Thursday, March 13, 2008

तर्क-विहीनता के तर्क

आपका सर दर्द कर रहा है. घर में सस्ती एस्पिरिन है, आप लेते हैं. दर्द ठीक नहीं होता. दुकानदार आपको एक महंगी दवा देता है. उसमें भी वही एस्पिरिन है, लेकिन उससे आपका सर दर्द ठीक हो जाता है.

आपको किसी शानदार होटल में बहुत महंगा खाना खाने में ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं होती, लेकिन रिक्शा वाले से आप एक रुपये के लिए भी झिकझिक करते हैं.
आप बहुत ईमानदार इंसान हैं. अपने दफ्तर में कोई आर्थिक घपला नहीं करते. लेकिन उसी दफ्तर की स्टेशनरी वगैरह घर ले जाने में आपको कोई संकोच नहीं होता.

आप जानते हैं कि ज़्यादा खाना आपकी सेहत के लिए हानिप्रद है, फिर भी आप किसी शादी में बेझिझक ठूंस-ठूंस कर भकोसते हैं.

आखिर ऐसा क्यों होता है?

एम आई टी के व्यवहारवादी अर्थशास्त्री डान एरियली की मानें तो हममें से ज़्यादातर लोग यह गलतफहमी पाले रहते हैं कि अपनी ज़िन्दगी के अधिकांश फैसले हम सोच-समझकर और तर्कपूर्वक करते हैं. एरियली ने लम्बी शोध के बाद यह पाया कि कैसे हमारी अपेक्षाएं, भावनाएं, सामाजिक स्थितियां और अनेकानेक अदृश्य तथा अतार्किक ताकतें हमारी तर्क क्षमता को विकृत करती हैं. हम न केवल असामान्य और बेहूदा गलतियां करते हैं, उन्हें लम्बे समय तक दुहराते भी रहते हैं. एरियली बताते हैं कि हमारा ऐसा व्यवहार न तो अतार्किक होता है और न निरर्थक. बल्कि यह सब निहायत व्यवस्थित और पूर्वानुमान योग्य होता है. इसीलिए, उनकी ताज़ा किताब का शीर्षक है : प्रेडिक्टेब्ली इर्रेशनल : द हिडन फोर्सेज़ दैट शेप आवर डिसीजन्स.
अब दवा वाली बात ही लीजिए. अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के एक अध्ययन के हवाले से एरियली बताते हैं कि जब आप महंगी एस्पिरिन लेते हैं तो उससे दर्द निवारण की आपकी उम्मीद भी बढ जाती है, जबकि सस्ती दवा लेते हुए आप खुद उसके असर के बारे में संशयालु होते हैं. इसी बात को आगे बढाते हुए एरियली यह भी कहते हैं कि हम वस्तुओं का मूल्यांकन केवल उन्हीं के गुण दोष के आधार पर नहीं करते, बल्कि उनकी तुलना वैसी ही और वस्तुओं से करते हुए उनका मूल्यांकन करते हैं. आप बाज़ार में म्यूज़िक सिस्टम खरीदने जाते हैं. खुद आपके मन में यह साफ नहीं होता कि आप कैसा सिस्टम चाहते हैं. दुकानदार आपको एक के बाद एक कई सिस्टम दिखाता सुनाता है, और अंतत: आप जो फैसला करते हैं वह कुछ इस तरह होता है कि यह पहले वाले से बेहतर है. यानि आपके फैसले सापेक्ष और तुलनात्मक होते हैं. आपकी इसी मनोवृत्ति का फायदा चतुर सेल्स पर्सन उठाता है. वह पहले आपको एक साधारण उत्पाद दिखाता है, फिर उससे बेहतर, और तब आपको लगता है कि पहले वाला उत्पाद तो खरीदने काबिल नहीं है. अगर उसने बाद वाला उत्पाद न दिखाया होता तो आपने उस उत्पाद को खारिज़ नहीं किया होता.
एरियली एक और बात कहते हैं. यह बहुत मह्त्वपूर्ण है. वे कहते हैं कि जब आपके जीवन में बाज़ार के और समाज के प्रतिमान टकराते हैं तो असल मुसीबत पैदा होती है. जब आप बाज़ार जाते हैं और कुछ खर्च करते हैं तो आप चाहते हैं कि आपको उस खर्च के बदले में कुछ मिले: कोई वस्तु या कोई सेवा. मुसीबत तब पैदा होती है जब आप अपनी सामाजिक ज़िन्दगी में भी यही उम्मीद करना शुरू करते हैं. आप अपने दोस्त पर कुछ खर्च करते हैं और बदले में चाहते हैं कि वह आपका सम्मान करे. ऊपर से यह बात अविश्वसनीय लगती है, लेकिन एरियली जिस तरह, खास तौर पर प्रेम सम्बन्धों के हवाले से, इसे पेश करते हैं, यही बात बहुत कुछ सोचने को प्रेरित करती है.

एरियली बल पूर्वक कहते हैं कि हम अपने अतार्किक लगने वाले व्यवहार को अक्सर दुहराते रहते हैं. यह इसलिए होता है कि असल में वह व्यवहार सकारण होता है. अब यही बात लें कि आप कोई विज्ञापन देखते हैं जिसमें लिखा होता है कि ‘एक के साथ एक मुफ्त’ और आप तुरंत प्रभावित हो जाते हैं. क्या आप यह नहीं जानते कि कुछ भी मुफ्त देकर दुकानदार भला नुकसान क्यों उठाएगा? मुफ्त बताकर दी जाने वाली चीज़ के भी वह आपसे पैसे लेता है. कुल मिलाकर मुफ्त के लालच में पडकर आप वह वस्तु भी खरीद लेते हैं, जिसकी शायद आपको ज़रूरत नहीं थी. अगर आप तर्क से इस बात को समझ भी लेते हैं तो भी अगली बार फिर से ‘मुफ्त’ पढते ही उसकी ओर आकर्षित हो जाते हैं. चतुर व्यापारी आपकी इसी कमज़ोरी का फायदा उठा कर दिन–दूनी रात-चौगुनी तरक्की करता रहता है.
इन दिनों भारत में बाज़ार जिस तरह अपने हाथ-पाव पसार रहा है, उसकी बहुत सारी झांकियां हमें अनायास ही इस किताब में मिल जाती हैं. निश्चय ही यह किताब हमें अपने व्यवहार, भले ही वह आर्थिक हो या सामाजिक, पर पुनर्विचार का अवसर प्रदान करती है.
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Discussed book:
Predictably Irrational: The Hidden Forces That Shape Our Decisions
By Dan Ariely
Published by: Harper Collins
Hardcover: 304 pages
US $ 25.95

राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट जस्ट जयपुर में मेरे साप्ताहिक कॉलम वर्ल्ड ऑफ बुक्स के अंतर्गत 13 मार्च 2008 को प्रकाशित.








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