Friday, November 23, 2007

पिकासो की जीवनी

दुनिया के महानतम चित्रकारों में से एक पाब्लो पिकासो की जीवनी का बहु प्रतीक्षित तीसरा खण्ड हाल ही में आया है. जॉन रिचर्डसन ने, जो इससे पहले मॉनेट और ब्रेक़ जैसे चित्रकारों पर भी लिख चुके हैं और अमरीका में क्रिस्टी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निबाह चुके हैं, 608 पन्नों के इस खण्ड में पिकासो के जीवन के मध्यवर्ती काल पर रोशनी डाली है.
‘अ लाइफ ऑफ पिकासो : द ट्रायम्फेण्ट ईयर्स 1917-1932’ शीर्षक यह खण्ड 1917 से प्रारम्भ होता है जब पिकासो युद्धकालीन पेरिस को छोड परेड नामक प्रस्तुति के लिए रोम जाते हैं. इसी काल खण्ड में वे नेपल्स भी जाते हैं जहां के क्लासिकी स्थापत्य का उनके भावी कला कर्म पर अमिट प्रभाव पडता है. पेरिस में वे रूसी बैलेरिना ओल्गा खोखलोवा के प्रेम में कुछ इस तरह डूबते हैं कि अपनी बोहेमियन ज़िन्दगी का परित्याग कर पेरिस की अभिजात जीवन शैली को अंगीकार कर लेते हैं. यह भी एक वजह है कि वे नव क्लासीवाद की तरफ मुडकर आखिरकार घनवादी शैली को अपना लेते हैं. इसे उनके कला कर्म का डचेस काल भी कहा जाता है. जीवनी के इस खण्ड में रिचर्डसन अपने वृत्तांत को वहां से उठाते हैं जहां पिकासो अपने घनवादी (क्यूबिस्ट) काल के बाद दियाघिलेव के बैले के लिए कॉस्ट्यूम डिज़ाइन करने और नव-क्लासिकी काल में प्रवेश करने को तत्पर हैं. इसी काल खण्ड में ओल्गा खोखलोवा के साथ, जो उनकी एकमात्र वैध संतान पाओलो की मां भी है, उनके दाम्पत्य जीवन का वृत्तांत भी समाहित है. रिचर्डसन ने पिकासो की कला-यात्रा और उनके जीवन में आई अनेक स्त्रियों के बीच का अंत: सम्बन्ध बहुत कुशलता से उकेरा है.

1923 की गर्मियों में पिकासो और उनके अमरीकी दोस्त गेराल्ड तथा सारा मर्फी होटल डू केप के मालिकों को इस बात के लिए मना लेते हैं कि वे अपने फ्रेंच रिवेरा को शीतकालीन रिसोर्ट से ग्रीष्मकालीन रिसोर्ट में तब्दील कर दें. इस परिवर्तन के कारण फ्रेंच रिवेरा यूरोपीय कला का एक महत्वपूर्ण घटनास्थल बन जाता है. पिकासो की ज़िन्दगी का एक अन्य महत्वपूर्ण वर्ष है 1927. इस वर्ष वे एक 17 वर्षीया कन्या मेरी थेरेसे वाल्टर के प्यार में कुछ इस तरह मुब्तिला होते हैं कि दुनिया-जहान की सुध बुध ही खो बैठते हैं. स्वाभाविक है कि उनकी पत्नी इस बात को सहन नहीं कर पाती है. उधर मेरी के प्यार में पागल पिकासो इसी वजह से पत्नी से नफरत करने लगते हैं. जीवनीकार रिचर्डसन ने बहुत बारीकी से इस त्रिकोण की मन:स्थितियों का चित्रण किया है.
किताब के आखिरी तीन अध्याय 1931 से 1932 के उस काल खण्ड को समर्पित हैं जब पिकासो अपने जीवन की अर्ध शती पूरी करते हैं. समय बीतने के साथ उनकी यह धारणा मज़बूत होने लगती है कि चित्रकला एक जादुई कर्म है. यहां आते-आते पिकासो स्थापत्य का पुनराविष्कार करते हैं और क्लासिकी परम्परा का पिकासीकरण करते हैं. 1932 की गर्मियों में पेरिस और ज्यूरिख में हुई प्रदर्शनियों में वे आधुनिक कला के पुरोधा के रूप में स्थापित हो जाते हैं.

पिकासो की जीवनी का यह खण्ड उनकी ज़िन्दगी के एक बेहद जटिल दौर को सामने लाता है. यह काल खण्ड यूरोपीय इतिहास में भी उतना ही जटिल और उथल-पुथल भरा है. कला के लिहाज़ से पिकासो इस काल में ‘थ्री म्यूज़ीशियंस’ में घनवादी ज्यामितियां दर्शाते हैं तो परिवार और दोस्तों के नव-क्लासिकी पोर्ट्रेट भी रचते हैं. इसी काल में वे अत्यधिक साहसिक प्रयोगशील स्थापत्यों के त्रि-आयामी रूपों से भी खेलते हैं. यही वह काल है जब पिकासो थिएटर की दुनिया से भी गहन प्रेरणा लेते हैं. दरअसल उनके इस काल के सृजन को समझने के लिए थिएटर एक महत्वपूर्ण कुंजी है.
रिचर्डसन हालांकि पिकासो की जीवनी के इस खण्ड में एक हद तक सुपरिचित कथा कहते हैं, उनका अन्दाज़े-बयां कुछ ऐसा है कि यह सब पढते हुए हम न केवल पिकासो की कला को बल्कि उस पूरे काल-खण्ड की कला-संस्कृति की हलचलों को भी बेहतर तरीके से समझ पाते हैं. रिचर्डसन पिकासो की अनेक कृतियों की भी सूक्ष्मता से चर्चा और व्याख्या करते हैं. 1929 की एक न्यूड पेंटिंग का विश्लेषण करते हुए वे याद दिलाते हैं कि यह पेंटिंग कूर्वे की एक पेंटिंग की उन चट्टानों की याद दिलाती है जो मोपांसा की रचनाओं से प्रेरित हैं. स्वभावत: इस तरह के ब्यौरे हमें पेंटिंग की तहों तक ले जाते हैं. रिचर्डसन के लिए पिकासो एक ऐसे महामानव हैं जिनके समस्त क्रियाकलाप तर्क, व्याख्या और आलोचना से परे हैं.
निश्चय ही आधुनिक चित्रकला के रसिकों के लिए यह किताब पिकासो के जीवन और उनकी कला को और अधिक खोलने में पूरी तरह कामयाब है. हमें अब बहुत बेसब्री से इस किताब के चौथे और आखिरी खण्ड का इंतज़ार है.
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Discussed book :
A Life of Picasso: The Triumphant Years, 1917-1932
By John Richardson
Publisher : Knopf
Pages : 608
US $ 40


राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट 'जस्ट जयपुर' में मेरे साप्ताहिक कॉलम 'वर्ल्ड ऑफ बुक्स' के अंतर्गत 22 नवम्बर 2007 को प्रकाशित.