Monday, May 4, 2009

दास्तान लापता पाण्डुलिपि, हत्या और अफीम व्यापार की


कथाकार चार्ल्स डिकेंस एक बार फिर से चर्चा में हैं. 2009 के शुरू में डैन साइमंस की किताब आई ड्रुड जो डिकेंस की अपूर्ण कृति द मिस्ट्री ऑफ एडविन ड्रुड पर आधारित थी, और अब आई है मैथ्यू पर्ल की किताब द लास्ट डिकेंस. चार्ल्स डिकेंस का निधन 9 जून 1870 को मात्र 58 वर्ष की उम्र में हृदयाघात से हुआ था. उस समय वे अपने उपन्यास द मिस्ट्री ऑफ एडविन ड्रुड की, जो कुल 12 धारावाहिक किश्तों में छपना था, महज़ छह किश्तें लिख पाए थे. धारावाहिक के बाद इसे पुस्तकाकार छपना था. इस उपन्यास का अंत क्या हो सकता था, यह आज भी साहित्यिक हलकों में चर्चा का प्रिय विषय है. एड्विन ड्रुड ज़िन्दा है या मारा जा चुका है? क्या उसे उसके चाचा जॉन जैस्पर ने मारा? या कि वह बच निकला? कुछ ऐसे ही सवालों की रोचक परिणति है मैथ्यू पर्ल का यह उपन्यास. पर्ल आधी हक़ीक़त आधा फसाना शैली में अपने उपन्यास लिखा करते हैं, जिन्हें अब ऐतिहासिक उपन्यास विधा की एक उप शैली साहित्यिक थ्रिलर के अंतर्गत रखा जाने लगा है. इस शैली के उनके दो उपन्यास पहले ही खासे चर्चित रह चुके हैं: द दांते क्लब और द पो शेडो.

अपने इस ताज़ा उपन्यास द लास्ट डिकेंस की शुरुआत वे डिकेंस के बेटे फ्रैंक के वर्णन के साथ करते हैं जो भारत में बंगाल माउण्टेड पुलिस में सुपरिंटेंडेंट है. लेकिन उपन्यास की केन्द्रीय कथा का ताल्ल्लुक चार्ल्स डिकेंस के इस असमाप्त उपन्यास से है. फ्रैंक की कथा बाद में इससे जुड़ती है.

यह कथा बोस्टन शहर से शुरू होती है जहां डिकेंस के अमरीकी प्रकाशक फ़ील्ड्स, ऑस्गुड एण्ड कम्पनी के लोग इंग्लैण्ड से इस धारावाहिक उपन्यास की अगली किश्त के आने के इंतज़ार में हैं. कम्पनी के पार्टनर जेम्स ऑस्गुड ने अपने एक युवा क्लर्क डैनियल सैण्ड्स को बोस्टन समुद्र तट पर भेजा है कि वह लंदन से भेजी हुई यह किश्त लेकर आए, लेकिन कुछ किताब तस्कर और एक रहस्यपूर्ण व्यक्ति उसका पीछा करते हैं और उसे घायल करके मार डालते हैं. उपन्यास की किश्त गायब हो जाती है. पुलिस को शक़ है कि सैण्ड्स खुद इस पाण्डुलिपि को गायब करने के षडयंत्र में शामिल था. प्रकाशक के लिए यह जीवन मरण का प्रश्न है. डिकेंस उस ज़माने में इतने लोकप्रिय थे कि उनकी किताबों को खरीदने के लिए डेढ़ मील लम्बी कतार लगा करती थी. ऐसे लेखक का उपन्यास अधूरा रह जाए तो उन्हें भारी नुकसान होगा. तो, खुद जेम्स ऑस्गुड अपने प्रकाशन संस्थान की एक युवा विधवा कर्मी रेबेका सैण्ड को साथ लेकर लंदन रवाना होते हैं, यह पता करने कि डिकेंस ने उपन्यास पूरा भी किया या नहीं, और डिकेंस ने उपन्यास पूरा न भी किया हो तो, उपन्यास का अंत क्या हो सकता था? रेबेका उसी मृत क्लर्क की बहन है. ऑस्गुड के सामने दोहरी चुनौती है. एक, डिकेंस के उपन्यास के रहस्य की तह में पहुंच कर अपने व्यापार को बचाने की, और रेबेका का दिल जीतने की.

केण्ट में ऑस्गुड डिकेंस के परिवार के लोगों से मिलते हैं, उन ग्रामीणों से मिलते हैं, जिन के आधार पर कथाकार ने एड्विन ड्रुड सहित अपने कई चरित्रों की रचना की. और इस तरह मैथ्यू पर्ल उस महान कथाकार डिकेंस की एक प्रामाणिक तस्वीर भी उकेर पाते हैं. केण्ट में ही यह रचना एक नया मोड़ भी लेती है. पर्ल यहां से डिकेंस के अपूर्ण उपन्यास की कथा को उस अफीम व्यापार से जोड़ते हैं जो इंगलैण्ड द्वारा भारत से संचालित किया जा रहा था और जिसका लक्ष्य था पूरे चीन को नशे का गुलाम बना डालना. स्वाभाविक है कि इस नशे के व्यापार का एक आयाम संगठित अपराध भी था. और इसीलिए यह कृति साहित्यिक थ्रिलर की कोटि में आती है. पर्ल ने इतिहास और कल्पना का बहुत खूबसूरत मेल किया है.

बहुत कुशलता से बुना गया यह उपन्यास अपने पाठक को रोमांचक अनुभूति तो देता ही है, 19 वीं शताब्दी के मध्य के जन-जीवन से भी परिचित कराता है. यहां एक साहित्यकार, उसकी असमाप्त कृति, जटिल चरित्र, तेज़ गति से घटती घटनाएं, अफीम की तस्करी, खून-खराबा, प्रकाशकों की आपसी प्रतिस्पर्धा, साहित्यिक पायरेसी, और मोहक प्रेम-कथा सब कुछ है. एक पाठक को और भला चाहिए भी क्या?

Discussed book:
The Last Dickens
By Mathew Pearl
Random House
386 pages
US $ 25

राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट में मेरे पाक्षिक कॉलम किताबों की दुनिया के अंतर्गत 03 मई 2009 को प्रकाशित.








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