पश्चिम के देशों में पालतू जानवर (पेट्स) रखने
का चलन बहुत अधिक है. कोई कुत्ता पालता है, कोई बिल्ली तो कोई गिलहरी तो कोई
लोमड़ी, तो कोई कुछ और. अपने अमरीका प्रवास
के दौरान जब मैंने इसकी वजह जानने की कोशिश की तो वहां के समाज से परिचित लोगों ने
बताया कि वे लोग मनुष्य पर पशु को इसलिए तरजीह देते हैं कि वो कोई अपेक्षा नहीं
रखता है. इस सोच पर काफी लम्बी बहस हो सकती है. फिलहाल तो मैं पालतू पशु के
सन्दर्भ में न्यूज़ीलैण्ड की बात करना चाहता हूं जहां बिल्ली पालने का चलन इतना
अधिक है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार वहां की आधी आबादी ने कम से कम एक बिल्ली तो पाल ही रखी है और न्यूज़ीलैण्ड
दुनिया के सबसे ज़्यादा बिल्लियां पालने वालों का देश है.
लेकिन अब इसी बिल्ली-प्रेमी न्यूज़ीलैण्ड में
गारेथ मॉर्गन नाम एक सज्जन ने यह बीड़ा उठाया है कि वे जितना जल्दी सम्भव हुआ, अपने
देश को बिल्ली-मुक्त देश बनाकर रहेंगे! ये मॉर्गन महाशय जो एक प्राणी विज्ञानी
हैं, अपने देश में कैट्स टू गो नाम से एक प्रोजेक्ट चलाते हैं और इनका कहना है कि बिल्लियां उतनी मासूम नहीं
होती हैं, जितना आप उन्हें समझते हैं! अपनी वेबसाइट पर इन्होंने लिखा है कि रूई के
रोंये के गोले जैसे जिस प्राणी को आप पालते हैं वो तो जन्मजात क़ातिल है! अपनी बात को और स्पष्ट करने के
लिए इन्होंने अपनी वेबसाइट पर बिल्ली की फोटोशॉप की हुई भयानक सींगों वाली एक तस्वीर भी लगा रखी है. मॉर्गन
कहते हैं, “सच्चाई तो यह है कि अगर आप अपने पर्यावरण की तनिक भी परवाह करते हैं तो
आपको इन बिल्लियों को दफा कर देना चाहिए!”
और अब ज़रा बिल्लियों के इन दुर्वासा की
नाराज़गी की वजह भी जान लीजिए! मॉर्गन का मानना है कि बिल्लियां अकेले दम ही उनके
देश की अनेक स्थानीय पक्षी प्रजातियों को विलुप्त करती जा रही हैं. मॉर्गन ने बाकायदा अध्ययन करके
बताया है कि औसतन एक बिल्ली साल में तेरह शिकार करके घर लाती है. लेकिन असल में तो
वो अपने किये हुए पाँच शिकारों में से एक को ही घर पर लाती है, इस तरह हर बिल्ली साल में कम से कम पैंसठ
शिकार करती है. और क्योंकि बिल्लियां आम तौर पर सुनसान जगहों पर रहती हैं और काफी
लम्बी दूरियां तै करने की सामर्थ्य रखती
हैं वे चूहों के अलावा अनेक पक्षियों व अन्य प्राणियों का भी शिकार कर लेती हैं. हालांकि
एक अन्य वन्यजीव विशेषज्ञ जॉन इनस इसी बात
के लिए बिल्लियों के प्रशंसक भी हैं कि वे चूहों को मारकर या भगाकर चिड़ियों की रक्षा करती हैं, ज़्यादातर पर्यावरण प्रेमी
बिल्लियों से नाराज़ ही लगते हैं. डेविड विण्टर नाम के एक वन्यजीव ब्लॉगर कहते हैं
कि बिल्लियां न्यूज़ीलैण्ड की कम से कम छह पक्षी प्रजातियों का खात्मा कर चुकी हैं.
लॉरा हेल्मुट भी उन्हीं की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाते हुए कहती हैं कि बिल्लियां
हर जगह घुसपैठ कर लेती हैं और वे उस द्वीप के ऐसे ईकोसिस्टम को नष्ट कर रही हैं
जिसमें कुछ ऐसी प्रजातियां भी मौज़ूद हैं
जो दुनिया में अन्यत्र कहीं भी नहीं हैं.
और ऐसा नहीं है कि यह सारी चर्चा जंगली या
कि भूखी-नंगी बिल्लियों को लेकर ही हो रही है. खूब खाई-पी हुई बिल्लियां भी उतनी
ही ख़तनाक हैं. असल में बिल्लियां शिकार
भूख की वजह से ही नहीं शौक की वजह से भी करती हैं. उन्हें इसमें मज़ा आता है. एक मज़ेदार
अध्ययन से इस बात की पुष्टि की गई है. छह
बिल्लियों के सामने उस वक्त एक छोटा-सा चूहा लाया गया जब वे अपने पसन्दीदा भोजन का लुत्फ ले रही थीं. आपको जानकर
ताज्जुब होगा कि इन छह की छह बिल्लियों ने अपना पसन्दीदा खाना छोड़ा, उस बेचारे
चूहे पर टूट पड़ीं, उसका शिकार किया, और फिर अपने मनपसन्द खाने की तरफ मुड़ गईं! असल
में उन्हें भोजन की पसन्द नापसन्द से कोई फर्क़ नहीं पड़ता न खाली और भरे पेट से
पड़ता है. उन्हें तो बस शिकार करने में मज़ा आता है!
ऐसे में वहां के पर्यावरणविदों की फिक्र
अनुचित भी नहीं लगती है. लेकिन जब वे कहते हैं कि अगर आप चिड़िया को बचाना चाहते
हैं तो बिल्ली को मार डालिये, तो लगता है कि वे कुछ ज़्यादा ही उग्र हो रहे हैं. तब
मॉर्गन की यह सलाह काबिले-गौर लगती है कि जिन्होंने बिल्लियां पाल रखी हैं वे कम
से कम उनका बन्ध्याकरण तो कर ही दें. वे कहते हैं, ज़रा आप इन घरेलू बिल्लियों की
मौज़ूदगी का असर चिड़ियाओं की बिरादरी पर देखिये और फिर यह फैसला कीजिए कि अभी जो
बिल्ली आपने पाल रखी है वो आखिरी हो!
▪▪▪
जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में प्रकाशित मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 22 दिसम्बर, 2015 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
No comments:
Post a Comment