Tuesday, March 18, 2014

तुम क्या जानो क्या हाल कर दिया था तुमने हमारा

हम सबको इस तरह के अनुभव होते ही रहते हैं. किसी की तनिक-सी उदासीनता, या लापरवाही, या ग़ैर ज़िम्मेदारी – आप जो भी चाहे नाम दे लें उसे, दूसरों के लिए बहुत बड़ी परेशानी का सबब बन जाती है. ऐसा नहीं है कि ऐसी  ग़लती सिर्फ दूसरों से ही होती है, मुझसे  कभी हुई ही नहीं. मुझसे भी शायद अनेक दफ़ा ऐसी चूक हुई होगी, और मेरे अनजाने में उसे दूसरों ने भुगता होगा. इसीलिए आज  किसी और की एक चूक की चर्चा आपसे कर रहा  हूं.

उस दिन अस्पताल गया तो किसी और ही काम से था, लेकिन लगा कि अपना बीपी भी लगे हाथों चैक करवा लूं. डॉक्टर साहब से दुआ-सलाम थी. उन्होंने बीपी चैक करके  कहा कि बेहतर होगा मैं अपना ईसीजी करवा लूं. न सिर्फ कहा, ईसीजी करने वाले टैक्नीशियन को बुला मुझे उनके हवाले भी कर दिया. तब मैं जयपुर के नज़दीक, कोटपुतली  के स्नातकोत्तर  कॉलेज में उपाचार्य था. कुछ ही दिनों  पहले सिरोही से पदोन्नति पर वहां पहुंचा था. संयोगवश टैक्नीशियन महोदय उसी कॉलोनी में रहते थे जिसमें मैं रहता था, और मुझे पहचानते थे. उन्होंने तसल्ली से मेरा ईसीजी किया और उसका प्रिण्ट आउट मुझे देकर डॉक्टर साहब के पास भेज दिया.

ईसीजी की उस रपट को देखते ही डॉक्टर साहब की मुख मुद्रा गम्भीर हो गई. उन्होंने सलाह दी कि मुझे फौरन जयपुर जाकर एस एम एस अस्पताल में खुद को दिखाना चाहिए. मैंने पूछा कि क्या कोई ख़ास चिंता की बात है, तो वे मेरे सवाल  को टाल गए. मुझे कुछ ही देर बाद एक शादी में शमिल होने के लिए सिरोही जाने के लिए कोटपुतली से निकलना  था. घर आया. मुंह ज़रूर ही लटका हुआ होगा. पत्नी ने पूछा कि क्या बात है, तो मैंने कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने भी  स्थिति की गम्भीरता समझ ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया. अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हम लोग कोटपुतली से निकल कर अगली सुबह सिरोही पहुंच गए. मैं रास्ते भर अनमना बना रहा. स्वाभाविक ही है कि मेरे अनमनेपन का असर पत्नी पर भी पड़ा. शादी में जाने का उत्साह और उल्लास हवा हो चुका था.

नहा धोकर सिरोही के सरकारी अस्पताल पहुंचा, जहां मेरे एक अत्यंत आत्मीय डॉक्टर सामने ही मिल गए. उदासी शायद मेरे चेहरे पर चिपकी हुई थी. उन्होंने वजह पूछी तो मैंने ईसीजी की रपट आगे कर दी. उन्होंने एक नज़र उस पर डालते ही पूछा कि “अग्रवाल साहब, यह किसकी रिपोर्ट उठा लाए?”  जब मैंने कहा कि यह तो मेरी ही रिपोर्ट है, तो उन्होंने अविश्वास  भरी नज़र से मुझे देखा, जैसे कह रहे हों, क्यों मज़ाक करते हो? मैंने फिर से उन्हें कहा कि यह मेरी ही रिपोर्ट  है, कल ही मैंने अपना ईसीजी करवाया है और इसी के  आधार पर डॉक्टर साहब ने मुझे राज्य के सबसे बड़े अस्पताल चले जाने की अर्जेण्ट सलाह दी है.

मेरे मित्र डॉक्टर साहब को शायद उस रिपोर्ट पर क़तई विश्वास नहीं हो रहा था. असल में कोतपुतली जाने से पहले मैं उनके नियमित सम्पर्क में था और मेरे स्वास्थ्य की स्थिति  से वे भली-भांति परिचित थे. उन्होंने पहले मेरा बीपी चैक किया और फिर मुझे एक बार और ईसीजी करवा लेने के लिए कहा. मैं बड़ी उलझन में था कि मामला आखिर क्या है! लेकिन अपने यहां इस बात का कोई रिवाज़ नहीं है डॉक्टर, चाहे वो आपका कितना ही नज़दीकी क्यों न हो, आपके मर्ज़ के बारे में आपसे खुलकर  बात करे. बहरहाल, मैंने एक बार फिर अपना ईसीजी करवाया और उसकी रिपोर्ट लेकर डॉक्टर साहब के पास पहुंचा. एक नज़र उस पर डालते ही वे मुझसे बोले, “देखो, मैंने कहा था ना कि वो रिपोर्ट आपकी हो ही नहीं सकती! आप एकदम ठीक हैं!” उन्होंने मुझे एक बार फिर आश्वस्त किया कि मैं तनिक भी चिंता न करूं, सब कुछ ठीक है, और फिर मुझे चाय पिला कर  विदा किया.

माहौल बदल चुका था. खुशी-खुशी घर  आया, पत्नी को सारा किस्सा बताया राहत की खूब लम्बी सांस ली, बहुत मज़े से शादी का लुत्फ लिया, और फिर हम दोनों कोटपुतली लौट गए.
यह संयोग ही था, कि अगले दिन जैसे ही मैं घर से कॉलेज जाने के लिए निकला, सामने वे तकनीशियन महोदय मिल  गए. मैंने शिकायत भरे लहज़े में उनसे कहा कि आपने मेरा कैसा ईसीजी किया.......मेरी तो जान ही निकाल दी! पहले तो उन्होंने मुझसे पूरा वाकया सुना, और फिर बड़े बेपरवाह लहज़े में बोले, “हां, सर, हमारी वो मशीन थोड़ी खराब है. कई बार वो ग़लत रिपोर्ट  दे देती है.” यानि उन्हें अपनी मशीन के चाल चलन की जानकारी थी.

मुझे समझ में नहीं आया कि मैं उनसे क्या कहूं? उनकी मासूमियत लाजवाब थी. होती भी क्यों नहीं? उन्हें क्या पता कि मैं इस बीच कितने विकट मानसिक तनाव से गुज़र चुका था!

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै  में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 18 मार्च 2014 को 'खराब मशीन की ईसीजी ने बढ़ा दी धड़कन' शीर्षक से प्रकाशित लेख का मूल पाठ 

1 comment:

Govindram Kejriwal said...

Thank u sir for sharing... It teaches us one thing that whenever there is any abnormal finding, we must take a second opinion and go for all tests once again... ?

Kejriwal GR