Thursday, April 10, 2008

प्रयास पूर्व और पश्चिम के संघर्ष को समझने का

पीपुल्स एण्ड एम्पायर्स और यूरोपियन एन्काउण्टर्स विद द न्यू वर्ल्ड जैसी बहु प्रशंसित-चर्चित किताबों के लेखक, ब्रिटिश इतिहासकार एंथनी पग्डेन की ताज़ा किताब वर्ल्ड्स एट वार: द 2500 ईयर स्ट्रगल बिटवीन ईस्ट एण्ड वेस्ट लगभग साढे छह सौ पन्नों में सभ्यताओं के संघर्ष के ढाई हज़ार वर्षों के इतिहास की पडताल का विचारोत्तेजक प्रयास है.

किताब का प्रारम्भ उस प्राचीन विश्व के वर्णन से होता है जहां यूनान फारसी साम्राज्य के विरुद्ध अपने पहले संघर्ष को आज़ादी और गुलामी के, प्रजातंत्र और राजशाही के तथा वैयक्तिकता और ईश्वर के रूप में मनुष्य की पूजा के संघर्ष के रूप में देखता है. इसके बाद पग्डेन की कथा उस रोम में प्रवेश करती है जहां नागरिकता और नियामक कानून की आधुनिक अवधारणाओं ने जन्म लिया. बकौल पग्डेन, रोम के नेता अपने विजितों को स्वाधीन मानते थे, जबकि पूर्व में विजित विजेता की सम्पत्ति माने जाते थे. पग्डेन इसाई धर्म के जन्म और पश्चिम द्वारा उसे शासन का औज़ार बनाने का भी नाटकीय वर्णन करते हैं. दरअसल यहीं से धर्म निरपेक्ष और शेष ताकतों के बीच उस संघर्ष की शुरुआत होती है जो अब भी चल रहा है. इसके बाद आता है इस्लाम. और फिर पूर्व और पश्चिम के धार्मिक विश्वासों में टकराहट बढती जाती है.
और फिर होती है चर्चा प्रथम विश्व युद्ध की. पग्डेन कहते हैं कि इसके अनेक छद्म उद्देश्यों में से एक था ताकत के बल पर मुस्लिम दुनिया को नए रूपाकार में ढालना. और आज तो पश्चिम, पूर्व पर अपनी तरह का प्रजातंत्र और अपनी तरह की धर्म निरपेक्षता थोपने के लिए प्रयत्नरत है. एक चेतावनी के साथ लेखक अपनी बात समेटता है: आतंकवाद और युद्ध तब तक खत्म नहीं होंगे जब तक कि धार्मिकता और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणाएं साफ नहीं हो जातीं.
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1798 में जब नेपोलियन बोनापार्ट ने अपनी सेनाओं के साथ मिश्र में प्रवेश किया तो उसके मन में केवल सैन्य विजय का ही भाव नहीं था. तीस हज़ार सैनिकों के अलावा उसके साथ एक चल विश्वविद्यालय भी था जिसमें अर्थशास्त्री, कवि, वास्तुकार, खगोलशास्त्री यहां तक कि पेरिस ऑपेरा के गायक तक थे. इनके अलावा था हज़ारों किताबों का एक पुस्तकालय जिसमें मांटेस्क्यू, रूसो, मांतेन, वाल्टेयर और पश्चिमी धर्म-विधान के सारे क्लैसिक थे.
इसके लगभग दो शताब्दी बाद, 1971 में ईरान के शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी ने एक प्राचीन फारसी महल के प्रांगण में विदेशी गणमान्य लोगों के लिए दो हज़ार मिलियन डॉलर खर्च कर एक शानदार जश्न आयोजित किया. मक़सद था शाह को महान डेरियस और ज़ेरेक्स का वंशज सिद्ध करना.
इन दोनों प्रसंग के ज़रिए पग्डेन यह बताना चाहते हैं कि नेपोलियन और शाह, जो क्रमश: पश्चिम और पूर्व के प्रतिनिधि हैं, खुद को अपने-अपनी स्वर्णिम सभ्यताओं का वारिस मानते हैं. लेकिन, पग्डेन यह बताना भी नहीं भूलते कि दोनों में ही कुछ विलक्षणताएं भी हैं. स्विटज़रलैण्ड में शिक्षित शाह आधुनिकीकरण के धर्म निरपेक्ष समर्थक थे. जबकि नेपोलियन ने महज़ स्थानीय मौलवियों को खुश करने के लिए मिश्रियों के समक्ष यह घोषित किया कि वह पैगम्बर मुहम्मद साहब और पवित्र कुरान का आराधक है.
किंवदंतियों, प्रसंगों और प्रभावशाली वृत्तांत के माध्यम से महज़ बारह अध्यायों में ढाई हज़ार वर्ष का इतिहास समेटते हुए पग्डेन नीरस इतिहास को जीवंत बनाने में कोई कसर नहीं छोडते. लेकिन इस रोचकता के बीच भी सजग पाठक यह लक्षित किए बगैर नहीं रहता कि जिसे हेरोडोटस ने स्थायी शत्रुता कहा था, उसे पश्चिम और पूर्व के बीच स्थापित करने के प्रयास में पग्डेन चीन, जापान, सुदूर पूर्व और भारत की करीब-करीब अनदेखी कर जाते हैं. दूसरे शब्दों में उनका पूर्व इस्लामी समाज तक सिमट कर रह गया है.
एक और बात यह महसूस होती है कि यह किताब पूर्व और पश्चिम बीच कम, धर्म और एनलाइटनमेण्ट के बीच टकराव की कथा अधिक है, और उसमें भी लेखक के निशाने पर इस्लाम का वह अंश है जो चर्च और राज्य के बीच दूरी की पश्चिमी सोच से असहमति रखता है. पग्डेन ओसामा बिन लादेन को यह कहते हुए उद्धृत करते हैं कि पश्चिम का सबसे बडा अपराध यही है कि वह धर्म को अपनी राजनीति से अलग रखता है. पग्डेन मानते हैं कि अधिकांश मुस्लिम धर्मशास्त्री और न्यायविद इस बात से सहमत हैं. लगता तो यह भी है कि पग्डेन की इस्लाम की समझ उन मुल्ला-मौलवियों के कहे तक महदूद है जो हिंसा का समर्थन करते हैं.
एक और महत्वपूर्ण बात यह भी कि किताब पूर्व को ‘सभ्य और आधुनिक’ बनाने के पश्चिम के सुदीर्घ और असफल किंतु हास्यास्पद प्रयासों को सामने ले आती है. निश्चय ही यह लेखक के अनचाहे ही हो गया है.
अपनी इन सीमाओं के बावज़ूद किताब खासी रोचक और विचारोत्तेजक है. लेखक से इस बात पर तो सहमत होना ही पडता है कि पूर्व और पश्चिम के बीच बडा अंतर तो मूल्यों और संस्कृति का है, न कि अधिनायकवाद बनाम प्रजातंत्र का, या धार्मिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता का, या मुस्लिम बनाम इसाई का.
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Discussed book:
Worlds at War: The 2,500-Year Struggle between East and West
By: Anthony Pagden
Published by: Random House
Hardcover, 656 pages
US $ 35.00

राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट जस्ट जयपुर में मेरे साप्ताहिक कॉलम वर्ल्ड ऑफ बुक्स के अंतर्गत 10 अप्रेल, 2008 को प्रकाशित.







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