Sunday, November 2, 2008

समतल दुनिया में हरी क्रांति की ज़रूरत

तीन बार के पुलिट्ज़र पुरस्कार विजेता पत्रकार-लेखक थॉमस एल फ्रीडमैन ने करीब एक दशक पहले अपनी किताब लेक्सस एण्ड द ऑलिव ट्री में भूमण्डलीकरण का स्वागत किया था. उसके बाद 2005 में आई और अब तक की बेहद चर्चित किताबों में से एक, द वर्ल्ड इज़ फ्लैट में उन्होंने यह बताया कि सूचना क्रांति किस तरह दुनिया को समतल कर रही है और हमारे रोज़गार के अवसरों को कुछ इस तरह पुनर्संयोजित कर रही है अब उसे रोक पाना सीमाओं, समुद्रों और दूरियों के लिए भी मुमकिन नहीं रह गया है. इन्हीं फ्रीडमैन ने अब अपनी सद्य प्रकाशित किताब हॉट, फ्लैट एण्ड क्राउडेड: व्हाई वी नीड अ ग्रीन रिवोल्यूशन – एण्ड हाउ इट केन रिन्यू अमेरिका में बताया है कि हमारे समय के तीन बहुत बड़े बदलाव हैं ग्लोबल वार्मिंग, ग्लोबल फ्लैटनिंग और ग्लोबल क्राउडिंग. ये तीन बदलाव ऐसी तीन लपटों की तरह है जो आपस में मिलकर बहुत बड़ी आग में बदल चुकी है. यह आग पांच बड़ी समस्याओं को पैदा कर रही है. ये समस्याएं हैं – मौसम का बदलाव, पेट्रो-तानाशाही, ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों के के उपभोग और उपलब्धता का बिगड़ता जा रहा संतुलन, जैव विविधता का खत्म होते जाना, और ऊर्जा दारिद्रय. आने वाला समय कैसा होगा, यह इसी बात पर निर्भर करेगा कि हम इन पांचों समस्याओं का सामना कैसे करते हैं.

फ्रीडमैन चेताते हैं कि हममें से हरेक को यह जान लेना चाहिए कि अब तेल की कीमतें कभी भी घटेंगी नहीं और अपव्यय करने और प्रदूषण फैलाने वाली तकनीकों को और बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए. फ्रीडमैन कहते हैं कि ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में आखिरी बड़ा नवाचार आणविक ऊर्जा का पचास बरस पहले हुआ था. उसके बाद तो जैसे जड़ता ही आ गई है. वे एक उम्दा बात यह कहते हैं कि पाषाण युग की समाप्ति इसलिए नहीं हुई थी कि पत्थर खत्म हो गया था. इसी तरह, वातावरण को नष्ट करने वाले जीवाश्म ईंधन का युग भी खत्म हो सकता है, अगर हम उसके लिए सचेष्ट हों.
फ्रीडमैन जीवाश्म ईंधन जैसे तेल, कोयला और प्राकृतिक गैस के जलाने से पैदा कार्बन डाइ ऑक्साइड की वृद्धि पर बहुत चिंतित हैं. वे बताते हैं कि कार्बन डाइ ऑक्साइड से उपजा प्रदूषण वायुमण्डल में इकट्ठा होता रहता है और इसी कारण मौसम में बदलाव आ रहे हैं. अपने देश अमरीका को वे विशेष रूप से लताड़ते हैं कि वहां प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत सबसे ज़्यादा है और इसीलिए पर्यावरण को बिगाड़ने का सबसे ज़्यादा दोषी भी उन्हीं का देश है. स्वाभाविक है कि वे स्थिति को सुधारने के लिए अमरीकी नेतृत्व से सक्रियता की उम्मीद करते हैं. वैसे, वे चिंतित एशियाई देशों के व्यवहार से भी कम नहीं हैं. फ्रीडमैन कहते हैं कि दुनिया के औद्योगिक उत्पाद को बढाने के मामले में भले ही चीन ने कमाल किया हो, उसने पर्यावरण को भी कम क्षति नहीं पहुंचाई है. वे बताते हैं कि पिछले छह सालों में चीन में कोयला जनित विकास में इतनी वृद्धि हुई है कि उसे अपने कोयला उत्पाद में उतनी वृद्धि करनी पड़ी है जितनी कि पूरे अमरीका की उत्पाद क्षमता है. अब इसी के साथ यह बात और जोड़ लीजिए कि सारी दुनिया में आबादी शहरों की तरफ जा रही है. इसी की परिणति है दुनिया का ‘हॉट, फ्लैट और क्राउडेड’ होते जाना. अपनी सारी चिंताओं के बावज़ूद फ्रीडमैन उम्मीद भी करते हैं कि चीन और अन्य देश नए पर्यावरण-मित्र उद्योगों में ज़्यादा निवेश कर इस मामले में अमरीका को भी पीछे छोड़ देंगे.

जैसा कि इसके शीर्षक से ही साफ है, किताब अमरीका को केन्द्र में रखकर लिखी गई है, लेकिन फ्रीडमैन की लेखन शैली उनकी चिंताओं में पूरी दुनिया को समेटती चलती है. जब वे यह कहते हैं कि पर्यावरण की चिंता केवल हमारे अस्तित्व का ही प्रश्न नहीं है, बल्कि इससे अमरीका अधिक समृद्ध, अधिक उत्पादक और अधिक सुरक्षित भी बनेगा, तो हम बहुत आसानी से समझ सकते हैं कि यह बात और देशों पर भी उतनी ही अच्छी तरह से लागू होती है.

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Discussed book:
Hot, Flat and Crowded: Why We Need a Green Revolution – and How It Can Renew America
By Thomas L. Friedman
Published by Farrar, Straus and Giroux
448 Pages. Hardcover
US $ 27.95

राजस्थान पत्रिका के रविवारीय संस्करण में प्रकाशित मेरे साप्ताहिक कॉलम किताबों की दुनिया के अंतर्गत 2 नवम्बर, 2008 को प्रकाशित.











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