Tuesday, October 27, 2015

हनीमून फोटोग्राफी: दो के साथ तीसरा क्यूं?

पिछले पचास-साठ बरसों में भारतीय वैवाहिक व्यवस्थाओं में जो बड़े बदलाव आए हैं उनमें वैवाहिक फोटोग्राफ़ी में आए बदलाव खास तौर पर ग़ौर तलब हैं. अगर आप आज पिछली या उससे पिछली पीढ़ी के प्रोपोज़ल फोटोग्राफ़ और शादी के एलबम देखें तो शायद  हंसे बग़ैर न रहें. किसी स्टूडियो में एक कृत्रिम गमले के पास खड़ी सकुचाई सिमटी युवती या थ्री पीस सूट में अकड़े और असहज खड़े युवा की तस्वीर हो या वो भारी भरकम एलबम हो जिसमें श्वेत श्याम तस्वीरें पहले कॉर्नर्स के सहारे अटकाई जाती थी और बाद में रंगीन तस्वीरें सीधे ही शीट पर प्रिण्ट की जाने लगीं, इन सबमें लोग जिन मुद्राओं में दिखाई देते हैं वे आज के दर्शक के मुंह पर एक वक्र मुस्कान लाने के लिए पर्याप्त हैं.   स्टिल तस्वीरों के बाद आया वीडियो का ज़माना जब हममें से ज़्यादा वीडियो के लिए भी वैसे ही पोज़ दिया करते थे जैसे स्टिल फोटो के लिए देते थे. पहले वीडियो फोटोग्राफी होती और फिर हमारा स्टूडियो उसमें स्पेशल इफेक्ट डाल कर और उसे चालू  फिल्मी संगीत  से सज़ा कर वीडियो कैसेट बना कर हमें देता जिसे थोड़े समय बाद हम वीसीडी में भी कन्वर्ट  करवाने लगे. अब शादियों में ड्रोन से फोटोग्राफी का चलन लोकप्रिय होता जा रहा  है.

बात सिर्फ तकनीक की ही नहीं है. अगर आप इन तस्वीरों और वीडियोज़ में दुल्हा दुल्हन और उनके परिजनों की मुद्राओं को देखें तो बदलाव को बहुत आसानी से लक्ष्य कर सकते हैं. पहले की तस्वीरों में दुल्हा-दुल्हन के बीच एक सम्मानजनक दूरी साफ देखी जा सकती है जो लगातार कम होती गई है. पहले की तस्वीरों में जैसे वे प्रयत्न करते हैं कि कहीं एक दूसरे को छू न लें, और यह प्रयत्न लुप्त होते-होते हालत यह हो गई कि दुल्हा दुल्हन एक दूसरे का हाथ थामे, आलिंगन बद्ध हो या चुम्बन करते हुए फोटो खिंचवाना भी ज़रूरी समझने लगे. इस बदलाव के मूल में समाज और जीवन शैली में आए बदलाव का भी कम योगदान नहीं है. हम सिल्वर स्क्रीन पर भी तो यह बदलाव देख रहे हैं. कह सकते हैं कि जो सिल्वर स्क्रीन पर कुछ समय पहले घटित हुआ वह हमारे शादी के एलबमों में अब घटित हो रहा है.

जी हां. अब शादी से पहले दुल्हा दुल्हन बाकायदा रोमांस करते हुए फिल्म बनवाते हैं और वह फिल्म शादी के वक़्त सबको दिखाई जाती है. निश्चय ही शादी से पहले का यह रोमांस काफी सात्विक होता है और अगर फिल्म बनवाने वालों का आर्थिक और मानसिक स्तर उच्च होता है तो यह फिल्म काफी आकर्षक और सुरुचिपूर्ण भी होती है. लेकिन इसके बाद जो नए बदलाव आ रहे हैं वे काफी कुछ सोचने को विवश करते हैं. इधर एक नया चलन यह हुआ है कि आर्थिक रूप से समर्थ नव विवाहित युगल अपने हनीमून के लिए भी वीडियोग्राफर की सेवाएं लेने लगे हैं और वे सब कुछ को कैमरे में कैद करवा लेना चाहते हैं. इस सब कुछ को आप ख़ास तौर पर ग़ौर से पढ़ें. असल में यह सब कुछ को कैमरे में कैद करवाने का चलन हनीमून के वक़्त निर्वसन तस्वीरें खिंचवाने के चलन की अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है. कुछ हाई फाई लोगों में दुल्हन की अनौपचारिक अन्तरंग  तस्वीरें खिंचवाने का चलन तो कुछ समय से था ही, जब फोटोग्राफर्स से यह आग्रह किया जाने लगा कि वे हनीमून के दौरान दुल्हन की निर्वसन छवियां भी कैमरे में कैद करें तो फोटोग्राफी की दुनिया में भी थोड़ी हलचल हुई. बहुत सारे जाने-माने  वैवाहिक छायाकारों ने ऑन रिकॉर्ड यह बात कही है कि उन्हें इस तरह के अनुरोध प्राप्त हुए हैं और इन अनुरोधों को पाकर वे असहज हुए या हुई हैं. एक फोटोग्राफर ने कहा है कि उन्हें ऐसा अनुरोध वर की तरफ से प्राप्त हुआ, जिस पर उसने पलटकर यह पूछा कि क्या इस बात के लिए वधू की इच्छा भी जान ली गई है, और जब इस सवाल का जवाब नकारात्मक मिला तो उसने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया. एक और फोटोग्राफर ने बताया कि किसी बहुत बड़े क्लाएंट के यहां से यह प्रस्ताव आया था और उसे सीधे इंकार करने में संकोच हुआ इसलिए उसने यह सोच कर भारी राशि की मांग कर ली कि प्रस्ताव करने वाला खुद ही पीछे हट जाएगा, लेकिन जब उसका यह दांव भी कारगर साबित नहीं हुआ तो उसे सीधे ही मना करना पड़ा.

लेकिन हनीमून के अंतरंग क्रियाकलाप को व्यावसायिक फोटोग्राफर की मदद से कैमरे में कैद करवाने की नई तमन्ना हमें बहुत कुछ सोचने को विवश करती है. क्या यह मात्र अपने अन्तरंग पलों की सुखद स्मृतियों को भविष्य के लिए संजो कर रखने की भावुकतापूर्ण तमन्ना है या इसे किसी मानसिक विकृति की कोटि में शुमार किया जाना चाहिए! आप क्या सोचते हैं?

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत इसी शीर्षक से आज प्रकाशित  आलेख का मूल पाठ. 

Tuesday, October 20, 2015

तुमने एयरब्रश के कमाल से मेरी पत्नी को गायब कर दिया

हाल में अमरीका में एक ऐसी घटना घटी जो ऊपर से देखने में सामान्य लगती है लेकिन जिसके निहितार्थ गम्भीर हैं. वैसे इस घटना का सुदूर अमरीका में घटित होना मात्र एक संयोगात्मक तथ्य है, अन्यथा ऐसा कहीं भी हो सकता है. अपने देश में भी.

हुआ यह  कि वहां की एक महिला को लगा कि विवाह के दो दशक बीत जाने और इस बीच उसकी देह में आए उम्र जनित और अन्य बहुत सारे स्वाभाविक बदलावों के कारण वो अपने पति की निगाहों में पहले जितनी दिलकश नहीं रह गई है. उसने सोचा कि क्यों न पतिदेव को विवाह की वर्षगांठ पर एक अनोखा उपहार दिया जाए! जब पति के पास उस  उपहार का बक्सा पहुंचा तो उसने बड़ी उत्सुकता से साथ उस बक्से को खोला, और पत्नी के भेजे प्रेमिल उपहार को अपने हाथों में लिया. जैसे ही उसने एक नज़र उस उपहार पर डाली, उसका दिल बैठ गया.

उपहार के रूप में उसके हाथों में थी खूबसूरत तस्वीरों  की एक एलबम. ज़ाहिर है कि ये  तस्वीरें  उसकी पत्नी की थी थी. लेकिन वो कोई साधारण तस्वीरें  नहीं थीं. वो उसकी पत्नी की फोटोशॉप की हुई, बेहतर बनाई हुई तस्वीरें थीं. उम्र के उन दो दशकों ने उसकी पत्नी के चेहरे-मोहरे  को जो कुछ भी दिया था, उसे एयरब्रश की सहायता से हटा दिया गया था, और इसी बात ने पति देव को उदास कर दिया था.

उन्होंने उस फोटोग्राफर विक्टोरिया हाल्टन को एक ख़त लिखा.  विक्टोरिया ने हाल ही में उस ख़त को अपने फेसबुक पेज पर साझा किया है. यह पत्र पढ़ने और ग़ौर करने काबिल है. पति ने लिखा है: “नमस्ते विक्टोरिया. मैं  (नाम) का पति हूं. मैं आपको यह ख़त इसलिए लिख रहा हूं कि हाल ही में मुझे एक एलबम मिला है जिसमें मेरी पत्नी की वे तस्वीरें हैं जो आपने ली हैं. मैं यह क़तई  नहीं चाहता हूं कि आपको ऐसा लगे कि  मैं उन तस्वीरों से अपसेट हूं.... लेकिन हां, मेरे पास सोचने के लिए कुछ मुद्दे हैं जिन्हें मैं आप तक पहुंचाना चाहता हूं. मैं अपनी पत्नी के साथ तब से हूं जब वे अठारह बरस की थीं और हमारे दो खूबसूरत बच्चे हैं. इन बरसों में हमारी ज़िन्दगी में कई उतार-चढ़ाव आए हैं, और मेरा खयाल है कि खुद मेरी पत्नी ने ही आपसे इस तरह की परिष्कृत तस्वीरें तैयार करने को कहा है. असल में वे कभी-कभी यह शिकायत करती भी हैं कि अब मेरी निगाहों में वे उतनी आकर्षक नहीं रही हैं और अगर मेरी ज़िन्दगी में कोई और आई जो उनसे युवा हों तो क्या पता मैं उसकी तरफ खिंच जाऊं. तो मैंने जब इस एलबम को खोला तो मेरा दिल बैठ गया. ये  तस्वीरें बहुत खूबसूरत हैं और आपने अपना काम बखूबी किया है. आप बहुत टेलेण्टेड फोटोग्राफर हैं...लेकिन इन तस्वीरों में मेरी पत्नी नहीं है. आपने तो उसके हर नुक्स को गायब कर दिया है. शायद उसी ने आपको ऐसा करने को कहा था.  लेकिन आपके ऐसा करने से वो हर चीज़ गायब हो गई है जिसने  हमारी ज़िन्दगी का निर्माण किया था. जब आपने उसके स्ट्रेच मार्क्स हटाए तो आपने हमारे बच्चों के जन्म का इतिहास भी मिटा डाला, जब आपने उसकी झुर्रियां हटाईं  तो आपने हमारे संग-साथ के इन बरसों की तमाम मुस्कानें और हमारी चिन्ताएं भी मिटा दीं. जब आपने उसकी चर्बी हटाई तो आपने उसकी पाक कला निपुणता और उन सारी स्वादिष्ट चीज़ों की यादें भी मिटा डालीं जो इन बरसों में हमने साथ-साथ खाई थीं. मैं जानता हूं कि आपने अपना काम किया है. लेकिन मैं आपको सिर्फ यह बताने के लिए यह पत्र लिख रहा हूं कि इन तस्वीरों को देखकर मुझे यह बात महसूस हुई है कि शायद मैं अपनी पत्नी को ठीक से यह बात नहीं कह सका हूं कि मैं उससे कितना ज़्यादा  प्यार करता हूं और जैसी भी वो है उसी रूप में उसे कितना अधिक चाहता हूं. इस तरह की बातें उसे कभी-कभार ही सुनने को मिलती हैं इसलिए उसने शायद यही सोचा होगा कि मैं उसे इन फोटोशॉप की हुई तस्वीरों जैसी देखना चाहता हूं. मुझे और बेहतर करना होगा और अपनी ज़िन्दगी के शेष बचे दिनों में मैं उसकी अपूर्णता के साथ ही उल्लसित रहूंगा. मुझे यह याद  दिलाने के लिए आपका आभार.”

आज हो यह रहा है कि विज्ञापनों आदि के द्वारा हमारे  सामने बहुत सारी आकर्षक और काम्य छवियां लहरा कर हमें लुभाया जा रहा है और उस सबके बीच हम अपने असल को विस्मृत करते जा रहे हैं. यह प्रसंग हमें एक बार फिर उसी असल की तरफ लौटा ले जाता है. मुझे अनायास ही याद आ रहा है 1984 की फिल्म ‘सारांश’ के आख़िर में अनुपम खेर अपनी वृद्धा पत्नी से कहते हैं, “तुम्हारे चेहरे की झुर्रियों में मेरे जीवन का सारांश है.”

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 20 अक्टोबर, 2015 को इसी शीर्षक से प्रकाशित  आलेख का मूल पाठ. 

Tuesday, October 13, 2015

तुम्हारी ज़मीन पर हमारा झण्डा

एनिमेशन फिल्मों की दुनिया में डिज़्नी एक बड़ा नाम है और इस लेबल से जब भी कोई फिल्म आती है उसे खूब देखा और सराहा जाता है. लेकिन इस बार मामला  थोड़ा अलग है. हाल में जब यह खबर आई कि डिज़्नी वाले द प्रिंसेस ऑफ नॉर्थ सूडान नाम से एक एनिमेशन फिल्म बनाने जा रहे हैं जो कि एक सत्य वृतांत पर आधारित होगी,  तो माहौल ख़ासा गरमा गया.  इसकी वजह जानने  से पहले उस वृत्तांत को जान लिया जाए जिस  पर यह फिल्म आधारित होगी.

अमरीका के वर्जीनिया इलाके के एक प्रेमिल पिता जेरेमिया हीटन से एक रात उनकी छह साला लाड़ली बेटी ने एक मासूमियत भरा सवाल किया कि क्या वो भी कभी वास्तविक प्रिंसेस बन पाएगी? और बस, इस सवाल ने पिता के मन में गहरी हलचल पैदा कर दी. वे अपनी बेटी का नाज़ुक दिल नहीं तोड़ना चाहते थे, इसलिए उन्होंने खुद एक झण्डा डिज़ाइन किया और निकल पड़े दुनिया में कोई ऐसी जगह तलाश करने जहां की प्रिंसेस वे अपनी प्यारी बेटी को बना सकें. काफी खोज बीन और पूरे चौदह घण्टों की तलाश के बाद उन्हें सूडान और मिश्र के बीच आठ सौ वर्गमील की बिर तविल नामक एक ऐसी लगभग जन शून्य और बंजर ज़मीन मिली जिसे वे अपना साम्राज्य कह सकते थे. जेरेमिया हीटन को यह बात भी याद आती है कि इसी तरह तो दुनिया के बहुत सारे देशों, जिनमें संयुक्त राज्य अमरीका भी शामिल है, की खोज हुई थी. जून 2014 में अपनी बेटी के सातवें जन्म दिन पर ये जेरेमिया हीटन वहां जाते हैं और उस ज़मीन पर एक नया झण्डा गाड़ कर उसे उत्तरी सूडान नामक देश घोषित करते हैं, जिसकी प्रिंसेस उनकी बेटी होगी. 

डिज़्नी की इस प्रस्तावित फिल्म में ये हीटन महोदय अपनी लाड़ली बिटिया के नव स्थापित राष्ट्र को जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से अचाने के लिए उन्नत और नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकों  कोई प्रयोगभूमि भी बनाना चाहते हैं. अपनी वेबसाइट पर उन्होंने इस ‘क्रांतिकारी बदलाव’ के लिए ‘सर्वश्रेष्ठ  वैज्ञानिक शोध’ को मुमकिन बनाने के लिए आर्थिक सहयोग की मांग भी  की है.             


डिज़्नी वालों ने इस फिल्म की पटकथा लिखने का दायित्व ब्लैक लिस्ट के लिए सुविख्यात स्टेफ़नी फॉल्सॉम को सौंप दिया.

लेकिन जैसे ही इस फिल्म के निर्माण  की योजना की चर्चाएं सामने आईं संवेदनशील और डिज़्नी के अतीत से परिचित लोगों में गुस्से की एक लहर सी दौड़ गई. लोगों को लगा कि यह मात्र एक बेटी के प्यार में उसकी मासूम इच्छा पूरी करने को प्रयत्नशील पिता की कथा नहीं है. इस कथा का एक अन्य और अधिक ख़तरनाक  पाठ भी है. इन संवेदनशील लोगों को लगा कि इस मासूम कहानी के पीछे असल में अश्वेत दुनिया पर गोरों के वर्चस्व और साम्राज़्यवाद तथा उपनिवेशवाद की क्रूर गाथा छिपी है.  और यह भी क्या बात हुई कि एक गोरा बाप अपनी प्यारी बेटी की एक बालसुलभ आकांक्षा  को पूरा करने के लिए फौरन एक अभियान पर निकल पड़े और एक ऐसे देश और ऐसी धरती पर जाकर अपने स्वामित्व का झण्डा गाड़ दे जिसपर उसका कोई प्राकृतिक और स्वाभाविक अधिकार नहीं है. क्या इस मासूम-सी लगने वाली कथा में उपनिवेशवाद की और गोरे लोगों के बेशर्म स्वार्थ और वीभत्स लालच की चावियां नहीं कौंधती हैं?    

सवाल यह भी उठाया गया कि आखिर क्यों हर राजकुमारी गोरी ही होती है? क्या अफ्रीकी देश की कोई बच्ची राजकुमारी होने का सपना देखती हुई नहीं दिखाई जा सकती थी?  और इस सवाल के पीछे थी डिज़्नी फिल्मों के अतीत की अप्रिय स्मृतियां. जिन्होंने उनकी जंगल बुक या अलादीन जैसी फिल्में देखी हैं उन्हें याद होगा कि डिज़्नी का रवैया सदा ही गोरी चमड़ी के महिमामण्डन का रहता है. अपनी बहुत कम फिल्मों में उन्होंने अश्वेतों को उजली छवि के साथ चित्रित किया है. लोगों ने इस बात को भी याद करना ज़रूरी समझा कि खुद डिज़्नी नाज़ियों के प्रति सहानुभूति  रखते थे. और इसीलिए आलोचकों को यह बात आपत्तिजनक लगी कि डिज़्नी वाले अपनी पहली अफ्रीकी प्रिंसेस भी एक गोरी लड़की को ही बनाने जा रहे हैं.  उनका सवाल था कि क्या इस तरह वे लोग एक बार फिर श्वेत श्रेष्ठता और अमरीकी साम्राज्यवाद  का झण्डा बुलन्द नहीं करने जा रहे हैं?

हालांकि फिल्म की पटकथा लेखिका ने अपने बयानों आदि में आलोचकों को जवाब देने का और उनकी आशंकाओं को निर्मूल साबित करने का प्रयास किया है, और इस बात से पूरी दुनिया के समझदार लोगों को खुशी भी होगी अगर वे अपने कहे को पूरा कर सकीं, लेकिन अपने तमाम आशावाद के बावज़ूद डिज़्नी का वो अतीत जिसका ज़िक्र हमने ऊपर किया है, हमें इस बात पर विश्वास नहीं करने दे रहा है. ऐसे में फिल्म का इंतज़ार तो करना ही होगा.

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 13 अक्टोबर, 2015 को द प्रिंसेस ऑफ नॉर्थ सूडान: तुम्हारी ज़मीन हमारा झण्डा शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ. 

Tuesday, October 6, 2015

इधर ब्रिटेन में एक सर्वेक्षण किया गया है जिसे इस विषय पर किया गया सबसे ज्यादा विस्तृत वैज्ञानिक सर्वेक्षण बताया जा रहा है. यूनिवर्सिटी कॉलेज, लन्दन की एक टीम द्वारा किये गए इस सर्वेक्षण में लगभग  पाँच सौ प्रश्नकर्ताओं ने पूरे ब्रिटेन में 16 से 74 बरस की उम्र के  लगभग पन्द्रह हज़ार स्त्री-पुरुषों से  बहुत विस्तार  से बात करते हुए उनके निजी जीवन के बारे में निहायत ही व्यक्तिगत सवाल पूछे.

इस सर्वेक्षण में क्या-क्या पूछा गया इससे अधिक महत्वपूर्ण यह बात है कि  जहां अधिकतर उत्तरदाता निहायत व्यक्तिगत सवालों पर भी बात करने को तुरंत तैयार हो गए, वहीं सिर्फ तीन प्रतिशत से भी कम ने ऐसा करने से इंकार किया. अब ज़रा इसके  सामने यह तथ्य भी देखें कि इन्हीं उत्तरदाताओं में से बीस प्रतिशत अपने वेतन या अपने घर परिवार की सकल आय के बारे में बताने को तैयार नहीं थे. क्या पता, उनमें से कुछ  बेचारों को खुद ही इसकी जानकारी  न हो!

निस्संदेह आप यह जानने को उत्सुक होंगे कि इस सर्वेक्षण में क्या-क्या बातें पता लगीं? इस सर्वेक्षण का उद्देश्य था सेक्स शिक्षा और सेक्सुअल स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जानकारी जुटाना. स्वभावत: इस सर्वेक्षण के सवाल भी इसी किस्म के थे. एक सवाल के जवाब में पता चला कि आज एक औसत ब्रितानी स्त्री के चार प्रेमी होते हैं (हाय राम!). लेकिन चौंकिये मत! वहां पुरुष अभी भी कम से कम इस मामले में स्त्री से आगे है. उसकी प्रेमिकाओं की औसत संख्या छह है. लेकिन अब एक विरोधाभास भी देख लीजिए. एक तरफ जहां औसत ब्रितानी स्त्री-पुरुष ने अपने प्रेमी-प्रेमिकाओं की संख्या में वृद्धि की है, वहीं दैहिक सम्पर्क के मामले में वे पीछे लौटे हैं. 1990 में जब इसी किस्म का एक सर्वेक्षण किया गया था तो पाया गया था कि वे महीने में पाँच दफा अंतरंग होते हैं, जबकि इस बार के सर्वेक्षण में यह संख्या घटकर तीन ही रह गई है.

लेकिन हम बात उनके निजी जीवन की नहीं करके यह कर रहे हैं कि किस बेबाकी से वे अपनी बेहद निजी जानकारियां भी सार्वजनिक कर डालते हैं.  एक सर्वेक्षणकर्ता ने भी कहा कि ज्यादातर लोग इण्टरव्यू शुरु होने के बाद इतने उन्मुक्त हो जाते हैं कि वे हमें सब कुछ बताने को तैयार हो जाते हैं. और जैसे इतना ही काफी न हो, उस सर्वेक्षणकर्ता  ने तो यहां तक कह डाला कि इन अंग्रेज़ों को अजनबियों से अपने सेक्स जीवन के बारे में बात करना अच्छा लगता है और वे अपने अफेयर्स के बारे में, अपने पार्टनर्स के बारे में सब कुछ कह डालना चाहते हैं. उनकी ज़ुबान पर लगाम बस एक ही जगह आकर लगती है. जैसे ही आप उनसे उनकी आमदनी के बारे में पूछते हैं, वे चुप हो जाते हैं. सर्वेक्षणकर्ताओं ने बाद में बताया कि उन्होंने पाया कि उनके देश वासी अपने वेतन के बारे में बात करने की तुलना में अपने शयन कक्ष के भीतर की अंतरंग गतिविधियों, अपने अफेयर्स और यहां तक कि अपने यौन रोगों के बारे में भी बात करने को सात गुना अधिक तैयार पाए गए.

ऐसा क्यों है कि जो बात सार्वजनिक नहीं करने की है उसे तो खुलकर बता दिया जाता है, और जिस बात में छिपाने जैसा कुछ भी नहीं है, उसे बताने से परहेज़ किया जाता है? इस बात का विश्लेषण किया डॉ पाम स्पर नामक एक रिलेशनशिप एक्सपर्ट  ने. उनका खयाल है कि ब्रिटेन में पैसों के बारे में बात करना सुरुचिपूर्ण नहीं माना जाता है. लेकिन अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए, और उसे भाषाजाल में लपेटते हुए उन्होंने यह भी कहा कि एक तरफ जहां लोग  अपने प्रेम जीवन के बारे में बात करने के लिए ज़रूरत से ज्यादा उत्सुक हैं, वहीं दूसरी तरफ वे  सच्चाई को लेकर बहुत ज्यादा कृपण  हैं. अगर इससे भी उनकी बात स्पष्ट न होती हो तो बस उनका यह कथन और सुन लीजिए: “कुछ लोग इस बात को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं कि उनका सेक्स जीवन कितना भरापूरा है.” 

इसी बात का एक अन्य कोण से वहीं के एक शिष्टाचार विशेषज्ञ विलियम हानसन ने भी विश्लेषण किया है.  उनका कहना है  कि “हम ब्रिटिश लोग पैसों के बारे में बात करने से घृणा करते हैं. यह विषय इतना गन्दा है कि हमने तै कर लिया है कि हम कभी इस पर बात नहीं करेंगे.” हानसन ने  इसी सिलसिले में एक बात और कही है और कम से कम वह बात तो हम अपने देश और समाज में भी पाते हैं. उन्होंने कहा कि जो “कदीमी अमीर है वे अपनी सम्पदा के बारे में बात करते हुए संकोच बरतते हैं जबकि जो हाल ही में अमीर हुए हैं वे आम तौर पर ज्यादा बेशर्म होते हैं.”  

चलिये, कम से एक एक मामले में तो हम और वे एक जैसे हैं!

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अन्तर्गत मंगलवार, 06 अक्टोबर, 2015 को छिपाना भी नहीं आता, बताना भी नहीं आता शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.