पिछले दिनों हमारे देश में व्यापार के नए
तौर तरीकों को लेकर काफी चर्चाएं हुई हैं. जो लोग पारम्परिक तरीकों से व्यापार
करते हैं, उनके हित इन नए खिलाड़ियों के आने से आहत हुए हैं, और इसलिए उनका इनके
विरोध में आवाज़ उठाना समझ में आता है. इनसे कुछ शिकायतें सरकार की भी हैं.
तौर-तरीके क्योंकि नए हैं इसलिए कुछ तो अस्पष्टताएं हैं और कुछ डण्डी मारने की
प्रवृत्ति – जो हमारे स्वभाव का स्वाभाविक हिस्सा है. यह भी कि सरकार अपने नियंत्रक
अधिकार और इंस्पेक्टर राज के वर्चस्व को भला क्यों छोड़ दे? कुछ और बातें भी इस बीच
हुईं, मसलन एक नई कार टैक्सी सेवा में कुछ जगहों पर महिलाओं से बदसुलूकी हुई, तो
इस तरह की सेवाओं के विरोध का माहौल बना.
लेकिन अपने हाल के कुछ अनुभव पहले आपसे
साझा कर लूं, फिर इस बात को थोड़ा आगे बढ़ाना चाहूंगा. पिछले कई बरसों से मैं पास की
एक दुकान से अण्डरवियर बनियान वगैरह
खरीदता हूं. दुकानदार से
जान-पहचान-सी हो गई है. खरीदरारी न करना हो तब भी उधर से गुज़रते हुए दुआ सलाम हो
जाती है. अभी पिछले दिनों उसके पास अण्डरवियर खरीदने गया. साइज़ को लेकर कुछ
अनिश्चितता लगी तो मैंने कहा कि मैं भुगतान करके ये चार अण्डरवियर ले जा रहा हूं, अगर साइज़ को लेकर कोई दिक्कत हुई तो शाम तक लौटा
दूंगा. बताता चलूं, उसके यहां ट्रायल रूम जैसी कोई सुविधा नहीं है. उसने कहा कि
लौटा मैं भले ही दूं, वो नकद पैसे नहीं लौटायेगा, मुझे उतनी ही या उससे अधिक राशि
की खरीदरारी ही करनी होगी. मुझे और कोई चीज़ खरीदनी नहीं थी. उसके अण्डरवियर लौटाए
और अन्यत्र चला गया. ध्यान दें कि यहां उत्पाद को पहन कर देखने पर उसकी कोई आपत्ति
नहीं थी. अगर होती तो वो कोई और चीज़ देने को क्यों तैयार होता. अब इसी के सामने रख
कर देखें मेरा यह अनुभव. अपने वर्तमान ब्रॉडबैण्ड से असंतुष्ट हो मैंने दूसरे
प्रदाता की सेवा लेने का फैसला किया. आवेदन की औपचारिकताएं पूरी कर लेने के बाद
मुझे सलाह दी गई कि बेहतर हो वायरलेस मॉडेम सह राउटर मैं ही खरीद लूं. फिर वे आकर इंस्टॉलेशन
कर देंगे. मैंने एक डॉट कॉम विक्रेता को एक राउटर का ऑर्डर भेज दिया, तीसरे दिन वो
राउटर मुझे डिलीवर हो गया, और पांचवें दिन ब्रॉडबैण्ड कम्पनी का तकनीशियन
इंस्टॉलेशन करने मेरे घर आ गया. उसने राउटर देखते ही कहा कि यह काम नहीं आएगा. उससे बात करके मुझे समझ में आया कि मैंने ग़लत
उत्पाद मंगवा लिया था. एक बार तो मन खराब हो गया कि ये पैसे बर्बाद हो गए! फिर उस
विक्रेता की साइट पर जाकर देखा तो पाया कि
वहां खरीदे हुए उत्पाद को लौटाने का भी
प्रावधान है. बहुत सरल-सी प्रक्रिया पूरी की. ऑनलाइन प्रश्नावली में मुझसे यह तो पूछा
गया कि मैं उनका उत्पाद क्यों लौटा रहा हूं लेकिन कोई ना-नुकर नहीं की गई. इतना ही
नहीं, उनका आदमी आज सुबह मेरे घर आकर बाकायदा रसीद देकर वो उत्पाद मुझसे ले गया, यानि
उसे लौटाने के लिए भी मुझे कोई कष्ट नहीं करना पड़ा. और बड़ा चमत्कार तो यह कि इस
बात को बमुश्किल तीन घण्टे बीते हैं कि मेरे पास अपनी पूरी राशि के रिफण्ड होने की
सूचना आ गई है.
अब एक अन्य प्रसंग. अभी तीन दिन पहले किसी
पारिवारिक प्रसंग में रेल से कहीं जाना हुआ. जैसे ही रेल्वे स्टेशन से बाहर निकले
हमेशा की तरह ऑटो वालों ने घेर लिया.
पूछने पर बताया कि मेरे घर तक पहुंचाने का वे एक सौ पचास रुपया लेंगे. जब मैंने
कहा कि यह काफी ज़्यादा है तो वे लोग बोले कि हमने आपको सामान का पैसा तो बताया ही
नहीं है, वो हम अलग चार्ज करते हैं. मुझे ऑटो में आना
नहीं था. क्यों आता? विकल्प मुझे मालूम था. एक दिन पहले ही तो मैं घर से स्टेशन
गया था. एकदम मुंह अन्धेरे मेरी ट्रेन थी. अपने स्मार्ट फोन पर एप के ज़रिये टैक्सी कॉल की थी. ठीक साढ़े तीन मिनिट में
टैक्सी आ गई थी (जबकि ऑटो बुलाने मुझे थोड़ी दूर जाना पड़ता) और घर से स्टेशन की
अठारह मिनिट में पूरी हुई साढ़े आठ किलोमीटर की यात्रा का बिल छियानवे रुपये का बना था. कोई मुझे बताए कि एक वातानुकूलित टैक्सी कार
आपको जो दूरी छियानवे रुपये में तै करवा रही हो उसी दूरी के लिए आप ऑटो को एक सौ
पचास रुपये क्यों देना चाहेंगे?
मेरी सहानुभूति हमेशा बड़े खिलाड़ियों की
तुलना में छोटे खिलाड़ियों के प्रति रहती है. बहुत बार यहां तक हुआ है कि ऑटो छोड़कर
मैंने रिक्शा पकड़ा है. मॉल की बजाय नुक्कड़ का दुकानदार हमेशा मेरा प्रिय रहा है.
लेकिन जब इस तरह के अनुभव होते हैं तो सोचना पड़ता है कि मेरी और मुझ जैसों की
सहानुभूति के दम पर ये कब तक टिके रहेंगे?
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लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अन्तर्गत मंगलवार, 30 जून, 2015 को नए व्यापारियों के तौर-तरीके, अच्छी सेवा से ब्राण्ड बनाना शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.