Tuesday, November 5, 2013

प्रवक्ता प्रशिक्षण महाविद्यालय

इधर जब से वीवीआईपी लोगों के सरकारी मेहमान बनने का सिलसिला परवान चढ़ा है, उनके प्रवक्ताओं की मांग और महत्व में भी बड़ा उछाल आया है. जब तक ये सरकारी मेहमान नहीं बने थे, किसी को पता भी नहीं था कि इनके पास भी प्रवक्ता नामक पुछल्ला है. लेकिन जब से हुज़ूर अन्दर हुए हैं, प्रवक्ता ही हैं जो बिना नागा छोटे पर्दे पर अपनी काबलियत के जलवे बिखेरते नज़र आते हैं. इन प्रवक्ताओं का काम है बड़ा मुश्क़िल. आखिर दागदार को बेदाग साबित करना कोई बच्चों का खेल थोड़े ही है! जैसा ये  खुद कहते हैं, आजकल मीडिया ट्रायल का ज़माना है और उसी मीडिया ट्रायल में ये अपने पूरे दमखम के साथ अपने मालिक को पाक दामन साबित करने के लिए तमाम तरह के करतब करते नज़र आते हैं.

मुझे यह उम्मीद है कि वीवीआईपी लोगों के सरकारी मेहमान बनने का यह सिलसिला चलता रहेगा और इसलिए इनके प्रवक्ताओं की मांग भी बढ़ेगी. शिक्षा के क्षेत्र में अपने लम्बे अनुभव और फिलहाल फुर्सत में होने के कारण मैं सोच रहा हूं कि क्यों न एक प्रवक्ता प्रशिक्षण महाविद्यालय खोल लिया जाए! इस दिशा में मैंने कुछ चिंतन किया है. उसी को आपके सामने पेश कर रहा हूं. अगर आप भी कुछ सुझाव देंगे तो मेरी योजना और बेहतर हो जाएगी, और अगर आपका समर्थन मिला तो मैं जल्दी ही यह महाविद्यालय शुरु करके देश की सेवा कर सकूंगा.  इतना  तो मैंने जान ही लिया है कि अपने यहां जो कुछ भी होता है वो देश के लिए होता है, खुद के लिए नहीं. यहां तक कि अपनी जेब का पैसा खर्च करके तीर्थ यात्रा पर जाने वाले भी अपने लिए कुछ नहीं मांगते हैं, देश के लिए ही मांगते हैं.

मेरी सोच  यह है कि  इस महाविद्यालय में प्रवेश के लिए किसी शैक्षिक योग्यता की  कोई ज़रूरत नहीं होनी चाहिए. जो भी चाहे प्रवेश ले सकता है. लेकिन अगर वो लफ्फाज हो, अगर बिना रुके, बिना किसी की टोका-टोकी से  प्रभावित हुए, और बिना यह सोचे कि जो वह बोल रहा है उसका पूछे गए सवाल से कोई लेना-देना है भी या नहीं, तो वो हमारे महाविद्यालय का एक बेहतर विद्यार्थी साबित हो सकता है. प्रवेश मिल जाने के बाद हम सबसे पहले तो उसे सौ दौ सौ शेर, इतने ही श्लोक और दस-बीस उद्धरण अंग्रेजी के रटवाएंगे. एक पीरियड  प्रैक्टिकल का  भी होगा  जहां विद्यार्थियों को बहुत ऊंची आवाज़ में बोलने का अभ्यास कराया जाएगा. उस कालांश  में उन्हें यह भी सिखाया जाएगा कि अगर सामने वाला कोई वज़नी तर्क दे, या उनसे कोई ऐसा सवाल पूछ लिया जाय जिसका जवाब उनके पास न हो या जिसका जवाब देना उसके बॉस के हितों के अनुकूल न हो तो किस  तरह उन्हें  अपनी आवाज़ को तार सप्तक तक ले जाकर सामने वाले की आवाज़ को दबा देना है. जब सामने वाले की बात या उसका सवाल लोग सुनेंगे ही नहीं तो बॉस के हित की कुछ न कुछ रक्षा तो हो  ही जाएगी.

हम अपने इन विद्यार्थियों को यह भी सिखाएंगे कि एंकर या चर्चा के अन्य प्रतिभागी चाहे उनके बारे में कितनी ही प्रतिकूल टिप्पणी क्यों न करे, उन्हें  अविचलित रहना चाहिए. मसलन सामने वाला कहे कि हमने जो पूछा है आप उसका जवाब नहीं दे रहे हैं, तो भी इसे उसको अनसुना करके वही कहते रहना चाहिए और अगर कुछ और न सूझे तो उसी बात को दुबारा-तिबारा कहने से भी नहीं हिचकना चाहिए. हम अपने इन विद्यार्थियों को बहुत सारी शाश्वत और सैद्धांतिक बातें भी कंठस्थ करवा देंगे ताकि जब ये किसी ऐसे सवाल में  उलझें जिसका जवाब देना इनके मालिक के हित में न हों तो वह सिद्धांत चर्चा शुरु कर दें और सामने वाले से पूरी दबंगई से पूछें कि बताओ आप इससे सहमत हो या नहीं! अगर सामने वाला प्रतिप्रश्न करे कि इस बात का मूल चर्चा से क्या सम्बन्ध है तो इन्हें चाहिए कि उसी बल्कि उससे भी अधिक अत्मविश्वास से अपने खज़ाने से दूसरा प्रसंग निकाल कर सामने वालों के मुंह पर दे मारें! वे हतप्रभ रह जाएंगे और आपका काम बन जाएगा.

हमारा सबसे अधिक बल इस बात पर होगा कि हमारे यहां प्रशिक्षण लेने वालों में आत्मविश्वास भरपूर  मात्रा में आ जाए. हम ठोकपीट कर उन्हें ऐसा बना देंगे कि किसी भी स्थिति में उनका आत्मविश्वास न डगमगाए. अपने प्रशिक्षण को बेहतर बनाने के लिए हम ऑडियो वीडियो सामग्री की भी खूब मदद लेंगे और कुछ कामयाब प्रवक्ताओं, कुछ बाबाओं, कुछ नेताओं, कुछ कॉमेडी कलाकारों के वीडियो बार-बार अपने विद्यार्थियों को दिखा कर उनके अनुभव को धार देंगे.

हमें पूरा भरोसा है कि हमारे यहां से प्रशिक्षित प्रवक्ता अधम से अधम, नीच से नीच, पापी से पापी बॉस का बहुत कामयाबी से बचाव कर सकेंगे और टीवी के पर्दे पर होने वाली बहसों और चर्चाओं में उन्हें उजली छवि वाला साबित कर पाएंगे.   जैसा मैंने शुरु में ही कह दिया है इस क्षेत्र में रोज़गार की अपरिमित सम्भावनाएं हैं और उनमें और वृद्धि की पूरी उम्मीद है.

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक 'न्यूज़ टुडै' में मेरे साप्ताहिक कॉलम 'कुछ इधर कुछ उधर' के अंतर्गत दिनांक 5 नवंबर, 2013 को किंचित परिवर्तित रूप में प्रकाशित  मेरी टिप्पणी  का मूल आलेख!