मॉडर्न आर्ट यानि आधुनिक कला को लेकर इतने
सारे लतीफे प्रचलन में हैं कि हममें से शायद ही कोई हो जिसे तुरंत इस तरह के कुछ
रोचक प्रसंग याद न आ जाएं! कहना अनावश्यक
है कि ये सब शरारती दिमागों की उपज हैं और यथार्थ से इनका शायद ही कोई सम्बन्ध हो.
लेकिन हाल में अमरीका के सैन फ्रांसिस्को शहर में अवस्थित विख्यात आधुनिक कला
संग्रहालय (म्यूज़ियम ऑफ मॉडर्न आर्ट) में जो घटित हुआ उसने यह सोचने को मज़बूर कर
दिया है कि क्या पता इन लतीफों में यथार्थ का भी कुछ पुट हो. हुआ यह कि टी जे खयातैन
नामक एक सत्रह वर्षीय किशोर अपने कुछ
साथियों के साथ इस संग्रहालय को देखने गया. 1935 में स्थापित इस संग्रहालय के एक लाख सत्तर हज़ार वर्गफीट क्षेत्र में
पेण्टिंग, स्थापत्य, फोटोग्राफी, मूर्तिकला, डिज़ाइन और मीडिया आर्ट की तैतीस हज़ार
कृतियां प्रदर्शित हैं और और यह न सिर्फ
अमरीका के सबसे बड़े संग्रहालयों में से एक है, आधुनिक और समकालीन कला के लिहाज़ से इसे
दुनिया के बेहतरीन संग्रहालयों में शुमार किया जाता है.
तो इस टी जे खयातैन को संग्रहालय की बहुत सारी कलाकृतियों ने बेहद
प्रभावित किया, लेकिन कुछ कलाकृतियां उसे बेहद सामान्य भी लगीं.
जैसे जब उसने एक भूरे-से कम्बल पर एक स्टफ्ड पशु जैसी कलाकृति को देखा तो उसके
जेह्न में यह सवाल उठा कि आखिर इसमें कलात्मक क्या है? उसने अपने आस-पास के अन्य
कलाप्रेमियों से भी जानना चाहा कि क्या वो कृति उन्हें भी उतनी ही सामान्य लग रही
है? लेकिन यह पूछते हुए उसके मन में यह बात भी आई कि जब कलाप्रेमी किसी संग्रहालय
में जाते हैं तो वे जो कुछ भी उस संग्रहालय के परिवेश के बीच देखते हैं उसी में
उन्हें कला के दर्शन होने लगते हैं और वे उसकी कलात्मक व्याख्या भी करने लगते हैं.
टी जे खयातैन के शरारती दिमाग में विचार
आया कि क्यों न इस बात को आजमा कर ही देख लिया जाए! पता चल जाएगा कि आधुनिक कला की
हक़ीक़त क्या है. इस संग्रहालय में प्रदर्शित हर कृति महान है या यहां कुछ भी
प्रदर्शित कर दो तो उसे महान मान लिया जाता है. तो उसने किया यह कि संग्रहालय के चमकीले फर्श पर
अपना ऐनक रख दिया और फिर थोड़ा दूर खड़ा होकर वहां आने-जाने वालों की प्रतिक्रियाएं
देखने लगा. उसके साथ उसके दोस्त भी थे. उन लोगों ने पाया कि कुछ ही क्षणों में ‘कलाप्रेमी’ उस ‘कलाकृति’ के इर्द गिर्द
जुटने लगे. वे बहुत तल्लीनता और बारीकी से उसका अवलोकन कर रहे थे, उसकी गम्भीर
व्याख्याएं कर रहे थे, और कुछ तो अलग-अलग कोणों से उसकी छवियां भी अपने कैमरों में
कैद कर रहे थे. कुछ दर्शकों ने तो उस मामूली ऐनक को उत्तर आधुनिक कला का मास्टरपीस
तक घोषित कर दिया. टी जे खयातैन ने बाद में कहा कि मुझे लगा जैसे वे दर्शक गण उस
ऐनक को वर्तमान संस्कृति के मूक होते जाने की अभिव्यक्ति की तरह देख रहे थे या यह
मान रहे थे कि इस कृति के माध्यम से
कलाकार ने ज़िन्दगी को चश्मे के शीशों के
माध्यम से देखना चाहा है. खयातैन को लगा जैसे दर्शक मायोपिया (निकट दृष्टि
दोष) या रियल आईज़ (असल नेत्र) जैसे शीर्षक वाली किसी कृति का अवलोकन कर रहे
हैं.
इस किशोर ने संग्रहालय के फर्श पर रखे इस
ऐनक और उसे सराहते दर्शकों की छवि को अपने कैमरे में कैद कर जब ट्विटर पर पोस्ट
किया तो वो छवि फौरन ही वायरल हो गई और सिर्फ एक दिन में उसे चालीस हज़ार लोगों ने साझा कर डाला. और जैसे इतना ही
पर्याप्त न हो, उसे ट्विटर मोमेण्ट में भी शुमार कर लिया गया. लेकिन इस सबके
बावज़ूद, यह किशोर टी जे खयातैन आधुनिक कला का प्रशंसक है. उसका कहना है कि हो सकता
है कभी-कभी आधुनिक कला को लेकर कोई चुहल हो जाए, लेकिन अंतत: तो यह हमारी
सर्जनात्मकता को अभिव्यक्ति देने का एक सशक्त माध्यम है. हो सकता है कुछ को इसमें
मज़ाक नज़र आए, लेकिन बहुतों को इसमें आध्यात्मिकता के भी तो दर्शन होते हैं. मॉडर्न
आर्ट के बारे में उसके इस निष्कर्ष से शायद ही कोई असहमत हो कि यह खुले और
कल्पनाशील मन वालों के लिए आनंदप्रद है.
और यहां तक इस शरारत का सवाल है, यह याद
कर लेना भी प्रासंगिक होगा कि ऐसी शरारतें होती ही रहती हैं. सन 2014 में किसी ने
ऐसी ही शरारत रेस्तरां समीक्षकों को मैक्डॉनल्ड के उत्पाद परोस कर भी की थी. इन्हें बहुत गम्भीरता से लेने की बजाय इनका
लुत्फ लेकर भुला दिया जाना चाहिए.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 28 जून, 2016 को जनाब, यह है मॉडर्न आर्ट का मास्टरपीस शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.