लड़ाई में फेसबुक का पलड़ा भारी है. पलड़ा भारी होने की वजह शुद्ध तकनीकी है. असल में फेसबुक के हाथों में अपनी साइट पर दिखाई जाने वाली सारी सामग्री के तमाम सूत्र हैं इसलिए किसी भी ब्लॉकर को उन्हीं से गुज़र कर अपनी कार्यवाही करनी होगी.  लेकिन आज की तकनीकी दुनिया में नामुमकिन कुछ भी नहीं रह गया है. इसलिए यह देखना रोचक होगा कि इस लड़ाई का परिणाम क्या होता है!           


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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत सोशल मीडिया v/s विज्ञापन : दास्तान एक अजीब लड़ाई की शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.   

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