जाकी
रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी... कहा था
हमारे तुलसी बाबा ने, लेकिन खुद उन्हें कहां मालूम रहा होगा कि ठेठ इक्कीसवीं सदी
में और वो भी भारत से बहुत दूर इण्डोनेशिया में उनकी यह बात सही साबित हो जाएगी. हुआ यह कि अभी कुछ ही समय
पहले इण्डोनेशिया के सुलावेसी प्रांत के बांगई द्वीप पर एक इक्कीस वर्षीय मछुआरे
को एक आदमकद स्त्री (जैसी) ‘देह’ समुद्र
में तैरती हुई मिली. तीन दिन पहले सूर्यग्रहण होकर चुका था, और क्योंकि
इण्डोनेशिया के वे भले लोग अलौकिक शक्तियों में बहुत गहरी आस्था रखते हैं, पार्दिन
नामक उस भोले-भाले ग्रामीण को लगा कि हो न हो यह कोई देवी है और किसी अलौकिक
चमत्कार की वजह से यहां आन पहुंची है. या हो सकता है कि वह सूर्य ग्रहण के परिणामस्वरूप ही धरती पर आ गिरी
हो. पार्दिन उस ‘देह’ को बहुत एहतियाद से कालुपापी गांव स्थित अपने घर
ले गया, और वहां उसकी बूढ़ी मां ने बड़े जतन से उस ‘देह’ को सहेजा, उसे नए कपड़े पहनाए और अपनी धार्मिक
आस्थाओं के अनुरूप उसे एक हिजाब भी धारण करा दिया. इतना ही नहीं, वे लोग रोज़ उसको
नई पोशाक धारण करवाने लगे और बहुत आदर
पूर्वक उसे एक कुर्सी पर बिराजमान करा दिया.
धीरे-धीरे
पूरे गांव में यह बात फैलने लगी कि पार्दिन के घर एक बिदादरी (एक तरह की
अप्सरा) अवतरित हुई है. और जैसा इस तरह के मामलों में सर्वत्र होता है वहां भी हुआ
कि उस बिदादरी के अवतरण को लेकर अनेक किंवदंतियां प्रचलित होने लगी. कहा जाने लगा
कि जब वो पार्दिन को मिली तो बहुत व्यथित थी, समुद्र किनारे औंधे मुंह लेटी हुई
थीं, रो रही थी, और ऐसी अनेक बातें बहुत तेज़ी से फैलने लगीं. कुछ लोग यह तक कहने
लगे कि वह तो स्वर्ग से धरती पर आ गिरी अप्सरा है और इसी कारण वह रोती हुई पाई गई
थी. यानि जितने मुंह उतनी बातें.
इण्डोनेशियाई
समाचार पोर्टल देतिक ने तो उस बिदादरी की हिजाब युक्त तस्वीरें भी पोस्ट कर दीं और इस तरह बिदादरी (क्या पता इस
शब्द और हमारे ‘विद्याधरी’ में कोई रिश्ता
हो!) के अवतरित होने की चर्चा जंगल की आग की तरह फैलने लगी. जब चर्चाएं कुछ ज़्यादा
ही फैलने लगीं तो स्थानीय पुलिस के भी कान खड़े हुए. उसकी चिंता यह थी कि कहीं इस
बिदादरी के अवतरण की वजह से कानून
व्यवस्था न गड़बड़ा जाए. पुलिस तेज़ी से हरकत में आई. और जब पुलिस ने पूरी
पड़ताल की तो वो सच्चाई सामने आई जिसने मुझे बाबा तुलसीदास को याद करने को प्रेरित
किया.
स्थानीय पुलिस चीफ़ हेरु प्रमुकार्णो ने बताया कि असल
में वह कोई बिदादरी नहीं थी, बल्कि जिसे वे भोले-भाले ग्रामीण कोई देवी समझ रहे थे
वो तो एक सेक्स टॉय (प्लास्टिक की बनी एक स्त्री देह थी, जिसे हवा भर कर फुला लिया
जाता है और यौन आनंद के लिए इस्तेमाल किया जाता है) था/थी. लेकिन वे बेचारे
भोले-भाले ग्रामीण, जो शहरी आबादी और माहौल से बहुत दूर रहते हैं और जिनकी पहुंच
इण्टरनेट जैसी नई सूचना तकनीक तक क़तई नहीं है, वे भला आधुनिक समाज के इन चोंचलों
को कैसे जान सकते थे? तो उचित ही उन्होंने उस खिलौना गुड़िया को अपनी बिदादरी समझ
लिया. बाद में एक स्थानीय नागरिक इकबाल ने पत्रकारों को बताया भी कि हो सकता है
कि किसी नाव से यह डॉल नीचे गिर पड़ी होगी या गिरा दी गई होगी.
वैसे
इसी क्रम में यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं होगा कि हालांकि अपने देश में तो सेक्स
टॉयज़ का इस्तेमाल वैध नहीं है इसलिए अपने
यहां ऐसी घटनाएं सुनने को नहीं मिलती हैं, दुनिया के अन्य बहुत सारे देशों में
इन्हें लेकर मनोरंजक प्रसंग उत्पन्न होते ही रहते हैं. सन 2012 में चीन के एक
रेडियो स्टेशन से यह खबर प्रसारित हुई थी कि वहां
के एक किसान को एक कुंए में बेशकीमती मशरूम का विशाल टुकड़ा मिला है
जिसमें जादुई औषधीय गुण हैं. लेकिन बाद की
पड़ताल से पता चला कि असल में वो सिलिकोन से बना एक सेक्स टॉय था. उसी बरस
तुर्की में किसी ने एक स्त्री देह को पानी
में डूबते-उतराते देख पुलिस को खबर कर दी और फौरन ही गोताखोरों की एक टीम उस
‘स्त्री’ के बचाव के लिए पानी में कूद
पड़ी. लेकिन बचाव अभियान पूरा होने पर पता
चला कि वो हवा भरी हुई एक सेक्स डॉल थी. और उसी साल पूर्वी चीन के शेण्डोंग प्रांत
में भी ऐसी ही एक घटना हुई जब 18 पुलिस अधिकारियों को एक ऐसी ही ‘स्त्री’ को बचाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी. सोचिये,
यथार्थ का पता चलने पर उन बेचारों पर क्या
गुज़री होगी. वहां इस बचाव अभियान को देखने के लिए नदी तट पर हज़ारेक लोग इकट्ठा भी हो गए थे.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, दिनांक 10 मई 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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