Tuesday, April 26, 2016

जो हमें समझ न आए उस कर्म की भी कोई सार्थकता हो सकती है

उसका नाम है क्रिस सेवियर. संयुक्त राज्य अमरीका के टेनेसी इलाके के इस  निवासी ने ह्यूस्टन की संघीय अदालत में एक अजीबोगरीब वाद प्रस्तुत किया है. उसकी शिकायत है कि वो अपनी 2011 मॉडल की मैकबुक (लैपटॉप) से शादी करना चाहता है लेकिन हैरिस काउण्टी (यानि ज़िला) ने उसे विवाह का लाइसेंस  प्रदान करने से मना कर दिया है. इस तरह उसे उसके विवाह करने के अधिकार से वंचित किया गया है. क्रिस ने यह वाद अपनी काउण्टी के डिस्ट्रिक्ट क्लर्क, गवर्नर और अटॉर्नी जनरल के खिलाफ प्रस्तुत किया है. क्रिस  ने इसी तरह के वाद दो और संघीय अदालतों में प्रस्तुत किये हैं और उनकी योजना बारह और अदालतों में ऐसे ही वाद प्रस्तुत करने की है. ऐसा वे इस उम्मीद में कर रहे हैं कि कम से कम दो अदालतें तो उनके पक्ष में फैसला देंगी.  उनका कहना है कि ये वाद वे इसलिए प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि सही हक़ीक़त सामने आ सके. असल में इन वादों के माध्यम से वे अमरीकी सर्वोच्च न्यायालय के जून माह के उस ऐतिहासिक फैसले का विरोध   करना चाह रहे हैं जिसने समान-सेक्स विवाहों को वैध करार दिया था. इसे यों भी समझा जा सकता है कि अपने इन वादों के माध्यम से क्रिस अपने देश के न्यायालयों को यह धमकी देना चाह रहे हैं कि वे यह स्वीकार कर लें कि उन्होंने समान सेक्स के बीच विवाह की अनुमति देने का जो फैसला  दिया है वह  नैतिक रूप से दोषपूर्ण है, और अगर वे यह मानने को तैयार नहीं हैं और अपने निर्णय पर अडिग हैं तो फिर  उन्हें भी एक महंगी मशीन के साथ विवाह बन्धन में बंधने की अनुमति प्रदान कर दें.

खुद को क्रिश्चियन बताने वाले और इलेक्ट्रॉनिक संगीत के प्रस्तुतकर्ता क्रिस का कहना है कि उनका यह वाद न तो बेहूदा है और न ही व्यंग्यात्मक, लेकिन वे यह अवश्य मानते हैं कि  अमरीकी सर्वोच्च  न्यायालय के इस फैसले ने संविधान का ही अपहरण कर डाला है, और इसलिए इस वाद के माध्यम से वे यह कहते हुए कि समान सेक्स वाले दो व्यक्तियों के बीच विवाह ठीक वैसी ही बात है जैसी मनुष्य और मशीन के बीच विवाह, एक कर्कश तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं. “सवाल यह है कि क्या हमारी नीतियां ऐसी होनी चाहिएं जो इस तरह की जीवन शैली  को प्रोत्साहित करें? सरकार लोगों को इस तरह की जीवन शैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करके किसी का भी भला नहीं कर रही है. ज़रूरत इस बात की है कि हम विवाह को ठीक से  परिभाषित करें.” यह कहना है क्रिस का. 

स्वाभाविक है कि क्रिस के ये तर्क बहुतों के गले नहीं उतरे हैं और उन्होंने अपनी-अपनी तरह से इनका विरोध किया है. टेक्सस राज्य के रिपब्लिकन स्टेट अटॉर्नी जनरल पेक्सटन ने संघीय जज महोदय से अनुरोध किया है कि वे इस वाद को अस्वीकृत कर दें. उनका तर्क है कि समान-सेक्स विवाह की अनुमति देने वाला अमरीकी सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय मानव और मानवेतरों यानि मनुष्य और मशीनों पर लागू नहीं होता है. टेक्सस के ही एक गे  मैट वुल्फ जो इसी वर्ष अपने साथी से विवाह करने वाले हैं, का भी कहना है कि वो हर तर्क जो दो सामान्य प्रेम करने वाले मानवों के बीच समानता और सहमति के आधार पर होने वाले विवाह की तुलना किसी और से करके उसका विरोध करना चाहता है, ग़लत है. उनका मानना है कि इस तरह के विरोधी तर्क व्यक्ति विशेष के भय और सोचे समझे अज्ञान पर आधारित हैं. 

इस वाद और विवाद पर अमरीकी अदालतें क्या फैसला देती हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन इस बीच यह जान लेना भी रोचक होगा कि क्रिस नामक यह व्यक्ति पहले भी अजीबोगरीब हरकतें करता रहा है. तीन बरस पहले उसने अमरीका की उसी विख्यात कम्प्यूटर निर्माता कम्पनी पर एक दावा ठोका था जो मैकबुक बनाती है. अपनी पचास पन्नों की शिकायत में क्रिस ने कहा था कि इस कम्पनी के उत्पादों में वे तमाम सुरक्षा इंतज़ामात नहीं हैं जो अवांछित अश्लील सामग्री के हमलों से उनके उपयोगकर्ताओं को बचा  सकें. क्रिस का कहना था कि इस तरह की अश्लील सामग्री खुद उसके जीवन को विषाक्त कर चुकी है. उन्होंने अदालत से अनुरोध किया था कि वे कम्पनी को पाबन्द करे कि  वो अपने उत्पाद इस तरह के सुरक्षा प्रावधानों के बाद ही बेचेगी.

पहली नज़र में भले ही क्रिस जैसे लोगों के ये कृत्य ऊल जुलूल लगें, यह नहीं भूला जाना चाहिए कि दुनिया में बहुत सारे सकारात्मक बदलावों का सूत्रपात  ऐसे ही कृत्यों से हुआ है.   
  
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अन्तर्गत मंगलवार, दिनांक 26 अप्रेल, 2016 को  जो हमें समझ न आए उस कर्म की भी हो सकती है कोई सार्थकता शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ. 


Tuesday, April 19, 2016

शेक्सपीयर कुछ भी कहें, नाम की अहमियत कम नहीं है

महान अंग्रेज़ी लेखक विलियम शेक्सपीयर का यह कथन आपने ज़रूर सुना होगा-  व्हाट्स इन अ नेम, यानि नाम में क्या रखा है? उनके अमर नाटक रोमियो एण्ड जूलियट में यह बात जूलियट से कहलाई गई  है. शेक्सपियर ने भले ही अपने एक किरदार  से यह कहला दिया हो, दुनिया में नाम  की अहमियत जस की तस है. और मज़े की बात तो यह कि बाकी दुनिया की बात तो छोड़िये, खुद शेक्सपीयर के देश यानि ब्रिटेन में हाल की एक घटना ने एक बार फिर उनके इस बहु उद्धृत कथन पर  सवालिया निशान लगा दिया है.

वहां के वेल्स की पॉविस काउण्टी की एक महिला ने जब अपनी हाल में जन्मी  बेटी का नाम सायनाइड  (एक घातक ज़हर) और उसके भाई का नाम प्रीचर (धर्मोपदेशक) रखना चाहा  तो वहां की एक अदालत के जज  ने उन्हें इस बात की अनुमति नहीं दी. आप पूछेंगे  कि कोई अपनी संतान का नामकरण क्या करना चाहता है इसमें अदालत कहां बीच में आती है? तो,  मैं बता ही देता हूं. हुआ यह कि इस पॉविस काउण्टी काउंसिल के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को जब यह बात पता चली कि उनके इलाके की एक महिला अपने हाल में जन्मे दो जुड़वां बच्चों का अजीबोगरीब नामकरण करना चाह रही है तो उन्हें बीच में कूद पड़ना ज़रूरी लगा. इस पर एक जज ने उस महिला द्वारा अपने नवजात बच्चों के ये असामान्य नाम रखने पर निषेधाज्ञा जारी कर दी.

लेकिन उस महिला ने भी इस  निषेधाज्ञा को सहज रूप से स्वीकार करने की बजाय इसके खिलाफ अपने वकीलों के माध्यम से अपील करना उचित समझा. उसके वकीलों का तर्क था कि वो अपने बच्चों का क्या नामकरण करे यह उसका सहज स्वाभाविक मानवीय अधिकार है और इस पर लगाई गई कोई भी रोक उसके अपने पारिवारिक जीवन के प्रति सम्मान के उसके अधिकार का उल्लंघन होगी.  तीन जजों ने उनकी इस अपील को सहानुभूतिपूर्वक सुना और फिर यह निर्णय सुनाया कि किसी बच्ची  का  नामकरण एक घातक ज़हर के नाम पर करना क़तई स्वीकार्य नहीं है. इन जजों  ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि रुचियों और  फैशन में आने वाले बदलावों और तेज़ी से विकसित होती हुई निजता की अवधारणाओं को स्वीकार करने के बावज़ूद वे मानते हैं कि किसी बच्ची के लिए सायनाइड नाम बहुत अजीब है. इससे पहले उस बच्ची की मां ने अपने पक्ष में दलीलें देते हुए कहा था कि उनका मानना है कि सायनाइड एक प्यारा और खूबसूरत नाम है, इसका सम्बन्ध तो फूलों और पौधों से है  और यह सकारात्मक संकेत भी देता है. अपनी बात को उन्होंने इस तर्क के साथ स्पष्ट  किया कि हिटलर और गोयबल्स जैसों की जान लेना तो उनके खयाल से एक उम्दा  काम था और  इसलिए वे मानती हैं कि यह नाम एक सकारात्मक संदेश देता है.  उस महिला ने प्रीचर नाम का  भी यह कहते  हुए समर्थन किया  कि यह नाम बहुत कूल है और इससे एक सशक्त आध्यात्मिक संदेश मिलता है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस नाम से मिलने वाला सन्देश भविष्य में भी उनके बेटे को सम्बल प्रदान करेगा. लेकिन जज उनके वकीलों और उनकी दलीलों से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने कहा कि यह मामला उन दुर्लभतम मामलों में से एक है जिनमें अदालत को किसी बच्ची को उसके सायनाइड नाम की वजह से  भविष्य में निश्चित रूप से होने वाली मानसिक क्षति से बचाने के लिए हस्तक्षेप करने को मज़बूर होना पड़ रहा है. उनका कहना था कि इस तरह का नाम भविष्य में उस बच्ची के लिए उस बर्ताव की आशंका पैदा करता है जिसे तंग करने की सामान्य सीमाओं से काफी आगे  का माना जा सकता है. इन जजों ने स्वीकार किया कि प्रीचर नाम अजीब होते हुए भी उतना बुरा नहीं है. लेकिन कुल मिलाकर उनका फैसला यह रहा कि इन जुड़वां शिशुओं के हक़ में यही बात उपयुक्त रहेगी कि उनके नाम उनके सौतेले भाई बहनों द्वारा चुन लिये जाएं.     


जजों के इस फैसले के पीछे नाम की व्याख्या और उससे निकलने वाली ध्वनियां तो थी हीं, उस महिला का त्रासद अतीत भी था. उन जजों के संज्ञान में यह बात भी थी कि उस महिला की ये जुड़वां संतानें किसी बलात्कार का परिणाम  थीं. यही नहीं, वह मानसिक रुग्णता से भी ग्रस्त रह चुकी थी, ड्रग्स और मदिरापान की लत की शिकार थी और  ग़लत बर्ताव करने वाले पुरुषों की संगत में रह चुकी थी. शायद इन्हीं सब वजहों  से उसकी पहले की तीन संतानें भी उसकी छत्र छाया से दूर अन्य पोषणकर्ता अभिभावकों के पास पल रही थीं.
 

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 19 अप्रैल, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित  आलेख का मूल पाठ. 

Tuesday, April 12, 2016

स्वीडन ने आम नागरिकों को बनाया देश का राजदूत!

दुनिया का हर देश कोशिश करता  है कि अन्य देशों के निवासी न केवल उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करें;  वह यह भी चाहता है कि अन्य देश उसके प्रति सद्भावना भी रखें. सद्भावना के प्रसार के लिए अनगिनत प्रयास किए जाते हैं. एक से दूसरे देश में शिष्टमण्डल जाते हैं, कलाकारों का आदान-प्रदान होता है, राजनयिक गतिविधियां होती हैं, बड़े नेता एक दूसरे के देशों की  सद्भावना  यात्राएं करते हैं- ऐसे ही अन्य  अनगिनत काम और प्रयास किए जाते हैं.  कहना अनावश्यक है कि सद्भावना  का यह प्रसार छवि को ही उजला नहीं बनाता है, व्यावसायिक सम्भावनाओं को भी पंख देता है.

महज़ दस लाख से भी कम आबादी वाला यूरोप महाद्वीप का देश स्वीडन दुनिया के सर्वाधिक शांत देशों में से एक माना जाता है. लेकिन इसी के साथ यह बात भी जोड़ देना उपयुक्त होगा कि दुनिया के ऐसे दस देशों की सूची में, जहां बलात्कार सर्वाधिक होते हैं, यह देश तीसरे नम्बर पर आता है. भारत का नम्बर इस देश के फौरन बाद यानि चौथा  है. लेकिन संख्याओं का यह खेल खासा भ्रामक भी है. असल में तो स्वीडन दुनिया के उन देशों में अग्रणी है जहां स्त्री-पुरुष समानता सर्वाधिक है और स्त्रियों को अपनी बात कहने की और अपने लिए सुरक्षा पाने की सबसे अधिक सुविधाएं सुलभ हैं. यही कारण है कि स्वीडन में एक लाख की जनसंख्या पर बलात्कार के अड़सठ मामले दर्ज़ होते हैं, जबकि भारत में उसी एक लाख जनसंख्या पर मात्र दो मामले दर्ज़ होते हैं. यानि स्वीडन की यह ‘कुख्याति’ असल में उसके इस  गुण की वजह से है कि वहां स्त्री किसी अन्याय को सहने की बजाय उसका प्रतिरोध करती है.  तो इस तरह आंकड़े असल से भिन्न तस्वीर पेश कर डालते हैं. यथार्थ यह है कि 2014 की ग्लोबल जेण्डर गैप रिपोर्ट के अनुसार लैंगिक समानता के मामले में स्वीडन  दुनिया के  शीर्षस्थ देशों में शुमार है.

इसी स्वीडन देश के पर्यटन विभाग ने हाल ही में अन्य देशों के बीच अपने देश की छवि को और अधिक निखारने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल की है. आज उसी की चर्चा. स्वीडिश पर्यटन एजेन्सी ने ‘कॉलिंग स्वीडन’ नाम से एक सेवा शुरु की है जो पूरी दुनिया के लोगों को आमंत्रित करती है कि वे दिए गए नम्बर पर कॉल करें तो उनकी बात किसी स्वीडिश नागरिक से होगी और उससे वे किसी भी  मुद्दे पर बात कर सकेंगे. इसके लिए इस स्वीडिश एजेंसी ने एक विज्ञापन देकर अपने देश के नागरिकों को आमंत्रित किया कि वे एक एप डाउनलोड करें जिसके  माध्यम से वे अगले दो महीनों  तक किसी अनजान  विदेशी से संवाद कर सकेंगे. अब जैसे ही कोई विदेशी उस दिए गए नम्बर पर फोन करता है उसे आकस्मिक रूप से चुने गए किसी स्वीडिश नागरिक से जोड़ दिया जाता है और फिर वे दोनों  किसी भी विषय या मुद्दे पर बात कर सकते हैं. अभी हाल ही में शुरु हुई इस सेवा से तीन हज़ार स्वीडी नागरिक जुड़ चुके हैं, और साढ़े साथ हज़ार कॉल उन्हें प्राप्त हो चुके हैं.  

समझा जा सकता है कि स्वीडिश पर्यटन एजेंसी ने इस योजना के माध्यम से अपने देश के आम नागरिक को भी अपना राजदूत बनाने का प्रयास किया है. यह  आशंका हो सकती है कि क्या पता कब कोई स्वीडी नागरिक ऐसी गैर ज़िम्मेदाराना हरकत कर जाए कि देश की छवि संवरने की बजाय बिगड़ जाए, मसलन वो अपने देश के बारे में कोई ग़लत बात कह दे, उसकी आलोचना कर दे या और कुछ नहीं तो सामने वाले से अशिष्ट बर्ताव ही कर डाले!   इन आशंकाओं को पूरी तरह निर्मूल भी नहीं ठहराया जा सकता. और ऐसा भी नहीं है कि स्वीडिश पर्यटन एजेंसी ने इन आशंकाओं को मद्दे नज़र नहीं रखा. लेकिन उसने बहुत सोच विचारकर बलपूर्वक यह कहा कि हर नागरिक नेक इरादों वाला होता है और हमें उस पर भरोसा करना चाहिए! वैसे स्वीडन में अपने देश वासियों पर भरोसा करने की परम्परा पहले से मौज़ूद है. मसलन, वहां एक आधिकारिक सरकारी ट्विटर खाता है जिसका संचालन हर सप्ताह एक भिन्न नागरिक करता है और उसे यह अधिकार होता है कि वह देश की तरफ से किसी भी मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त करे. यह राय सकारात्मक भी हो सकती है, नकारात्मक भी.

है ना यह बहुत बड़ी बात! आखिर क्यों नहीं किसी देश को अपने आम नागरिक पर भरोसा करना चाहिए? स्वीडिश एजेंसी का यह सोच कि पेशेवर राजदूत का काम अपनी जगह, अगर उसी के साथ  आम नागरिक को भी अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान किया जाए तो उसके बेहतर परिणाम सामने सकते हैं, दुनिया के और देशों के लिए भी अनुकरणीय न भी हो तो विचारणीय तो है ही.

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, दिनांक 12 अप्रेल, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ. 

Tuesday, April 5, 2016

सामान्य की सम्भावनाएं चुक जाने के बाद असामान्य का रुख

बहुत सारी फिल्मों और टीवी प्रोग्रामों को देखते हुए क्या आपको भी ऐसा लगता है कि इनको क्यों बनाया गया है और कोई औसत  बुद्धि वाला इंसान भी इन्हें कैसे देख या झेल सकता है! उनका तर्कातीत होना, ऊल जुलूल होना, मूर्खतापूर्ण होना और अशालीन होना जैसे महज़ यह परखने लिए होता है कि उन्हें  देखते हुए आप अपना धैर्य खोते  हैं या नहीं! लेकिन जिन चीज़ों को देखते हुए आप कुढ़ते-चिढ़ते हैं उनका भी एक वफ़ादार दर्शक समुदाय होता है. अगर न हो तो उन्हें बनाया ही न जाए! जो लोग इस तरह की फिल्में या प्रोग्राम बनाते हैं उनकी नज़रें बॉक्स ऑफिस या टी आर पी पर टिकी होती हैं. अगर आप मनोरंजन की दुनिया के निकट अतीत को खंगालें तो पाएंगे कि इस तरह की निर्मितियों की अतार्किकता और बेहूदगी घटने की बजाय बढ़ी ही है. जो चीज़ दस-पाँच बरस पहले कल्पनातीत थी आज वह इतनी आम हो चुकी है कि आपको चौंकाती तक नहीं है. क्या पता कि इन्हें बनाने वालों का संकट यह हो कि सामान्य की तो सारी सम्भावनाएं चुक गई हैं, इसलिए अब उन्हें असामान्य का ही रुख करना है.

इधर ब्रिटेन  से एक ख़बर यह आई है कि वहां के एक लोकप्रिय चैनल पर जो कि नई तरह के कार्यक्रम प्रस्तुत करने के जुनून में सीमाएं लांघ जाने के लिए जाना जाता है,  एक नया शो  लाया जा रहा है. इस शो का नाम है ‘साइंस ऑफ अट्रेक्शन’  यानि आकर्षण का विज्ञान. लेकिन कहते हैं न कि नाम में क्या रखा है? असल बात तो है शो की विषय वस्तु. तो यह एक डेटिंग शो होगा, लेकिन इसके निर्माताओं का कहना है कि यह अब तक के तमाम डेटिंग शो’ज़ से नितान्त  भिन्न होगा. अब यह भी जान लीजिए कि इसमें भिन्न क्या होगा? इस शो के शुरु में आठ युवा स्त्री-पुरुषों को एक सी-थ्रू बक्से में रखा जाएगा! नयापन यह होगा कि ये सबके सब एकदम निर्वस्त्र होंगे! इन आठ में से एक स्त्री और एक पुरुष वे होंगे जिन्हें शेष छह में से अपने लिए एक-एक साथी का चयन करना है. इस शो का शीर्षक तो  सम्मानजनक है ही, इसे और गरिमा प्रदान करने के लिए इसमें एक साइकोलॉजिस्ट  को भी शामिल किया गया है जो प्रतियोगियों का मनोविश्लेषण प्रस्तुत कर इस शो में बौद्धिकता का तड़का लगाएगा. चुनाव करने वाले स्त्री-पुरुष एक-एक करके प्रतियोगियों को भिन्न-भिन्न मापदंडों  पर परखते हुए खारिज करते जाएंगे और अंत  में जब इन दोनों के लिए एक-एक साथी बच रहेगा तो ये उसके साथ डेट पर चले जाएंगे.  यह पूरा शो कुल तीन राउण्ड्स में होगा. पहले राउण्ड की तो चर्चा हो ही चुकी  है. दूसरे राउण्ड में प्रतियोगियों को वस्त्र धारण करने होंगे और फिर उनका आकलन उनके ड्रेस सेंस के आधार पर होगा. तीसरे और अंतिम दौर में प्रतियोगी अपने-अपने बारे में बताएंगे और इस आधार पर उनके व्यक्तित्वों का विश्लेषण किया जाएगा. जिन दो प्रतिभागियों को अपने लिए साथी चुनने हैं वे भी अपनी बात कहेंगे और बताएंगे कि किसी को वे क्यों पसन्द या नापसन्द कर रहे हैं.

इस शो की विषय वस्तु के आधार पर यह अनुमान भी लगाया जा रहा है कि शायद इसका नाम ‘साइंस ऑफ अट्रेक्शन’  न होकर ‘नेकेड अट्रेक्शन’  रहे. इस अनुमान का एक आधार यह भी है कि अमरीका में ‘डेटिंग नेकेड’  शीर्षक वाला एक शो काफी कामयाब रह चुका है. लोकप्रिय तो ‘ब्लाइण्ड डेट’  शीर्षक कार्यक्रम भी काफी रहा है लेकिन जिस शो की हम चर्चा  कर रहे हैं उसके निर्माताओं का दावा है कि उनका यह शो अब तक का सबसे अनूठा शो होगा. कहना अनावश्यक है कि अपने शो को अनूठा बनाने के क्रम में वे नग्नता और अश्लीलता से कोई दूरी नहीं बरतेंगे. अभी तक इस शो के जो प्रोमोज़ जारी हुए हैं उनसे भी इस बात की पुष्टि होती है. और जैसे इतना ही पर्याप्त न हो, निर्माताओं की तरफ से यह भी कहा जा चुका है कि इस शो में गे और लेस्बियन प्रतिभागियों पर भी एपिसोड होंगे.

सुखद आश्चर्य की बात यह है कि भले ही इस शो का निर्माण प्रारम्भ हो चुका है, निर्माताओं को इसके लिए आठ प्रतिभागी जुटाने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. वे सोशल  मीडिया पर लोगों को पुकार रहे हैं लेकिन लोग हैं कि अपनी गरिमा को दांव पर लगाने को तैयार नहीं हैं. लेकिन देर-सबेर प्रोग्राम तो बनेगा ही. मुझे फिक्र इस बात की सता रही है कि हमारे अपने देशी निर्माता जो हर विदेशी प्रोग्राम की नकल करने को आतुर रहते हैं, उन्हें इस प्रोग्राम से ‘प्रेरणा ग्रहण’ करने से कौन रोकेगा, और कब तक?  
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक  न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 05 अप्रेल, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.