जबसे भाजपा के प्रधानमंत्री पद के
उम्मीदवार ने अपना 2014 का लोकसभा का चुनाव बनारस से लड़ने की घोषणा की है, देश के प्राचीनतम और
पवित्रम नगरों में से एक यह नगर एक बार फिर से दुनिया भर के मीडिया के आकर्षण का
केंद्र बन गया है. लेकिन ऐसा नहीं है कि काशी और वाराणसी के नामों से भी जाना जाने वाला यह शहर इससे पहले
कम महत्वपूर्ण था. बल्कि सच तो यह है कि राजनीति के गर्दो-गुबार ने इस शहर के
समृद्ध अतीत को थोड़ा धूमिल ही किया है. और
इसी से याद आता है कि यह नगर नई कविता के बहुत महत्वपूर्ण कवि धूमिल का भी था. जी
हां, वे ही धूमिल जिनके कविता संग्रह ‘संसद से सड़क तक’ के बगैर आधुनिक हिंदी कविता की कोई तस्वीर बनती
ही नहीं है. बीट जनरेशन के अमरीकी
यहूदी कवि एलेन गिंसबर्ग ने इसी शहर में
रहकर अपना महत्वपूर्ण सृजन किया और साठ के दशक में यह शहर दुनिया भर के हिप्पियों
वगैरह के आकर्षण का केंद्र बना रहा. इस शहर का महत्व तो इतना ज़्यादा रहा है कि
इसके नाम पर लोग अपने बच्चों के नाम रखते थे जैसे- बनारसी दास या काशीनाथ.
और बात जब साहित्य की आ ही
गई है तो यह भी याद कर लेना चाहिए कि गोस्वामी तुलसीदास ने अपना रामचरितमानस इसी नगर
में लिखा था और कबीर भी यहीं हुए थे. और ये ही क्यों, रविदास और
कबीर के गुरु रामानंद भी तो यहीं के थे. हिंदी साहित्य के आधुनिक काल की शुरुआत जिनसे होती है वे भारतेंदु हरिश्चंद्र
और उनके लगभग समकालीन राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद, जासूसी
तिलस्मी उपन्यासों के सर्जक देवकीनंदन खत्री, महान आलोचक
रामचंद्र शुक्ल, कथा सम्राट प्रेमचंद, कामायनीकार
जयशंकर प्रसाद और हमारे समय के एक बहुत बड़े कथाकार-निबंधकार-आलोचक आचार्य
हजारीप्रसाद द्विवेदी, कथाकार शिवप्रसाद सिंह और ललित निबंधकार विद्यानिवास मिश्र उन महान साहित्यकारों में से कुछ हैं जो बनारस
में हुए.
बात अगर भारतीय शास्त्रीय
संगीत की करें तो बनारस घराने के इस शहर ने पण्डित रवि शंकर और उस्ताद बिस्मिल्लाह
खान जैसे भारत रत्नों के अलावा पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर, गिरिजादेवी,
सिद्धेश्वरी देवी, अनोखे लाल, सामता प्रसाद उर्फ गुदई महाराज, कण्ठे महाराज, राजन और साजन
मिश्र, सितारा देवी, गोपीकृष्ण जैसे
अनेक संगीत रत्न दिये हैं. कला प्रेमियों और इतिहास वेत्ताओं की जब भी याद आएगी,
राय कृष्णदास और उनके सुयोग्य पुत्र आनंद कृष्ण के साथ-साथ बी एच यू
परिसर में स्थित उनका भारत भवन याद आए बगैर नहीं रहेगा. और बी एच यू की बात करेंगे
तो भला उसके निर्माता मदन मोहन मालवीय को कोई कैसे याद नहीं करेगा?
हिंदी फिल्मों और
फिल्मकारों को भी इस शहर ने खूब आकर्षित किया है. अगर ‘डॉन’
में अमिताभ बच्चन ने इसी
शहर का पान खा कर अपनी अकल का ताला खोला तो ‘खुल्लम खुल्ला’
में गोविंदा को अपनी नायिका
के लिए यहां के पान की उपमा ही सबसे अच्छी लगी – ये लड़की नहीं ये बनारस का पान
है. पान के अलावा, हमारे फिल्मकारों को जब भी ठगी की कोई
कहानी पसंद आई तो उन्हें बनारस ही याद आया. बनारसी ठगों की कारगुज़ारियों पर आधारित
1968 की दिलीप कुमार-संजीव कुमार अभिनीत ‘संघर्ष’ हो या बाद की ‘बनारसी बाबू’, ‘बनारसी ठग’ या ‘दो ठग’ – ये सब बनारस की एक खास तरह की
छवि सामने लाने वाली फिल्में रहीं. ‘यमला पगला दीवाना’
- पार्ट 1 और पार्ट 2 के
ठगों ने भी अपने उल्टे सीधे कामों के लिए बनारस की धरती को ही उपयुक्त पाया. लेकिन
इधर के फिल्मकारों को इस शहर की याद प्रेम के संदर्भ में भी आने लगी है. सुमधुर गाने ‘बनारसिया’
वाली धनुष और सोनम की प्रेम
कहानी ‘रांझणा’ की कथा भूमि
बनारस ही है और थोड़ा समय पहले आई ‘बनारस अ मिस्टिक लव
स्टोरी’ और आने वाली ‘इसक तेरा’
के केंद्र में भी बनारस ही
था और है. और हां, ‘राम तेरी गंगा मैली’, ‘लागा चुनरी में दाग’ और विवादित फिल्म ‘वॉटर’ की नायिकाओं की दुर्दशा का भी कोई न कोई
सम्बंध इसी शहर से जुड़ता है.
अब जबकि देश की तमाम
चुनावी हलचलों के केंद्र में यह पवित्र नगर है, यह याद दिलाता चलूं कि इसी नगर के
एक कथाकार शिव प्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ काशिकेय
ने अपने एक उपन्यास ‘बहती गंगा’ में
इस नगर के दो सौ बरसों के इतिहास को अनूठे अंदाज़ में समेटा है और इसी नगर
के एक अन्य नामचीन कथाकार काशीनाथ सिंह की
किताब ‘काशी का अस्सी’ अपने विलक्षण अंदाज़े बयां और इस शहर को एक अलग नज़र से देखने और दिखाने के लिए चुनाव
हो चुकने के बरसों बाद भी याद रखी जाएगी. फिलहाल तो देखना यह है कि क्या
आने वाले चुनाव उन हालात
को थोड़ा भी बदल पाने में कामयाब होंगे, जिनसे क्षुब्ध होकर कभी धूमिल को लिखना पड़ा था कि
क्या आज़ादी सिर्फ़ तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिन्हें एक
पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है?
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत 01 अप्रेल, 2014 को 'क्या गुल खिलाएगा 'धूमिल' का शहर बनारस' शीर्षक से प्रकाशित आलेख मूल पाठ.