हाल ही में एक ख़बर आई कि नवम्बर 2015 में
मलेशिया में होने वाली एक कॉंफ्रेंस वहां की पुलिस की आपत्ति के बाद रद्द कर दी
गई, तो लगा कि सारी दुनिया में हालात एक से हैं. यह कॉंफ्रेंस थी लव एण्ड सेक्स
विद रोबोट्स विषय पर और इसके आयोजकों में प्रमुख थे 2007 में प्रकाशित इसी
शीर्षक वाली किताब के लेखक डेविड लेवी और उनके साथी प्रोफेसर एड्रियन चिओक. पुलिस ने ऐसा कुछ समझ कर कि इस
कॉंफ्रेंस में रोबोट्स के साथ यौन सम्बन्ध कायम किया जाएगा, इसे ग़ैर कानूनी मान लिया,
जबकि आयोजकों का कहना है कि इस कॉंफ्रेंस में बहुत व्यापक और दूरगामी प्रभाव वाले
मुद्दों पर अकादमिक विमर्श होना था. बता दूं कि इसी विषय पर पहली कॉंफ्रेंस 2014 में पुर्तगाल में आयोजित हो चुकी है, और यह
दूसरी कॉंफ्रेंस अब कदाचित 2016 में लंदन में आयोजित होगी.
असल में जब भी हमारे जीवन में नया कुछ आता
है, उससे हमारी सुविधाओं में चाहे जितना इज़ाफा हो, बहुत सारे नैतिक, वैचारिक और
कानूनी मुद्दे भी स्वाभाविक रूप से उठ खड़े होते हैं. यह याद दिलाना अप्रासंगिक न
होगा कि महात्मा गांधी के लिए इंजेक्शन भी हिंसा का ही एक प्रकार था और बहुत सारे
लोगों के लिए अनेक अंग्रेज़ी दवाइयों में
मौज़ूद अल्कोहल उनके अस्वीकार की वजह बनता
है. लेकिन यहां हम बात रोबोट्स की कर रहे हैं. पिछले कुछ बरसों में कृत्रिम बुद्धि
के विकास की वजह से रोबोट्स की कार्य
दक्षता में जो बदलाव और सुधार आए हैं उनकी वजह से अब वे तेज़ी से मनुष्य के
स्थानापन्न बनते जा रहे हैं. हॉलीवुड की अनेक लोकप्रिय फिल्मों और किताबों में
रोबोट्स और मनुष्यों के अंत: सम्बन्धों का जो चित्रण लगातार बढ़ता जा रहा है उसके
यथार्थ रूपांतरण की आहटें अब साफ़ सुनाई देने लगी हैं. इधर हाल ही में हैलो बार्बी
नामक एक खिलौना ऐसा आया है जो बच्चों से बातें करता है और उनके साथ खेलता है. इस
तरह के खिलौनों का बच्चों की सामाजिकता पर क्या असर पड़ेगा? इसी तरह अगर रोबोट्स
सारे मेहनत मज़दूरी वाले काम करने लगे तो क्या उससे लोगों का रोज़गार नहीं छिन
जाएगा? चारों तरफ रोबोट्स से घिरा इंसान क्या असामाजिक नहीं हो जाएगा? और यह असामाजिकता
वाला ही सवाल उठा है रोबोट्स के साथ प्रेम और सेक्स की सम्भावनाओं को लेकर भी.
कैलिफोर्निया की एक कम्पनी की बनाई रियल डॉल तो पहले से मौज़ूद थी जो करीब-करीब
इंसानों जैसी हरकत करती थी, अब उपरोक्त श्री लेवी का कहना है कि उनके खयाल से अगर
ऐसे रोबोट्स बना लिये जाएं जिनके साथ सेक्स करना सम्भव हो तो यह लाखों-करोड़ों ऐसे लोगों के लिए एक वरदान होगा जिन्हें या तो
अपना मनपसन्द साथी मिल ही नहीं रहा है या जो अपने साथी के साथ अपने रिश्तों से
असंतुष्ट हैं. लेवी का मानना है कि इस तरह के रोबोट्स न केवल अकेलेपन को दूर
करेंगे, उनकी वजह से बाल यौन अपराधों में भी बहुत कमी आ जाएगी.
लेकिन सारे समझदार लोग लेवी की तरह से
नहीं सोचते हैं. अब आप एक रोबोटिक्स एथिसिस्ट (नैतिकविज्ञानी) कैथलीन रिचर्डसन को ही
लीजिए जो इस तरह की सम्भावना को एक भीषण दु:स्वप्न की तरह देखती हैं. उनको लगता है कि ऐसे सेक्स रोबोट्स असल ज़िन्दगी
में भयंकर असमानता पैदा कर देंगे. वे इन सेक्स रोबोट्स को रोबोट वेश्या की तरह देखती हैं
और शिकायत करती हैं कि इनके प्रचलन से हमारे पहले से विकृत रिश्तों में जो और
विकृति आ जाएगी उसे हम जान बूझकर अनदेखा कर रहे हैं. वे कहती हैं कि भले ही वे इन
सेक्स रोबोट्स पर प्रतिबंध की वकालत न करें, लोगों को इनके सम्भावित दुष्परिणामों
के बारे में आगाह कर देना अपना दायित्व समझती हैं. कैथलीन यह भी कहती हैं कि अगर
सेक्स के लिए रोबोट्स का इस्तेमाल बढ़ गया तो इसका प्रतिकूल असर मानवीय संवेदनाओं पर तो पड़ेगा ही, समाज का
स्त्री के प्रति जो नज़रिया है और अधिक विकृत हो जाएगा.
लेकिन डेवी का कहना है कि हमारी ज़िन्दगी
में रोबोट्स की आमद तो बढ़ेगी ही. उसे रोक पाना तो नामुमकिन है. और जब उनकी
आमद बढ़ेगी तो वे न सिर्फ हमारे सेवक और
सहायक के रूप में हमारी ज़िन्दगी में आएंगे, वे हमारे दोस्त, सहचर और फिर शैया संगी
बनकर भी आएंगे. डेवी बड़ी ईमानदारी से कहते हैं कि बहुत मुमकिन है कि कुछ लोग अपने
साथी के रूप में मनुष्य की बजाय रोबोट को
पसन्द करने लगें, लेकिन ऐसे लोग बहुत अधिक नहीं होंगे. मनुष्य का झुकाव तो मनुष्य
की ही तरफ रहेगा.
देखते हैं कि डेविड लेवी का यह आशावाद
कितना सही साबित होता है!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में प्रकाशित मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 01 दिसम्बर, 2015 को सेज पर रोबोट, क्या मनुष्य की ज़रूरतें पूरी करेगा शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.