Wednesday, August 29, 2007

An interesting book

हंसते-हंसते दर्शन शास्त्र

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल



उम्र के सत्तर बरस पूरे कर लेने के बाद थॉमसन ने सोचा कि अब उसे अपनी जीवन शैली को बदल डालना चाहिये ताकि कुछ बरस और जिया जा सके। बेहद संतुलित भोजन, जॉगिंग, तैराकी – इन सब का असर यह हुआ कि तीन माह में उसका हुलिया ही बदल गया। वज़न में तीस पाउण्ड और कमर के घेरे में 30 इंच की कमी हो गई। उत्साहित होकर उसने सोचा कि अब इस युवा लगती काया के अनुरूप हेयर स्टाइल भी हो जाए! गया एक हेयर कटिंग सेलून में, बाल कटवाये, और जैसे ही बाहर निकला, एक बस की चपेट में आ गया।

गिरते-गिरते भी उसके मुंह से निकला , “ हे भगवान, तूने मेरे साथ ऐसा क्यूं किया?”

जवाब में आकाशवाणी हुई, “थॉमसन सच तो यह है कि मैं तुम्हें पहचान ही नहीं पाया।“

दर्शन शास्त्र की किताब में यह लतीफ़ा! कुछ अजीब नहीं लगता? थॉमस केथकार्ट और डेनियल क्लाइन की ताज़ा किताब ‘प्लेटो एण्ड अ प्लेटिपस वॉक इण्टु अ बार : अण्डरस्टैंडिंग फ़िलोसॉफ़ी थ्रू जोक्स’ में यही बेमेल लगने वाला संयोजन चौंकाता भी है, आनन्दित भी करता है। टॉम (यानि थॉमस) और डेनियल हार्वर्ड विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र पढे हैं और बहुधन्धी है। डैन तो अनेक जाने माने कॉमेडियनों के लिए लतीफ़े लिखते भी हैं। इनकी पिछली किताब ‘मेचो मेडिटेशंस’ भी खासी चर्चित रह चुकी है। अपनी इस नई किताब में इन्होंने लतीफ़ो के माध्यम से दर्शन शास्त्र की जटिल अवधारणाओं को समझाने का मज़ेदार उपक्रम किया है।

पूरी किताब इन दो दोस्तों के बीच का सम्वाद है और उसी के बीच लतीफ़े, फ़िल्मी प्रसंग, गीत, समसामयिक घटनाओं के हवाले और छोटे-छोटे प्रसंग सब आते रहते हैं। प्रसंगवश, प्लेटो को भी सम्वाद शैली प्रिय थी। तत्वमीमांसा, तर्क शास्त्र, ज्ञानमीमांसा, नीति शास्त्र, अस्तित्ववाद, भाषा दर्शन, नारीवाद वगैरह सब कुछ यहां मौज़ूद है। महान दार्शनिकों ने जो कुछ पढा-सीखा-समझा और समझाया उस सबको यह किताब हल्के फ़ुलके लतीफ़ों के माध्यम से प्रस्तुत करने की कोशिश करती है। यहीं यह भी बता दूं कि किताब के शीर्षक में उल्लिखित प्लेटिपस एक ऑस्ट्रेलियाई प्राणी है जो जल और थल दोनों में विचरण करता है। यह कुछ-कुछ बत्तख से मिलता-जुलता होता है।

किताब उन लोगों को ध्यान में रखकर लिखी गई है जो गम्भीर चीज़ों को सरल तरह से समझना चाहते हैं। दुनिया की सभी महान दार्शनिक परम्पराओं, शैलियों, शाखाओं, अवधारणाओं और विचारकों को इसमें समेटा गया है। ऊपर हमने जिस लतीफ़े को उद्धृत किया है उसका इस्तेमाल अरस्तू की ज़रूरी (एसेन्शियल) और आकस्मिक (एक्सीडेण्टल) की अवधारणा को समझाने के लिए किया गया है।

लेखक द्वय का कहना है कि लतीफ़ों और दार्शनिक अवधारणाओं की निर्मिति और परिणति में बहुत कुछ समान है। दोनों ही आपके मस्तिष्क को समान तरह से उद्वेलित करते हैं, दोनों का उद्गम समान है, दोनों चीज़ों के बारे में आपकी सम्वेदना को उलट-पलट डालते हैं, सोच की दुनिया को औंधे मुंह खडा करते हैं और आपके भीतर छिपे,प्राय: असुविधाजनक सत्यों को बाहर ले आते हैं।


मज़े की बात यह कि आप चाहें तो 200 पन्नों की इस किताब को महज़ एक जोक बुक की तरह भी पढ सकते हैं और अगर उससे आगे जाना चाहें तो पायेंगे कि ये लतीफ़े दर्शन शास्त्र की विविध धाराओं और शैलियों के क्रम में संयोजित हैं और आप इनके माध्यम से दर्शन शास्त्र की प्रारम्भिक जानकारी पा सकते हैं।

इसी किताब में एक प्रसंग प्रख्यात जासूस शर्लक होम्स का है। होम्स की ख्याति उसकी निगमन पद्धति के कारण है। इस किताब के लेखक द्वय का कहना है कि होम्स निगमन नहीं आगमन पद्धति का प्रयोग करता है। वह स्थितियों का सूक्ष्म अध्ययन करता है और फ़िर अपने विगत अनुभवों के आधार पर साम्य और सम्भाव्यता को मिलाकर सामान्यीकरण करता है। इस बात को इस प्रसंग से समझाया गया है:

शर्लक होम्स और उसका मित्र वाट्सन कैम्पिंग पर हैं। रात है। दोनों सो रहे हैं। अचानक होम्स उठता है, वाट्सन को जगाता है। कहता है, “वाट्सन, ऊपर आकाश की तरफ़ देखो और मुझे बताओ कि तुम क्या देख रहे हो।“
वाट्सन जवाब देता है, “ मुझे अनगिनत तारे दिखाई दे रहे हैं।“
होम्स पूछता है, “इसका मतलब?”
वाट्सन कुछ क्षण सोच कर जवाब देता है, “खगोल शास्त्र के लिहाज़ से यह कि अनगिनत आकाश गंगाएं हैं और कदाचित अरबों ग्रह हैं। ज्योतिष के लिहाज़ से यह कि शनि सिंह राशि में स्थित है। समय हुआ है दो बजकर पैंतालिस मिनिट। मौसम विग़्यान के हिसाब से कल का दिन खुशगवार होने वाला है। धर्म शास्त्र के लिहाज़ से यह कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है और हम अकिंचन। होम्स, ये तो मेरे निष्कर्ष है। आप क्या सोचते हैं?”

“वाट्सन, बेवकूफ़! किसी ने हमारा टेण्ट चुरा लिया है।“